आज के दिन क्यों मनाया जाता है 'नेशनल इंजीनियर्स डे'? यहां जानें जबाव
एक इंजीनियर का मतलब उस व्यक्ति से होता है जो विज्ञान के सिद्धांतों का अनुप्रयोग कर किसी समस्या का समाधान निकाल सके.
यूं तो देश में हर साल लाखों बच्चे इंजीनियर की डिग्री हासिल करते हैं लेकिन क्या वे वास्तव में इंजीनियर होते हैं इसका जवाब देना मुश्किल काम नहीं है.
एक आदर्श इंजीनियर कैसा होता है इसकी सबसे बढ़िया मिसाल एमवी यानि एम विश्वेश्वरैया थे.
उन्होंने 100 साल की उम्र में जीवन भर जिस दृढ़ विश्वास और ऊर्जा के साथ इंजीनियरिंग समस्याओं के समाधान निकाले हैं वह हर प्रकार के इंजीनियर के लिए मिसाल है.
उनका जन्मदिन 15 सितंबर को मनाया जाने वाला इंजीनियर्स डे यही सीखने का दिन है.
मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जन्म मैसूर राज्य के कोलार जिले के चिक्काबल्लापुर तालुक में तेलुगु परिवार में 15 सिंतबर 1861 को हुआ था.
पढ़ाई के लिए पर्याप्त पैसा नहीं होने पर उन्होंने इसे बाधा बनने नहीं दिया और ट्यूशन पढ़ा कर पढ़ाई कर बेंगलुरू के सेंट्रल कॉलेज से टॉप कर बीए की डिग्री हासिल की.
इसके बाद उन्होंने मैसूर सरकार की मदद से पूना के साइंस कॉलेज में इंजीनियिरिंग में दाखिला ले लिया.
यहां वे धीरे-धीरे आगे की पढ़ाई कर पहले एलसीई और फिर एफसीई की परीक्ष में प्रथम आए और अपने योग्यता को साबित किया. उनकी प्रतिभा को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें नासिक मे सहयाक इंजीनियर के पद पर नियुक्त किया.
फिर उन्होंने बंबई में लोक निर्माण विभाग मे असिस्टेंट इंजीनियर की नौकरी की. बाद में उन्हें भारतीय सिंचाई आयोग से जुड़ने के लिए बुलाया गया.
विश्वैश्वरैया शुरू से ही एक बहुत ही कुशल और बुद्धिमान इंजीनियर साबित हुए.
उन्हें आज भी कर्नाटक का भगीरथ कहा जाता है. 34 साल की उम्र में विश्वेश्वरैया ने सिंधुं नदी के सुक्कुक कस्बे के लिए पानी की आपूर्ति के लिए योजना तैयारी की जिसे हर तरफ से तारीफ मिली.
92 साल की उम्र में उन्होंने पटना के राजेंद्र सेतु का निर्माण करवाया, 1955 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया. 98 साल की उम्र में भी वे नियोजन पर किताब लिखते थे.
101 वर्ष की उम्र में 14 अप्रैल 1962 को उनका निधन हो गया.