आखिर अभी भी क्यों खतरनाक है भोपाल गैस कांड का कचरा? जान लीजिए
भोपाल गैस त्रासदी 1984 में हुई एक भीषण घटना थी, जिसमें जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट का रिसाव हुआ था.
इस त्रासदी में 5,479 लोगों की मौत हो गई और पांच लाख से ज्यादा लोग अलग-अलग स्वास्थ्य समस्याओं और विकलांगताओं से प्रभावित हुए.
अब 40 साल बाद, मध्य प्रदेश सरकार ने इस त्रासदी के बाद यूनियन कार्बाइड कारखाने में पड़े 337 मीट्रिक टन जहरीले कचरे को ठिकाने लगाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.
यह कचरा इंदौर के पास पीथमपुर स्थित एक औद्योगिक अपशिष्ट निपटान इकाई में नष्ट किया जाएगा.
केंद्र सरकार ने इस कचरे के निपटारे के लिए 126 करोड़ रुपये आवंटित किए थे और यह प्रक्रिया हाल ही में तेज हुई है.
कचरे में मौजूद रासायनिक पदार्थ भोपाल शहर के पर्यावरण और लोगों की सेहत के लिए खतरा बन सकते हैं.
मध्य प्रदेश सरकार को 3 दिसंबर को निर्देश दिया गया था कि इस कचरे को चार हफ्तों के भीतर निपटान इकाई में भेजा जाए.
रिपोर्ट्स के अनुसार, इस पर काम जारी है और कचरे को जल्द ही भेजा जाएगा.
भोपाल गैस त्रासदी के कचरे का निपटारा 40 साल बाद भी एक चुनौती बना हुआ था, लेकिन अब सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठा रही है.