वैसे तो हमारे देश में भगवान श्रीकृष्ण के अनेक मंदिर हैं, लेकिन इन सभी में वृन्दावन के बांके बिहारी मंदिर का स्थान काफी विशेष है.

वृंदावन का प्राचीन बांके बिहारी मंदिर विभिन्न प्रकार के रहस्यों से भरा हुआ है. इस धाम में भक्त दूर-दूर से दर्शन की अभिलाषा लेकर आते हैं. 

पौराणिक कथाओं और ग्रंथों के अनुसार, इस धाम में भगवान कृष्ण बाल स्वरूप में विराजमान हैं. इस मंदिर का निर्माण 1864 में स्वामी हरिदास ने करवाया था.

आपने ज्यादातर मंदिरों में बड़ी-बड़ी घंटियां लगी हुई देखी होंगी, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि बांके बिहारी मंदिर में कोई घंटी नहीं लगी है. 

इसके अलावा आरती करते समय यहां ताली भी नहीं बजाई जाती है. लेकिन इन परंपराओं के पीछे छिपे कारण क्या है? आइए आपको बताते हैं. 

मान्यता है कि स्वामी हरिदास ने निधिवन में बैठकर अपनी साधना के बल पर बांके बिहारी जी को प्रकट किया था. 

वह बालक रूप बांके बिहारी को काफी प्यार करते थे और उन्हें कोई कष्ट ना हो इसलिए वह न तो घंटी बजाते थे और न ही आरती करते समय ताली बजाते थे. 

बताया जाता है कि बृज में भगवान श्री कृष्ण बाल स्वरूप में ही 7 साल के लिए रुके थे. यही वजह है कि स्वामी हरिदास कृष्ण जी की बालक के रूप में पूजा और आराधना करते थे. 

आपको बता दें आज भी वैसे ही मंदिर में उनका ध्यान रखा जाता है. मंदिर में बांके बिहारी महाराज की सेवा बाल स्वरूप में ही की जाती है. 

उनके बाल स्वरूप को ध्यान में रखते हुए मंदिर के अंदर घंटी नहीं लगाई गई. ऐसा इसलिए क्योंकि छोटे बच्चे तेज आवाज से डर जाते हैं या उन्हें परेशानी होती है. 

इसी वजह से बांके बिहारी मंदिर में घंटी और ताली नहीं बजाई जाती है. इसके अलावा इस मंदिर में जन्माष्टमी के अवसर को छोड़कर मंगला आरती यानी सुबह की आरती भी नहीं की जाती है.