देश में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों, पुरुषों के साथ यौन संबंध रखने वाले पुरुषों और महिला यौनकर्मियों को रक्तदाता बनने से बाहर रखा गया है. 

मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। केंद्र सरकार ने हलफनामे में अपना पक्ष रखा है. सरकार का कहना है कि बीमार लोगों को सुरक्षित रक्त की जरूरत होती है. 

सरकार का कहना है कि ट्रांसजेंडर, गे और सेक्सवर्कर अगर ब्लड डोनर बने तो HIV, AIDS, मलेरिया, हेपेटाइटिस बी या सी, का रिस्क बढ़ेगा.

सरकार का कहना है कि पुरुषों के साथ शारीरिक संबंध रखने वाले पुरुषों में एचआईवी, एसटीआई का खतरा ज्यादा रहता है. 

एक रिपोर्ट का कहना है कि ट्रांसजेंडरों, गे और महिला सेक्सवर्कर के बीच एचआईवी फैलने का खतरा 6 से 13 गुना अधिक है. 

वर्ष 2017 के दिशानिर्देश एचआईवी और हेपेटाइटिस संक्रमण या ‘ट्रांसफ्यूजन ट्रांसमिसिबल इंफेक्शन’ (टीटीआई) के जोखिम के कारण इन्हें रक्तदाता बनने से स्थायी रूप से रोकते हैं. 

दरअसल एक याचिका में एफीडेविट दायर किया गया है जिसमें रक्तदाता के दिशा-निर्देशों को  चुनौती दी गई है. 

केंद्र ने कहा कि ट्रांसजेंडर, एमएसएम और महिला यौनकर्मियों के जनसंख्या समूह सामाजिक ताने-बाने में हाशिए पर रहने वाले समूह बने हुए हैं

इससे जुड़े कलंक के कारण समय पर इनका इलाज कराना मुश्किल हो जाता है, भले ही वे संक्रमित हों. इसके कारण इन जनसंख्या समूहों से संक्रमण का खतरा और बढ़ जाता है. 

इन समूहों से नई उभरती बीमारियों के ट्रांसमिशन का हाई रिस्क भी है, जैसा कि हाल ही में मंकी पॉक्स के मामले में एमएसएम के बीच देखा गया था.