Atiq Ahmed Shot Dead: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले में बीते शनिवार को माफिया अतीक अहमद (Atiq Ahmed Shot Dead) और उसके भाई अशरफ (Ashraf Ahmed) की पुलिस कस्टडी (Police Custody) में गोली मार कर हत्या कर दी गई. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, जब सूबे की सड़कें सियासी खून से लाल हुई हो, इसकी शुरूआत साल 1978 में ही हो गई थी. जब गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर कौड़ीराम के विधायक रवीन्द्र सिंह की सरेआम गोली मारकर हत्या कर दी गई. रवीन्द्र सिंह की हत्या सूबे में अपराध और सियासत के गठजोड़ की शुरुआत भर थी. इसके बाद इस सियासी जंग में कई दबंग, अपराधी, छात्रनेता और निर्दोष इसकी भेंट चढ़ते गए.
यूपी की सियासत में सरकारें बदली, निजाम बदले, लेकिन नहीं बदली तो राजनीति के रक्तचरित्र की कहानी. सियासत में खेला जाने वाला खूनी खेल हर सरकार में बदस्तूर जारी रहा. चाहे सत्ता में बीजेपी आई हो, बीएसपी आई हो या फिर सपा ने सत्ता की बागडोर थामी हो, माननीयों की हत्या का खेल लगातार चलता रहा.
ये सिलसिला यहीं नहीं रुका, कई और भी इसके भेट चढ़े, लेकिन माफिया अतीक अहमद और अशरफ की हत्या ने एक बार फिर सबको झकझोर दिया है. जिससे पुरानी यादें ताजा हो रही हैं.
अपनी सियासी जमीन को सींचने के लिए खून बहाने का चलन यूपी में कोई नया नहीं है. सूबे का इतिहास ऐसी कई घटनाओं से पटा पड़ा है. जहां, सियासतदानों पर उंगलियां उठती रही हैं. फिर चाहे वो गाजीपुर का कृष्णानंद राय हत्याकांड हो, इलाहाबाद के विधायक राजूपाल की हत्या का मामला हो, या फिर मंत्री नंदगोपाल नंदी पर जानलेवा हमले का मामला. हर बार खादी पहनकर अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले ही यहां आरोपों के घेरे में रहे हैं.
आपसी वर्चस्व की ये लडाई अब जरायम की दुनिया से निकलकर सत्ता के गलियारे तक पहुंच गई है. सियासत का अपराध से नाता सियासतदानों ने ही जोड़ा. अपने दुश्मनों को रास्ते से हटाने के लिए नेताओं ने माफियाओं का इस्तेमाल किया और धीरे-धीरे ये माफिया राजनीति में सक्रीय हो गए. ऐसे में ये कह पाना मुश्किल होगा कि सियासत का खूनी खेल कब और कैसे रूकेगा.
-भारत एक्सप्रेस
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