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Chandrayaan-3: चंद्रयान-3 मिशन की सफलता में पूर्वांचल के इन दो युवा वैज्ञानिकों ने निभाई अहम भूमिका, जानिए कैसा रहा ISRO तक पहुंचने का सफर

भारत ने मिशन मून के जरिए चांद को मुट्ठी में कर लिया है. बुधवार (23 अगस्त) को शाम 6 बजकर 4 मिनट पर इसरो के वैज्ञानिकों ने इतिहास रचते हुए भारत को दुनिया के उन चंद देशों की लाइन में सबसे आगे लाकर खड़ा कर दिया. जिन्होंने मिशन मून को फतह किया. चांद पर चंद्रयान-3 की साउथ पोल पर लैंडिंग करने के साथ ही भारत ऐसा करने वाला पहला देश बन गया, जबकि चांद पर पहुंचने वाला चौथा देश. इस कामयाबी में इसरो के तमाम वैज्ञानिकों ने अहम भूमिका निभाई. जिसमें पूर्वांचल के दो युवा वैज्ञानिक भी शामिल हैं.

पूर्वांचल के रहने वाले हैं दोनों युवा वैज्ञानिक

गाजीपुर जिले के रेवतीपुर गांव के रहने वाले कमलेश शर्मा और मिर्जापुर जिले के आलोक पांडेय चंद्रयान-3 मिशन की टीम में शामिल हैं. चांद की सतह पर सफल लैंडिंग को लेकर दोनों वैज्ञानिकों के गांवों में उत्सव जैसा माहौल दिखाई दिया और खुद भी काफी गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं. चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग चांद पर करवाने के साथ ही सिग्नल के माध्यम से संपर्क स्थापित करने की जिम्मेदारी साइंटिस्ट आलोक पांडेय के कंधों पर थी. इसलिए पूरे दिन उनके घर में पूजा-पाठ होती रही.

आलोक पांडेय लैंडिंग कम्यूनिकेशन की जिम्मेदारी संभाल रहे थे

आलोक के माता-पिता के अलावा पूरे परिवार ने सफल लैंडिंग के लिए मां विंध्यवासिनी की पूजा-अर्चना की और प्रार्थना की. शाम को जैसे ही सॉफ्ट लैंडिंग हुई तो परिवार के साथ ही पूरा गांव जश्न में डूब गया. आलोक के माता-पिता की आंखों में खुशी के आंसू आ गए और भावुक होकर बोले- चंद्रयान-3 मिशन सफल हो गया. आलोक इसरो के वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं और चंद्रयान-3 मिशन की लैंडिंग कम्यूनिकेशन की जिम्मेदारी संभाल रहे थे.

कई मिशन में अहम भूमिका निभा चुके हैं कमलेश शर्मा

दूसरी तरफ कमलेश शर्मा के गांव रेवतीपुर में भी कुछ ऐसा ही नजारा दिखाई दिया. कमलेश शर्मा के गांव में भी बुधवार की सुबह से ही लोग मिशन के सफल होने की दुआएं कर रहे थे. मंदिरों में हवन-पूजन किया जा रहा था. परिवार के लोग भी सफल लैंडिंग के लिए भगवान से प्रार्थना कर रहे थे. कमलेश शर्मा चंद्रयान-3 मिशन टीम के अन्य वैज्ञानिकों के साथ शामिल हैं. कमलेश शर्मा इससे पहले 2014 के मंगलयान मिशन में चीफ कंट्रोलर की अहम भूमिका निभा चुके हैं. उसके बाद 2019 में चंद्रयान-2 मिशन का भी हिस्सा रहे.

यह भी पढ़ें- ISRO Journey: कभी साइकिल और बैलगाड़ी से रॉकेट ढोने वाला ISRO, ऐसे बना स्पेस का सुपरपावर

लखनऊ विश्वविद्यालय से पूरी की पढ़ाई

कमलेश शर्मा का जन्म 15 सिंतबर, 1986 को हुआ था. उनकी शुरुआती पढ़ाई गांव में हुई. उसके बाद इंटरमीडिएट की परीक्षा गाजीपुर से पास करने के बाद आगे की पढ़ाई लखनऊ से की. कमलेश शर्मा ने लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक और गणित से पोस्ट ग्रेजुएशन किया. वर्ष 2008 में परास्नातक में लखनऊ विश्वविद्यालय के इतिहास में सबसे ज्यादा अंक हासिल कर 10 गोल्ड मेडल प्राप्त किए. इसी दौरान कमलेश शर्मा ने नेट और गेट की परीक्षा को भी पास किया.

2010 में ज्वॉइन किया इसरो

कमलेश शर्मा ने साल 2010 में इसरो की तरफ से आयोजित मैथमैटिक्स एक्सपर्ट की एक स्पेशल परीक्षा को पास कर इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन को ज्वॉइन किया. पूरे देश में इस परीक्षा में 12 लोगों का चयन हुआ था. जिसमें कमलेश भी शामिल थे. कमलेश शर्मा ने चंद्रयान मिशन से पहले भी कई स्पेस प्रोजेक्ट में शामिल रह चुके हैं. इनमें मार्स आर्बिटर मिशन (मंगलयान), कार्टोसैट-1, ओशनसैट-2, हैमसैट, कार्टोसैट-2ए, इंडिया और फ्रांस के ज्वाइंट वेंचर सेटेलाइट, मेघा ट्रोपिक-1 सेटेलाइट के सफल प्रक्षेपण अहम भूमिका रही है.

-भारत एक्सप्रेस

Shailendra Verma

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