India Gig Economy: फोरम फॉर प्रोग्रेसिव गिग वर्कर्स के एक श्वेत पत्र के मुताबिक, गिग इकॉनमी बाजार के 2024 तक 17 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़कर 455 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है. भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में इसका योगदान काफी बड़ा होने का अनुमान है, जिसमें 2030 तक जीडीपी में 1.25 प्रतिशत जोड़ने और लंबी अवधि में 90 मिलियन (9 करोड़) नौकरियां पैदा करने की क्षमता है. बता दें कि गिग इकॉनमी ई-कॉमर्स, परिवहन और डिलीवरी सेवाओं जैसे क्षेत्रों का समर्थन करती है.
फोरम फॉर प्रोग्रेसिव गिग वर्कर्स के संयोजक के नरसिम्हन ने कहा, “यह रिपोर्ट बड़ी कंपनियों और गिग वर्कर्स के बीच विकसित हो रहे गतिशीलता का विश्लेषण करने का एक प्रारंभिक प्रयास प्रस्तुत करती है. यह इस क्षेत्र के भीतर चुनौतियों और अवसरों को समझने के लिए एक प्रारंभिक बिंदु है.” समूह बाद में एक औपचारिक रिपोर्ट जारी करने के लिए वैश्विक संगठनों के साथ काम करने की योजना बना रहा है जो कार्रवाई के लिए गहन सिफारिशें प्रदान करेगी.
इंडिया एसएमई फोरम के अध्यक्ष विनोद कुमार ने बताया कि भारत की गिग इकॉनमी तेजी से बढ़ने वाली है. साथ ही उम्मीद है कि 2030 तक इसमें 23.5 मिलियन गिग वर्कर काम करेंगे और जीडीपी में 1.25 प्रतिशत का योगदान देंगे. उन्होंने कहा, “टियर-2 और टियर-3 शहर विकास केंद्रों के रूप में उभर रहे हैं और प्लेटफॉर्म कल्याणकारी पहलों को आगे बढ़ा रहे हैं, ऐसे में गिग वर्क का भविष्य एआई, प्रेडिक्टिव एनालिटिक्स और डिजिटल इनोवेशन का लाभ उठाकर टिकाऊ, समावेशी अवसर बनाने में निहित है.”
इनगवर्न रिसर्च सर्विसेज के संस्थापक श्रीराम सुब्रमण्यन ने कहा कि चूंकि ऐसे श्रमिक अक्सर संगठित और असंगठित श्रम के बीच ग्रे जोन में आते हैं, जिससे लाभ और संसाधन प्रभावित होते हैं, इसलिए प्लेटफॉर्म कंपनियां गिग वर्कर्स के लिए बेहतर कामकाजी परिस्थितियों को प्राथमिकता दे रही हैं, जिसमें मानसून के दौरान टिकाऊ रेनकोट प्रदान करने से लेकर आराम करने के लिए जगह बनाने और खराब मौसम के दौरान पानी की सुविधा उपलब्ध कराना शामिल है.
उन्होंने कहा, “अमेजन, वॉलमार्ट की फ्लिपकार्ट, जोमैटो और स्विगी जैसी कंपनियां अपने कर्मचारियों की भलाई सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय रूप से उपायों को लागू कर रही हैं, जो गिग वर्कर्स के लिए सुरक्षित और अधिक सहायक है. हालांकि, उन्होंने कहा कि अमेजन इंडियन वर्कर्स एसोसिएशन या गिग एंड प्लेटफॉर्म सर्विसेज वर्कर्स यूनियन (GIPSWU) जैसे संगठनों की सक्रियता, जिसके बारे में उन्होंने आरोप लगाया कि वे स्वार्थ से प्रेरित हैं, वास्तविक प्रगति को कमज़ोर करने का जोखिम उठाती है और संभावित रूप से उन कर्मचारियों को नुकसान पहुंचाती है जिनका वे प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं.
पॉलिसी कंसेंसस सेंटर की संस्थापक निरुपमा सुंदरराजन ने भी पूर्णकालिक और गिग वर्कर्स को समान मानने के खिलाफ चेतावनी दी. “जबकि गिग वर्कर्स के लिए सामाजिक लाभ आवश्यक हैं, पूर्णकालिक रोजगार और गिग कार्य के बीच अंतर बनाए रखना महत्वपूर्ण है. दोनों को समान करने से श्रम बाजार बाधित हो सकता है, पूर्णकालिक भूमिकाओं की अपील कम हो सकती है और उत्पादकता और आर्थिक स्थिरता प्रभावित हो सकती है.”
-भारत एक्सप्रेस
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