DU Syllabus: दिल्ली विश्वविद्यालय की एकेडमिक काउंसिल (AC) ने नए पाठ्यक्रम से ‘मुहम्मद इकबाल’ संबंधित एक अध्याय हटाकर ‘वीर सावरकर’ पर एक नया पाठ्यक्रम शुरू करने की मंजूरी दी है. अब दिल्ली विश्वविद्यालय की एकेडमिक काउंसिल के इस निर्णय को देश के कई बड़े सेवानिवृत्त अधिकारियों का समर्थन मिला है. इन अधिकारियों में 12 राजदूतों और 64 सेवानिवृत्त सशस्त्र बल अधिकारियों सहित 59 रिटायर्ड नौकरशाह शामिल हैं.
समर्थन करने वाले बी.एल. वोहरा सहित और अधिकारियों ने एक ज्वाइंट स्टेटमेंट में कहा कि किताबों में लिखे गए इतिहास और किसी भी देश में पढ़ाए जाने वाले इतिहास को सच्चाई से तथ्यों को प्रकट करना चाहिए. तथ्यों की पक्षपातपूर्ण प्रस्तुति ने इतिहास और राजनीति विज्ञान के शिक्षण पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है. इसकी वजह कांग्रेस रही है. कई ऐतिहासिक शख्सियतों के साथ घोर अन्याय किया गया, जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के चंगुल से भारत को मुक्त कराने में अपना बलिदान दिया. हम डीयू के इस फैसले का स्वागत करते हैं.
उन्होंने कहा, “वीर सावरकर, एक प्रतिष्ठित स्वतंत्रता सेनानी, कवि और राजनीतिक दार्शनिक थे. उन्हें ‘काला पानी’ यानी अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में एक ब्रिटिश जेल में सलाखों के पीछे लगभग एक दशक तक रखा गया. उन्हें छह महीने के लिए एकांत कारावास में भी रखा गया था. अपनी किताब ‘हिंदुत्व: हू इज ए हिंदू’ में उन्होंने ‘हिन्दुत्व’ का प्रचार किया. स्वतंत्रता, सामाजिक सुधार और राष्ट्रीय एकता पर सावरकर के विचार उन्हें महान बनाते हैं.
अधिकारियों ने आगे कहा कि इकबाल जिन्होंने ‘सारे जहां से अच्छा…’ लिखा था, वह इस्लामी के बारे में बात करते हैं
उन्होंने खिलाफत, इस्लामिक उम्माह की सिफारिश की. इकबाल कट्टरपंथी थे. इसलिए, उन्हें ‘आधुनिक भारतीय राजनीतिक विचार’ की सूची से हटाना सही है. दिल्ली विश्वविद्यालय की एकेडमिक काउंसिल के कदम का हम तहे दिल से स्वागत करते हैं. हम सभी सही सोच वाले देशभक्तों से इसका समर्थन करने का आग्रह करते हैं.
बता दें कि ‘सारे जहां से अच्छा’ लिखने वाले कवि मुहम्मद इकबाल के कंटेंट को बीए ऑनर्स राजनीति विज्ञान के छात्रों को पढ़ाए जाने वाले ‘मॉडर्न इंडियन थिंकर्स’ नामक पाठ्यक्रम से हटा दिया गया है. अब इन पाठ्यक्रमों में सावरकर के कंटेंट को शामिल किया गया है. हालांकि, ये पाठ्यक्रम छात्रों के लिए वैकल्पिक होंगे.
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डीयू के शिक्षकों के मुताबिक, अब राजनीति विज्ञान के पाठ्यक्रम में महात्मा गांधी के पेपर की जगह सावरकर के पेपर को एक पेपर से बदलकर उसमें हिंदुत्व विचारक वी डी सावरकर पर रख दिया है. यानी सिलेबस में उलटफेर कर दिया गया है. महात्मा गांधी पर पेपर अब सेमेस्टर सात में पढ़ाया जाएगा जबकि यह पहले पांचवे सेमेस्टर में ही पढाया जाता था. नए सिलेबस के अनुसार, अगर कोई स्टूडेंट 4 के जगह 3 साल में ही बीए राजनीति विज्ञान विषय छोड़ देता है तो उसे भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी के बारे में पढ़ने का मौका नहीं मिलेगा. साथ ही सिलेबस से इकबाल का नाम ही हटा दिया गया है. पूरे कोर्स के दौरान छात्रों को अलामा इकबाल के बारे में पढ़ने का मौका नहीं मिलेगा.
-भारत एक्सप्रेस
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