संसद में संविधान पर चर्चा के दौरान भीम आर्मी के प्रमुख और नगीना से सांसद चंद्रशेखर रावण ने हरे रंग की संविधान की प्रति हाथ में लेकर एक बड़ा सवाल खड़ा किया. उन्होंने पूछा कि क्या हम संविधान के दायरे में रहते हुए चर्चा कर रहे हैं, और क्यों “भारत” की जगह “हिंदुस्तान” कहा जा रहा है, जबकि संविधान में ऐसा उल्लेख नहीं है?
चंद्रशेखर रावण (Chandrashekhar Ravan) ने संविधान सभा के हवाले से भारत को “BHARAT” कहने की बात दोहराई. उनका कहना था कि बड़े नेता और विचारक संविधान का सम्मान तो करते हैं, लेकिन इसका सही संदर्भ देने में झिझकते हैं. उन्होंने कहा कि संविधान में “India that is Bharat” लिखा है, “हिंदुस्तान” नहीं.
रावण ने संविधान की पृष्ठभूमि और बाबा साहेब अंबेडकर के योगदान की चर्चा की. उन्होंने कहा कि संविधान लागू होने के 75 साल बाद भी हम सामाजिक और आर्थिक समानता प्राप्त नहीं कर पाए हैं. उन्होंने कहा कि संविधान ने राजनीतिक समानता दी, लेकिन सामाजिक और आर्थिक असमानता अभी भी बनी हुई है. गरीब और वंचित वर्गों के साथ भेदभाव आज भी जारी है.
उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद आरक्षण लागू करने में देरी की जा रही है.
उन्होंने पूछा कि कितने दलित मुख्यमंत्री और महिला मुख्यमंत्री सरकार ने बनाए हैं?
उन्होंने छत्तीसगढ़ के सतनामी समाज का मुद्दा उठाते हुए आरोप लगाया कि संविधान में दिए गए धार्मिक अधिकारों (Rligious Rights) का सम्मान नहीं हो रहा है. उन्होंने कहा कि समाज के लोगों को उनकी धार्मिक आजादी के लिए अपमानित किया गया और जेल में डाल दिया गया.
रावण ने यह भी कहा कि राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी थी कि वे संविधान को व्यवहार में लाते, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. उन्होंने जाति आधारित भेदभाव और वंचित वर्गों के साथ हो रहे अन्याय की ओर ध्यान दिलाया. उन्होंने संसद में बैठे ओबीसी और दलित नेताओं से आग्रह किया कि वे अपने वर्गों के लिए ईमानदारी से काम करें.
चंद्रशेखर रावण ने बाबा साहेब के कथन को याद दिलाया कि स्वतंत्रता आनंद का विषय है, लेकिन इसके साथ जिम्मेदारियां भी आती हैं. उन्होंने सरकार और जनता दोनों से संविधान के प्रति निष्ठा बनाए रखने की अपील की. उनका कहना था कि संविधान ने हमें अधिकार दिए हैं, लेकिन हमें अपने कर्तव्यों को भी समझना होगा.
चंद्रशेखर रावण का यह भाषण संविधान की महानता और उसकी चुनौतियों पर ध्यान दिलाने वाला था. उन्होंने सरकार, राजनीतिक दलों, और समाज से आग्रह किया कि वे संविधान को केवल एक दस्तावेज न समझें, बल्कि इसे अपने जीवन में अपनाएं.
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-भारत एक्सप्रेस
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