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अर्थशास्त्रियों ने भारत की बढ़ती जीडीपी की सराहना की

भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय दुनिया की तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्थाओं में से एक है. बात करें इसकी वृद्धि दर की तो भारतीय अर्थव्यवस्था पिछले वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में 6.1 प्रतिशत की दर से बढ़ी, वित्त वर्ष 2023 के लिए समग्र विकास दर को 7.2 प्रतिशत तक पहुंंचने की संभावना है. ऐसे में जब आर्थिक जगत के दिग्गजो ने भारतीय अर्थव्यवस्था से जुड़े डेटा को देखा तो इसे लेकर उन्होंने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी. हालांकि, उन्होंने कुछ बातों को लेकर सजगता बरतने की भी बात कही.

विनिर्माण क्षेत्र में बढ़ोतरी

बात करें विनिर्माण क्षेत्र की तो इस में सकल मूल्य वर्धित (जीवीए) वृद्धि मार्च तिमाही में बढ़कर 4.5 प्रतिशत हो गई, जबकि एक साल पहले यह 0.6 प्रतिशत थी. चौथी तिमाही में खनन क्षेत्र में जीवीए वृद्धि पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाही में 2.3 प्रतिशत की तुलना में 4.3 प्रतिशत थी. निर्माण क्षेत्र मार्च तिमाही में 10.4 प्रतिशत बढ़ा, जो 2021-22 की इसी अवधि में 4.9 प्रतिशत था. कृषि क्षेत्र की विकास दर 4.1 प्रतिशत से बढ़कर 5.5 प्रतिशत हो गई. हालांकि, निर्यात और आयात दोनों में गिरावट आई, जिससे आर्थिक दृष्टिकोण पर कुछ मायूसी जरूर रही. भारत की अर्थव्यवस्था चालू वित्त वर्ष (अप्रैल 2023 से मार्च 2024) के लिए 6.5 प्रतिशत की वृद्धि के प्रारंभिक अनुमान को पार कर सकती है.

तिमाही दर तिमाही बढ़ोतरी

निजी खपत, जो कि अर्थव्यवस्था का लगभग 60% है, पिछली तिमाही में 2.2% की तुलना में वर्ष-दर-वर्ष 2.8% बढ़ी, जबकि पूंजी निर्माण, निवेश का संकेतक, 8% से 8.9% बढ़ा . पिछली तिमाही में संशोधित 0.6% संकुचन की तुलना में संघीय सरकार का खर्च, सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 10%, नवीनतम तिमाही में 2.3% वर्ष-दर-वर्ष बढ़ा.

प्रमुख अर्थशास्त्रियों के अनुसार अब तक 2023 में नई निवेश परियोजनाओं (CMIE) में वृद्धि हुई, लेकिन वृद्धि काफी हद तक परिवहन क्षेत्र द्वारा संचालित है. वहीं आर्थिक गतिविधि की वृद्धि की गति में 4.5 प्रतिशत के निचले स्तर से 6.1 प्रतिशत की क्रमिक वृद्धि की आशा की पुष्टि की. वहीं वित्त वर्ष 24 में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में 6 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया गया है.

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महामारी के बाद की तेजी

वहीं एक और अर्थशास्त्री के अनुसार आर्थिक गतिविधियों में महामारी के बाद की तेजी के कारण घरेलू शहरी मांग में कुछ कमी देखने को मिल सकती है. अभी भी उच्च कोर मुद्रास्फीति शहरी उपभोक्ताओं द्वारा विवेकाधीन वस्तुओं पर खर्च को रोक सकती है. हालांकि, कम खाद्य मुद्रास्फीति और उच्च ग्रामीण मजदूरी की उम्मीद पर ग्रामीण मांग में धीरे-धीरे बढ़ोतरी समग्र खपत मांग का समर्थन करेगी. वहीं मानसून के मौसम के दौरान अल-नीनो की स्थिति का विकास कृषि उत्पादन और ग्रामीण आय के लिए एक प्रमुख जोखिम बना हुआ है. कुल मिलाकर, सकल घरेलू उत्पाद में निजी खपत की हिस्सेदारी में मामूली गिरावट देखी जा सकती है.

Rohit Rai

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