1997 Custodial Torture Case: गुजरात के पोरबंदर की एक अदालत ने 1997 के हिरासत में यातना मामले में पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट (Ex IPS Officer Sanjiv Bhatt) को बरी कर दिया है. अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष ‘मामले को साबित नहीं कर सका’. अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट मुकेश पंड्या ने शनिवार (7 दिसंबर) को पोरबंदर के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक (SP) भट्ट को साक्ष्य के अभाव में संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया.
भट्ट पर गंभीर चोट पहुंचाने और अन्य प्रावधानों के तहत IPC की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था. भट्ट को इससे पहले जामनगर में 1990 के हिरासत में मौत के मामले में आजीवन कारावास और पालनपुर में राजस्थान के एक वकील को फंसाने के लिए ड्रग्स रखने के 1996 के मामले में 20 साल की सजा सुनाई गई थी. वह फिलहाल राजकोट सेंट्रल जेल में बंद है.
अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष ‘उचित संदेह से परे मामले को साबित नहीं कर सका’ कि शिकायतकर्ता को अपराध कबूल करने के लिए मजबूर किया गया और खतरनाक हथियारों और धमकियों का इस्तेमाल करके स्वेच्छा से दर्द पहुंचाकर आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर किया गया. न्यायालय ने यह भी कहा कि आरोपी, जो उस समय एक लोक सेवक था और अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहा था, के विरुद्ध मुकदमा चलाने के लिए आवश्यक मंजूरी मामले में प्राप्त नहीं की गई थी.
पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 330 (जबरन कबूलनामा करवाने के लिए चोट पहुंचाना) और 324 (खतरनाक हथियारों से चोट पहुंचाना) के तहत आरोप लगाए गए थे. यह आरोप नारन जाधव नामक व्यक्ति ने लगाया था, जिसने भट्ट पर आतंकवादी और विध्वंसकारी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (TADA) और शस्त्र अधिनियम के एक मामले में कबूलनामा करवाने के लिए पुलिस हिरासत में उसे शारीरिक और मानसिक यातना देने का आरोप लगाया था.
नारन जाधव 1994 के हथियार बरामदगी मामले में 22 आरोपियों में से एक थे. अभियोजन पक्ष के अनुसार, 5 जुलाई 1997 को एक पुलिस दल ने जाधव को अहमदाबाद की साबरमती सेंट्रल जेल से ट्रांसफर वारंट के तहत पोरबंदर में भट्ट के थाने में स्थानांतरित किया था और इसी दौरान जाधव को बिजली के झटके देकर प्रताड़ित किया गया था. भट्ट उस वक्त पोरबंदर के पुलिस अधीक्षक (SP) थे.
बाद में जाधव ने भट्ट के कहने पर उनके साथ कथित तौर पर किए गए अत्याचार के संबंध में न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष औपचारिक शिकायत दर्ज कराई. इसके बाद न्यायिक मजिस्ट्रेट ने जांच का आदेश दिया. भट्ट के खिलाफ सबूतों के आधार पर दिसंबर 1998 में मामला दर्ज किया गया और भट्ट और एक पुलिस कांस्टेबल वजुभाई चौ को समन जारी किया गया. 2013 में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई. बाद में चौ की मौत के बाद उनके खिलाफ मामला खत्म हो गया.
इस साल मार्च में गुजरात के बनासकांठा जिले के पालनपुर की एक सत्र अदालत ने 1996 के ड्रग-प्लांटिंग मामले में भट्ट को 20 साल की जेल की सजा सुनाई थी. भट्ट पर कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और गुजरात के पूर्व पुलिस महानिदेशक आरबी श्रीकुमार के साथ 2002 के गुजरात दंगों के मामलों के संबंध में कथित तौर पर सबूत गढ़ने के मामले में भी FIR दर्ज है.
-भारत एक्सप्रेस
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