हाईकोर्ट ने जामिया मिलिया इस्लामिया से कहा कि वह अपनी आवासीय कोचिंग अकादमी (आरसीए) में ओबीसी (गैर-क्रीमी लेयर) श्रेणी और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के छात्रों को नामांकन करने के मुद्दे पर दाखिल याचिका को बतौर प्रतिवेदन समक्षते हुए उचित निर्णय ले. याचिकाकर्ता ने कहा था कि आरसीए सिविल सेवा अभ्यर्थियों के लिए एक मुफ्त कोचिंग कार्यक्रम है.वह केवल महिलाओं तथा अल्पसंख्यक या अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदायों के सदस्यों का नामांकन करता है. वहीं मनमाने ढंग से काम करते हुए अन्य वंचित श्रेणियों को छोड़ देता है.
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन एवं न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने कहा कि विधि के छात्र सत्यम सिंह ने बिना किसी पूर्व प्रतिवेदन के सीधे अदालत का रूख किया है. इस दशा में यह अदालत जामिया मिल्लिया इस्लामिया को इसे एक प्रतिवेदन के तौर पर मानने और कानून के अनुसार चार सप्ताह में निर्णय लेने का निर्देश देता है.पीठ ने इसके साथ ही इससे संबंधित याचिका को निपटा दिया.
पीठ ने सुनवाई के दौरान मौखिक रूप से कहा कि ओबीसी और ईडब्ल्यूएस वर्ग के लोग भी पिछड़े हैं. उन्हें मुफ्त कोचिंग का लाभ दिया जाना चाहिए. जामिया उन्हें कोचिंग की सुविधा दे. क्योंकि ओबीसी और ईडब्ल्यूएस भी पिछड़े हैं. याचिकाकर्ता के कवील संजय पोद्दार व आकाश वाजपेई ने कोर्ट से कहा था कि आरसीए की वर्तमान प्रवेश नीति मनमानी है.ओबीसी एवं ईडब्ल्यूएस छात्रों के साथ भेदभाव करती है. उनके पास सीमित वित्तीय साधन हैं और वे भी सिविल सेवा परीक्षा के लिए मुफ्त कोचिंग के हकदार हैं.
-भारत एक्सप्रेस
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