आम आदमी पार्टी के नेता सोमनाथ भारती द्वारा नई दिल्ली लोकसभा क्षेत्र से भाजपा नेता बांसुरी स्वराज के निर्वाचन को चुनौती देने वाली याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने फिलहाल सुनवाई से इनकार किया है. मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सोमनाथ भारती से कहा कि आपकी याचिका में कई खामियां हैं. इसलिए याचिका पर नोटिस जारी नहीं कर रहे हैं. कोर्ट ने सोमनाथ भारती को याचिका में सुधार करने को कहा है. कोर्ट 13 अगस्त को मामले में अगली सुनवाई करेगा.
जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ सोमनाथ भारती की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है. याचिका में कहा गया है कि रिटर्निंग अधिकारी के अनुसार सोमनाथ भारती को तीन लाख 74 हजार 815 वोट मिले, जबकि बांसुरी स्वराज को चार लाख 53 हजार 185 वोट मिले. उन दोनों ने नई दिल्ली संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा और स्वराज को विजेता घोषित किया गया. सोमनाथ भारती ने यह याचिका जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 80 और 81 के तहत दायर की है. हाल ही में सम्पन्न लोकसभा चुनावों में बांसुरी स्वराज ने सोमनाथ भारती को हराया था. भाजपा ने दिल्ली की सभी सातों लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी.
सोमनाथ भारती ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर कर बांसुरी स्वराज पर आरोप लगाया है कि स्वराज और उनके चुनाव एजेंट ने 25 मई 2024 को दिल्ली में हुए मतदान के दौरान गलत आचरण किया. कई आरोपों के बीच भारती ने कहा है कि स्वराज के निर्देश पर भाजपा कार्यकर्ता लोगों को पैसे, साड़ी और सलवार सूट बांट रहे थे. बांसुरी स्वराज की सहमति से और उनके निर्देश पर काम कर रहे थे.
आप कार्यकर्ताओं और आम जनता ने उनके पक्ष में वोट देने के लिए मतदाताओं को लुभाने के लिए सामग्री वितरित करना बंद करने को कहा, लेकिन उन्होंने उनकी बात को नजरअंदाज कर दिया और सामग्री बांटनी जारी रखा. याचिका में आगे कहा गया है कि मतदान के दिन स्वराज के दोनों एजेंटों के पास उनके मतपत्र संख्या, फोटो, चुनाव चिन्ह और पीएम मोदी की फोटो वाले पर्चे थे. याचिका में यह भी कहा गया है कि बसपा के उम्मीदवार राज कुमार आनंद को भाजपा ने स्वराज की मदद करने के लिए खड़ा किया था, क्योंकि वह पहले दिल्ली में आप सरकार में मंत्री थे.
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आरोप है कि आनंद ने एजेंसियों के दबाव में पार्टी से इस्तीफा दे दिया और बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ने के बाद बीजेपी में शामिल हो गए. याचिका में यह भी कहा गया है कि राज कुमार आनंद ने खुलासा किया कि उनपर जांच एजेंसियों का दबाव था इसलिए उनके पास इस्तीफा देने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं था. अगर वो इस्तीफा नहीं देते तो जांच एजेंसियां उनको गिरफ्तार कर लेती.
-भारत एक्सप्रेस
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