चुनाव संचालन में नियम में संशोधन के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. सुप्रीम कोर्ट 17 मार्च से शुरू होने वाले सप्ताह में अगली सुनवाई करेगा. यह याचिका कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश की ओर से दायर की गई है. सीजेआई संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच मामले में सुनवाई कर रही है.
मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यह उन्होंने बड़ी चतुराई से किया है, यह पहले के नियमों में नही था. सिंघवी ने कहा कि प्रेस में दिए गए कारणों में से एक यह बताया है कि वीडियो फुटेज इसलिए हटा लिया, क्योंकि इससे मतदाता की पहचान उजागर हो जाएगी. याचिका में चुनाव नियम 1961 में संशोधन को चुनौती दी गई है. ये नियम कुछ इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों को सार्वजनिक निरीक्षण के लिए रोके जाने को लेकर है, जिस पर कांग्रेस को आपत्ति है.
केंद्र सरकार ने हाल ही में भारतीय निर्वाचन आयोग की सिफारिश पर सीसीटीवी कैमरा और वेबकास्टिंग फुटेज के साथ-साथ उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे कुछ इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों के सार्वजनिक निरीक्षण को रोकने के लिए चुनाव संचालन नियम में बदलाव किया है ताकि उनका दुरुपयोग रोका जा सके. केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय ने चुनाव संचालन नियम 1961 के नियम 93 (2) (ए) में संशोधन किया, ताकि सार्वजनिक निरीक्षण के लिए खुले कागजात या दस्तावेजों के प्रकार को प्रतिबंधित किया जा सके.
रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि चुनाव नियम 1961 में हाल ही में किए गए संशोधनों को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में रिट दायर की गई है. स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए जिम्मेदार संवैधानिक निकाय चुनाव को एक तरफा और बिना सार्वजनिक परामर्श के इस तरह के महत्वपूर्ण कानून में इस तरह के बेशर्मी से संशोधन करने की अनुमति नहीं दी जा सकती. रमेश ने कहा कि चुनाव प्रक्रिया में सत्यनिष्ठा तेजी से कम हो रही है और उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट इसे बहाल करने में मदद करेगा.
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बता दें कि पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने एक केस में हरियाणा विधानसभा चुनाव से जुड़े दस्तावेज याचिकाकर्ता से साझा करने का निर्देश दिया था. इसमें सीसीटीवी फुटेज को भी नियम 93(2) के तहत माना गया था. हालांकि चुनाव आयोग ने कहा था कि इस नियम में इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड शामिल नहीं है. इस अस्पष्टता को दूर करने के लिए नियम में बदलाव किया गया है. सरकार का कहना है कि ऐसा करने के पीछे उसका मकसद इनका दुरुपयोग रोकना है.
अधिकारियों ने बताया था कि AI के इस्तेमाल से पोलिंग स्टेशन के सीसीटीवी फुटेज से छेड़छाड़ करके फेक नैरेटिव फैलाया जा सकता है. बदलाव के बाद भी ये कैंडिडेट्स के लिए उपलब्ध रहेंगे. अन्य लोग इसे लेने के लिए कोर्ट जा सकते हैं. नियम में बदलाव के बाद 21 दिसंबर को कांग्रेस ने चुनाव आयोग पर चुनावी प्रक्रिया की सत्यनिष्ठा खत्म करने का और पारदर्शिता कमजोर करने का आरोप लगाया था.
-भारत एक्सप्रेस
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