Lok Sabha Elections 2024: लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़ा फेरबदल हो गया है. रालोद प्रमुख जयंत चौधरी ने सपा का साथ छोड़कर NDA के साथ हो लिए हैं तो वहीं राजनीतिक जानकार मानते हैं कि, जयंत के साथ छोड़ने से सपा को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तमाम मुश्किल हो सकती है. सपा का पूरा समीकरण बदल सकता है. खासकर जाट बहुल सीटों पर पार्टी को नए सिरे से मशक्कत करनी पड़ेगी, जबकि चुनाव सिर पर हैं.
वहीं, 2022 के विधानसभा चुनाव में दोनों दलों के एक साथ रहने का फायदा भी मिला था. तो वहीं इस कसमकस को लेकर सपा की ओर से राष्ट्रीय सचिव राजेंद्र चौधरी का बयान सामने आया है और कहा है कि, अखिलेश यादव चौधरी चरण सिंह की ही नीतियों को आगे बढ़ा रहे हैं. जनता समझदार है किसी के जाने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा.
जयंत के एनडीए में शामिल होने को लेकर राजनीतिक जानकारों का कहना है कि, पश्चिमी यूपी की करीब 18 सीटें ऐसी हैं, जो जाट वोटर्स से प्रभावित हैं. इसमें कैराना के साथ ही मुरादाबाद, अमरोहा, अलीगढ़, मुजफ्फरनगर, मेरठ, सहारनपुर, बिजनौर, संभल, नगीना आदि सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं का काफी असर है. इन जगहों पर यहां जाट और मुस्लिम गठजोड़ जीत की संभावनाओं को प्रबल बनाते हैं.
सपा-रालोद के साथ मिलकर इस समीकरण को साधने में जुटी थी. अगर 2018 की बात करें तो कैराना लोकसभा सीट के उपचुनाव में सपा-रालोद ने एक साथ मिलकर इस सीट पर जीत हासिल की थी तो वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में भी अखिलेश ने सपा के कोटे से 2 सीटें रालोद को दी थीं, लेकिन खाता नहीं खुला था. हालांकि 2022 के विधानसभा चुनाव में भी दोनों दल साथ दिखे थे और मेरठ, मुरादाबाद के साथ ही सहारनपुर मंडल में खास तौर पर जाट-मुस्लिम समीकरण पर अपना खास असर छोड़ा था. यही वजह रही थी कि, विपक्ष की सीटें बढ़ीं थी.
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तो वहीं 2017 में भाजपा ने इन मंडलों की 71 में 51 सीटें जीती थीं. हालांकि 2022 में यह आंकड़ा घटकर 40 हो गया और विपक्ष की सीटें बढ़कर 20 से 31 हो गईं थी. भाजपा लगातार पश्चिमी यूपी को साधने के लिए काम कर रही है और यही वजह है कि, पिछले एक दशक में भाजपा ने जाट वोटरों के बीच अपनी पैठ काफी मजबूत की है.
वहीं अब माना जा रहा है कि, रालोद के साथ छोड़ने के बाद सपा के लिए जाट वोट बैंक में हिस्सेदारी मुश्किल हो सकती है और पार्टी को नए सिरे से मशक्कत करनी पड़ सकती है. क्योंकि सपा के पास वर्तमान में वेस्ट यूपी में कोई मुखर जाट चेहरा नहीं है. तो वहीं माना जा रहा है कि जयंत के जाने से होने वाले नुकसान को लेकर अखिलेश ने पार्टी कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों के साथ बैठकें शुरू कर दी हैं और वेस्ट यूपी को साधने के लिए नई रणनीति पर काम भी करना शुरू कर दिया है.
-भारत एक्सप्रेस
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