Sinking Zone Berezniki: ये बात तो सच है कि इंसान अपने हितों के लिए लगातार प्रकृति और धरती से खिलवाड़ कर रहा है. बढ़ती आबादी के कारण लगातार बड़े स्तर पर धरती का दोहन हो रहा है और साइंस के प्रयोग ने धरती का सीना छलनी कर दिया है लेकिन ये भी सच है कि अगर इंसान जल्द ही नहीं चेता तो उसे इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ेगी. हमें धरती को बचाने और पर्यावरण को शुद्ध रखने के लिए लगातार बड़ी संख्या में पेड़-पौधे लगाने चाहिए. हम विकास के नाम पर बड़ी संख्या में पेड़-पौधों को काटते तो जा रहे हैं लेकिन बहुत ही कम संख्या में रोपित कर पा रहे हैं. जिसका बड़ा खामियाजा इंसानों को उठाना पड़ सकता है.
आप सभी को भारत के उत्तराखंड के जोशीमठ के बारे में मालूम ही होगा जहां धरती धंसने की खबर ने दुनिया भर को चिंता में डाल दिया था लेकिन हम बात कर रहे हैं रशिया में स्थित बेरेज्निकी की. बता दें कि यह जगह पोटाश खदान के ऊपर बनी है. सोवियत काल के दौरान ये जगह सामान्य थी, लेकिन यहां से आवश्यकता से अधिक पोटाश निकाल ली गई है और लगातार खुदाई हो रही है. इसी वजह से ये जगह धंसने लगा है. आज ये जगह धंसता क्षेत्र (sinking zone) में आ चुकी है व अब लोग लगातार सदियों की अपनी जमीन को छोड़कर किसी अन्य शहर में आसरा लेने के लिए भाग रहे हैं.
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अगर मीडिया रिपोर्ट की मानें तो ये शहर कई मायनों में बहुत ही खास है, क्योंकि ये हजारों लोगों को नौकरी देता है. दरअसल पोटाश के खदान में लगातार हो रही खुदाई में हजारों लोग काम करते हैं. तो वहीं इस खुदाई के कारण जमीन के नीचे गहरे गड्ढे बन गए, जो किसी गुफा से कम नहीं दिखाई देते और इनकी छतें नमक के खंभों पर टिकी हुई है. जानकारी के मुताबिक ये शहर दुनिया की 10% पोटाश की आवश्यकता को पूरा करता है. अब लगातार खुदाई के कारण लोगों पर ही खतरा मंडराने लगा है. कहा जा रहा है कि अगर इस खदान को बंद किया जाता है तो फिर यहां काम कर रहे लोगों की नौकरी चली जाएगी.
हालांकि, कुछ समय से लगातार इस शहर को लोग छोड़कर पलायन कर रहे हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 में 12,000 लोग बेरेज्निकी छोड़ चुके हैं. तो वहीं जो लोग रह रहे हैं, उनके ऊपर सरकार लगातार नजर रख रही है. साल 2006 में इस जगह को लेकर एक रिपोर्ट सामने आई थी, जिसमें बताया गया था कि करीब 720 से 1,500 फीट नीचे खदान में मीठे पानी का झरना बहने लगा, जिसने नमक की दीवारों और खंभों को खत्म कर दिया. इसी के बाद से यहां पर धरती का हिस्सा खुद ही धंसने लगा.
-भारत एक्सप्रेस
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