भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने अपने जीवनकाल में तीन बार पाकिस्तान का दौरा किया, लेकिन अपने पैतृक गांव ‘गाह’ लौटने का उनका सपना कभी पूरा नहीं हो सका. इसके पीछे देश के विभाजन से जुड़ी दर्दनाक यादें थीं, जिन्होंने उन्हें गांव लौटने से रोक दिया.
डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के गाह गांव में हुआ था. बचपन का यह गांव उनके दिल के बेहद करीब था. लेकिन, 1947 में भारत के विभाजन के दौरान हुए दंगों और विस्थापन ने उनके परिवार और लाखों अन्य परिवारों की जिंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया. विभाजन की त्रासदी ने उनकी स्मृतियों में गहरा दर्द छोड़ा, जिससे वे कभी उबर नहीं सके.
डॉ. मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री रहते हुए और अन्य अवसरों पर पाकिस्तान का दौरा किया. उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों को सुधारने की दिशा में कई कदम उठाए. बावजूद इसके, वे कभी गाह गांव जाने के लिए तैयार नहीं हो पाए.
गाह गांव के लोगों ने हमेशा उम्मीद की कि डॉ. मनमोहन सिंह एक दिन अपने जन्मस्थान लौटेंगे. गांव के बुजुर्ग आज भी उनके बचपन की कहानियों को याद करते हैं और गर्व महसूस करते हैं कि उनके गांव से भारत का एक महान नेता निकला.
डॉ. मनमोहन सिंह की कहानी उस पीढ़ी के लाखों लोगों के दर्द को बयां करती है, जिन्होंने विभाजन के दौरान अपना सबकुछ खो दिया. उनका गाह न लौटना सिर्फ उनकी निजी भावनाओं का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह विभाजन की गहरी चोट का उदाहरण भी है.
डॉ. मनमोहन सिंह का गाह गांव न लौटना यह दिखाता है कि विभाजन का असर न केवल उस समय बल्कि दशकों बाद भी लोगों के दिलों में जिंदा है. यह कहानी हमें याद दिलाती है कि शांति और आपसी समझ दोनों देशों के बीच कितनी महत्वपूर्ण हैं.
-भारत एक्सप्रेस
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