26 और 27 दिसंबर को कर्णाटक के बेलगाम शहर में कांग्रेस पार्टी एक ऐतिहासिक आयोजन करने जा रही है. यह कार्यक्रम 1924 में महात्मा गांधी की अध्यक्षता में हुए कांग्रेस के बेलगाम अधिवेशन की 100वीं वर्षगांठ को समर्पित है. यह न केवल कांग्रेस के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अवसर है, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की यादों को ताजा करने का भी प्रयास है. इस अवसर का उपयोग कांग्रेस पार्टी अपने वर्तमान राजनीतिक एजेंडे और ईवीएम के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन शुरू करने के लिए भी करेगी.
1924 में बेलगाम में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन महात्मा गांधी के लिए विशेष था, क्योंकि यह पहला और एकमात्र अवसर था जब उन्होंने कांग्रेस के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाली. यह अधिवेशन भारत की स्वतंत्रता के लिए एकता और सत्याग्रह के गांधीवादी सिद्धांतों को आगे बढ़ाने का प्रतीक बना. गांधीजी के नेतृत्व में इस अधिवेशन ने कांग्रेस के जनाधार को मजबूत किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी. यह स्वराज और सत्याग्रह जैसे मूलभूत सिद्धांतों का साक्षी बना, जिसने लोगों को न केवल प्रेरित किया, बल्कि उन्हें एकजुट भी किया.
यह समारोह दो दिनों का होगा. पहले दिन कांग्रेस वर्किंग कमिटी (एक्सटेंडेड) की बैठक होगी, जिसमें वर्किंग कमिटी के सदस्य, पूर्व मुख्यमंत्री और विभिन्न राज्यों के वरिष्ठ नेताओं को आमंत्रित किया गया है. दूसरे दिन, कांग्रेस बेलगाम से ईवीएम के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन की शुरुआत करेगी. यह आंदोलन पार्टी के गांधीवादी सिद्धांतों के तहत लोकतंत्र की पारदर्शिता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करने की मांग के साथ शुरू होगा.
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ईवीएम की विश्वसनीयता पर कांग्रेस लगातार सवाल उठाती रही है. पार्टी का दावा है कि ईवीएम प्रणाली में खामियां हैं और यह चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता को बाधित करती है. हाल ही में, कांग्रेस ने हरियाणा और महाराष्ट्र चुनावों में ईवीएम से जुड़ी गड़बड़ियों की शिकायत चुनाव आयोग से की थी.
कांग्रेस की नेता प्रियंका गांधी ने संसद में संविधान पर चर्चा के दौरान ईवीएम के मुद्दे को उठाते हुए बैलेट पेपर प्रणाली की वापसी की मांग की. उनका कहना था कि बैलेट पेपर से चुनाव करवाने पर चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता साबित हो जाएगी. कांग्रेस ने अपनी वर्किंग कमिटी की पिछली बैठक में भी ईवीएम के मुद्दे पर एक प्रस्ताव पारित किया था. इसमें कहा गया था कि ईवीएम पर उठ रहे सवाल चुनावी प्रक्रिया को संदेह के घेरे में ले आए हैं और इसकी विश्वसनीयता अब संकट में है.
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