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Bihar Politics: दल-बदल के नाम रहा बिहार का बीता साल, सीएम चेहरा वही, बदलते रहे सहयोगी

Bihar Politics: बीते साल को बिहार की सियासत में बडे उठा-पटक के रूप में याद किया जाएगा. साल के शुरूआत में तो बिहार में सियासी समीकरण सामान्य दिख रहे थे, आधा साल गुजरने के बाद शुरू हुआ बनने-बिगड़ने का खेल साल के अंत तक जारी रहा, जिस कारण बिहार में पुराने सियासी दोस्त दुश्मन बन गए तो कई सियासी दुश्मन अब गलबहियां देते नजर आ रहे हैं.

ऐसे में बिहार में गुजरे वर्ष के बने सियासी समीकरण न केवल देश में ही सुर्खियां बनीं, वरन आने वाले नए वर्ष में यहां के समीकरण देश की सियासत में भी हलचल पैदा करें, तो कोई बड़ी बात नहीं होगी. बीता वर्ष न केवल सियासी समीकरणों के उलटफेर के लिए याद किया जाएगा, बल्कि साल 2022 में राजनीतिक दोस्त बनने और दोस्ती टूटने की कवायद के रूप में भी याद किया जाएगा.

जब तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर बोला था हमला

वर्ष के शुरूआती महीने में राजद के नेता तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमला बोलते हुए कहा था कि 15-16 साल तो सबने देखा है. इतने साल शासन करने के बाद भी बिहार आज सबसे अंतिम पायदान पर है तो आखिर इसका दोषी कौन है. सीएम नीतीश कुमार की डबल इंजन की सरकार है तो फिर बिहार के पिछड़ेपन के लिए जिम्मेदार कौन है.

उन्होंने आगे बोलते हुए कहा कि बिहार में शिक्षा और स्वास्थ्य का हाल बुरा है. कल-कारखाने नहीं लगे हैं. बाढ़-सुखाड़ से लोग परेशान रहते हैं. महंगाई चरम पर है. पेट्रोल-डीजल के रेट सौ के पार है. अगर ये सब काम नहीं हुआ तो इसके लिए दोषी किसी दूसरे को तो नहीं ठहराया जाएगा.

तेजस्वी ने भले ही नीतीश कुमार पर साल की शुरुआत में सियासी हमला बोला हो, लेकिन अगस्त में ही नौ तारीख को नीतीश कुमार ने अचानक राजभवन पहुंचकर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. इसके साथ ही उन्होंने एनडीए से बाहर होकर बहुत बड़े उल्टफेर के संकेत दे दिए.

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नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव आए साथ

10 अगस्त को नीतीश कुमार ने महागठबंधन में शामिल होकर राज्य में आठवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और राजद के नेता तेजस्वी यादव राज्य में एक बार फिर से बिहार के उपमुख्यमंत्री बनाए गए. इस बीच, बिहार में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को झटका देते हुए पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने भी राजग का साथ छोड़ दिया और महगठबंधन की सरकार में शामिल हो गए.

जदयू ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को विपक्षी दलों के प्रधानमंत्री पद के रूप में सर्वाधिक योग्य उम्मीदवार को लेकर प्रचारित करना शुरु कर दिया. इसके साथ ही राजद नेता तेजस्वी यादव ने भी नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री पद के योग्य उम्मीदवार के रूप में अपनी सहमति दे दी.

छोटे दलों में भी हुआ उलटफेर

मार्च में ही भाजपा ने विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के तीन विधायकों को तोड़कर अपनी पार्टी में मिला लिया.और विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बन गई. बावजूद इसके भाजपा ज्यादा दिनों तक बिहार विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी नहीं रह सकी. राजद पार्टी ने कुछ ही दिनों के बाद एआईएमआईएम के पांच में चार विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया और फिर से एक बड़ी पार्टी का तगमा बरकरार रखा.

हालांकि इस सत्ता परिवर्तन के बाद जदयू को बहुत लाभ नहीं हुआ. गोपालगंज, मोकामा और कुढ़नी में हुए उपचुनाव में मोकामा में जहां राजद के प्रत्याशी विजयी रहे वहीं गोपालगंज और कुढ़नी में भाजपा के प्रत्याशियों ने जीत हासिल की. कुढ़नी में जदयू को तो गोपालगंज सीट से राजद के प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा. देखा जाए तो बीते एक साल में बिहार की राजनीति में बनते-बिगड़ते समीकरण के बीच, अब सभी की निगाहे नए साल पर है, जहां नए सियासी पैंतरों को देखना दिलचस्प होगा.

Rohit Rai

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