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सीएए के सच को धूमिल कर रही हैं जनता के बीच फैली अफवाहें

नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) लागू होने के पहले से ही तीखी बहस और विवाद का विषय बना हुआ है. हालांकि, विचारों के शोर-शराबे के बीच, कई गलतफहमियां हैं जो इस कानून की समझ को धूमिल करती हैं. सबसे पहले, यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि सीएए किसी भी भारतीय नागरिक की नागरिकता की स्थिति को प्रभावित नहीं करता है, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो. इसका प्राथमिक उद्देश्य पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को शीघ्र नागरिकता प्रदान करना है. इस मानवीय भाव का उद्देश्य उन लोगों को शरण देना है जो इन देशों में धार्मिक उत्पीड़न का सामना करते हैं.

एक और ग़लतफ़हमी यह है कि सीएए मुसलमानों के ख़िलाफ़ भेदभाव करता है. हालांकि, यह दावा इस तथ्य को नजरअंदाज करता है कि यह अधिनियम भारतीय मुसलमानों या भारत के किसी अन्य धार्मिक समूह पर लागू नहीं होता है. इसका दायरा 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए विशिष्ट पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करने तक सीमित है. यह भारतीय मुसलमानों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं करता है या किसी भी तरह से उनकी नागरिकता को कमजोर नहीं करता है.

इसके अलावा, आलोचकों का तर्क है कि सीएए भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने के खिलाफ है. इसके विपरीत, यह अधिनियम सताए गए अल्पसंख्यकों को, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो, सुरक्षा प्रदान करके भारत के धर्मनिरपेक्ष लोकाचार के अनुरूप है. यह जरूरतमंद लोगों की आस्था की परवाह किए बिना मदद का हाथ बढ़ाकर भारतीय संविधान में निहित समानता और न्याय के सिद्धांतों को कायम रखता है.

यह भी पढ़ें- भारतीय मुसलमान और CAA: गलत धारणाओं को दूर करना और संवैधानिक सुरक्षा उपायों पर जोर देना जरूरी

सीएए के समर्थक भारत में शरण चाहने वाले उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों की दुर्दशा को संबोधित करने में इसके महत्व पर जोर देते हैं. इन समुदायों के लिए नागरिकता प्रक्रिया में तेजी लाकर, यह अधिनियम उन्हें अपने जीवन का पुनर्निर्माण करने और भारतीय समाज के विविध स्वरूप में योगदान करने का अवसर प्रदान करता है.

निष्कर्षतः, नागरिकता संशोधन अधिनियम को समझने के लिए ग़लतफ़हमियों से मुक्त एक स्पष्ट परिप्रेक्ष्य की आवश्यकता है. यह एक मानवीय उपाय है जिसका उद्देश्य उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को शरण देना है, न कि भेदभाव का एक उपकरण. इन गलतफहमियों को पहचानने और दूर करने से, इस कानून की खूबियों और निहितार्थों के बारे में अधिक जानकारी पूर्ण बातचीत शुरू हो सकती है.

लेखक- परिमल चंद, प्रकाशक एवं मुख्य संपादक, हमारा युग न्यूज़

-भारत एक्सप्रेस

Shailendra Verma

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