दिल्ली हाई कोर्ट ने देश में डीपफेक व एआई तकनीक के विनियमन को लेकर दाखिल याचिका पर इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय से जवाब मांगा है. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन एवं न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने मौखिक रूप से कहा कि यह एक बड़ी समस्या है. पीठ ने मंत्रालय से पूछा कि क्या वह इस मुद्दे पर कार्रवाई करने को तैयार है. उसने कहा कि राजनीतिक दल भी इसके बारे में शिकायत कर रहे हैं. आप कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं. पीठ ने मंत्रालय से इस मुद्दे पर चार सप्ताह में जवाब देने को कहा है और सुनवाई 19 जुलाई के लिए स्थगित कर दी है.
यह याचिका एक टीवी चैनल के प्रधान संपादक ने दाखिल की है. उन्होंने कहा कि जबतक केंद्र सरकार इसको लेकर कोई दिशा-निर्देश जारी नहीं करती तब तक डीपफेक या एआई के गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए उसके बनाने, सॉफ्टवेयर, प्लेटफार्मों और वेबसाइटों तक सार्वजनिक पहुंच की पहचान करने और उन्हें अवरुद्ध करने का निर्देश दिया जाए. याचिका में कहा गया है कि डीपफेक तकनीक का प्रसार समाज के विभिन्न पहलुओं के लिए महत्वपूर्ण खतरा पैदा करता है. उसमें गलत सूचना और दुष्प्रचार अभियान, सार्वजनिक चर्चा व लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की अखंडता को कमजोर करना,धोखाधड़ी और पहचान की चोरी में संभावित उपयोग के साथ व्यक्तियों की प्रतिष्ठा एवं उसकी गोपनीयता को नुकसान पहुंचाना शामिल है. इसलिए इसके दुरु पयोग से जुड़े संभावित नुकसान को कम करने के लिए सख्त विनियमन व सक्रिय कार्रवाई की तत्काल जरूरत है.
याचिका में कहा गया है कि डीपफेक तकनीक के दुरु पयोग के खिलाफ पर्याप्त विनियमन और सुरक्षा उपाय नहीं होने से मौलिक अधिकारों के लिए गंभीर खतरा पैदा हो गया है. उसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार और निजता का अधिकार शामिल है. उसके निगरानी के लिए एक ठोस तंत्र नहीं होने से खालीपन पैदा हो गया है, जो नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गोपनीयता का उल्लंघन करता है. यह सुनिश्चित करना राज्य का सकारात्मक दायित्व है कि निजी पार्टयिों के आचरण के कारण निजता का अधिकार बाधित न हो.
याचिका में कहा गया है कि भले ही केंद्र सरकार ने नवंबर, 2023 में डीपफेक और सिंथेटिक सामग्री से निपटने के लिए विनियमन तैयार करने के इरादे का एक बयान दिया था, लेकिन अब तक ऐसा कुछ भी सामने नहीं आया है.
-भारत एक्सप्रेस
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