दिल्ली हाईकोर्ट ने एक पीएचडी स्कॉलर के निष्कासन पर रोक लगाते हुए कहा कि जेएनयू अपने नियमों के उल्लंघन के साथ-साथ प्राकृतिक न्याय व निष्पक्षता के सिद्धांतों का भी अवहेलना कर रहा है. वह ऐसा कर अपने छात्रों को बलपूर्वक निष्कासित कर रहा है.
जस्टिस सी. हरिशंकर ने यह टिप्पणी करते हुए मुख्य प्रॉक्टर के 8 मई 2023 के आदेश पर रोक लगा दी. उस आदेश के तहत एक छात्रा अंकिता सिंह को इस आधार पर निष्कासित कर दिया गया था कि उन्होंने अध्यक्ष के कार्यालय में तोड़फोड़ करने के साथ छात्रों और संकाय सदस्यों के साथ दुर्व्यवहार किया था.
ऐसा पहला मामला नहीं
जस्टिस सी. हरिशंकर ने कहा कि जेएनयू का यह कोई पहला मामला नहीं है, जो इस अदालत के समक्ष आया है, जिसमें नियम कानून का उल्लंघन कर छात्र को जबर्दस्ती निष्कासित किया गया हो. उन्होंने अगस्त 2022 में पारित एक कार्यालय आदेश पर ध्यान दिया, जिसके अनुसार कई अधिकारियों ने छात्रा को तत्काल चिकित्सा मुहैया कराने की सिफारिश की थी. उन्होंने कहा था कि छात्रा को सहायता देने के लिए एक कानूनी चिकित्सा बोर्ड का गठन होना चाहिए.
छात्रा ने कहा कि उसे ऐसी कोई सहायता नहीं दी गई है. साथ ही निष्कासन से पहले किसी भी आरोप के खिलाफ़ कारण बताने का अवसर नहीं दिया गया था.
छात्रा के निष्कासन पर लगाई रोक
कोर्ट ने कहा कि छात्रा ने जो कहा है अगर वह सही है तो यह बेहद परेशान करने वाली स्थिति है. छात्रा को तत्काल चिकित्सा सहायता की आवश्यकता थी, लेकिन अगस्त 2022 के आदेश में न तो छात्रा की बीमारी का उल्लेख है और न ही उन दुर्व्यवहार का, जिसके लिए उसे दोषी ठहराया गया है, इसलिए छात्रा के निष्कासन संबंधी आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगाई जाती है.
अदालत ने आगे कहा कि उसे उसी पाठ्यक्रम में प्रवेश दिया जाए, जिसमें वह पहले अध्ययन कर रही थी. उसने अपनी पढ़ाई जारी भी रखने दिया जाए. कोर्ट ने इसके बाद जेएनयू से इस मुद्दे पर अपना जवाब देने को कहा.
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9 जुलाई को अगली सुनवाई
अदालत अब 9 जुलाई को इस मामले में सुनवाई करेगा. छात्रा ने अपने निष्कासन को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. जेएनयू के वकील ने छात्रा की याचिका पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि वह जेएनयू के नियमों के तहत विश्वविद्यालय के समक्ष ही अपने निष्कासन के खिलाफ अपील दाखिल कर सकती थी.
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