प्रतीकात्मक तस्वीर.
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि सुसाइड नोट में किसी व्यक्ति के नाम का उल्लेख मात्र आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध के लिए मुकदमा चलाने या सजा का सामना करने का एकमात्र आधार नहीं हो सकता. अदालत ने बहू और उसके परिवार के उत्पीड़न के चलते एक व्यक्ति की आत्महत्या के मामले में यह टिप्पणी की.
जस्टिस मनोज कुमार ओहरी ने कहा सुसाइड नोट में केवल कुछ व्यक्तियों के नाम का उल्लेख करना, जिसमें कहा गया है कि वे उसकी मौत के लिए जिम्मेदार हैं, आरोपी को मुकदमे का सामना करने या आईपीसी की धारा 306 के तहत दोषी ठहराने का एकमात्र आधार नहीं है.
इस केस को लेकर आया फैसला
अदालत ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 306 के तहत आरोपी और आत्महत्या करने वाले मृतक के कृत्यों के बीच कारणात्मक संबंध या निकटता स्थापित करने की आवश्यकता है. आरोपी के विशिष्ट कृत्य को प्रत्येक मामले की उपस्थित परिस्थितियों के प्रकाश में देखा जाना चाहिए, ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि क्या उसे इस मामले में आत्महत्या के कारण के रूप में जिम्मेदार ठहराया जा सकता है.
जस्टिस ओहरी ने पत्नी की याचिका खारिज कर दी, जिसके पति ने कथित तौर पर अपनी बहू जो सारा सामान लेकर वैवाहिक घर छोड़कर चली गई थी और उसके माता-पिता के उत्पीड़न के कारण आत्महत्या कर ली थी. जांच के बाद पुलिस द्वारा एक अंतिम रिपोर्ट दायर की गई, जिसमें निष्कर्ष निकाला गया कि आरोपी व्यक्तियों को कथित अपराध से जोड़ने वाले सुसाइड नोट के अलावा कोई ठोस सबूत नहीं मिला.
स्वतंत्र गवाह के बयान पर कोर्ट का ध्यान
याचिकाकर्ता की ओर से अंतिम रिपोर्ट के खिलाफ विरोध याचिका दायर की गई थी. हालांकि, ट्रायल कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया. ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए जस्टिस ओहरी ने कहा कि रिकॉर्ड पर ऐसी कोई सामग्री नहीं आई है, जिससे पता चले कि जिस दिन से उसने वैवाहिक घर छोड़ा था उस दिन से मृतक और बहू व उसके माता-पिता के बीच कोई संबंध था.
अदालत ने एक स्वतंत्र गवाह के बयान पर भी ध्यान दिया, जिसने कहा था कि मृतक घर का कब्जा किसी अजनबी को हस्तांतरित करने के अपने आचरण के कारण तनाव में था. वर्तमान मामले के तथ्यों में मृतक के सुसाइड नोट में उनके नाम आने के अलावा कोई अन्य तथ्य रिकॉर्ड पर नहीं रखा गया है जो यह दर्शाता हो कि प्रतिवादी द्वारा ऐसा कौन सा कार्य किया गया था जिसके कारण मृतक ने आत्महत्या की.
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