उत्तर प्रदेश की सियासत में भले ही ब्राह्मणों की ताकत सिर्फ 8 से 10 फीसदी वोट तक सिमटी हुई है, लेकिन ब्राह्मण समाज का प्रभाव इससे कहीं अधिक है. ब्राह्मण समाज सूबे में प्रभुत्वशाली होने के साथ-साथ राजनीतिक हवा बनाने में भी काफी सक्षम माना जाता है.
यूपी के चुनाव का एजेंडा जाति के इर्द-गिर्द बुना जा रहा है जातीय समीकरण साधे बिना सत्ता की वैतरणी पार लगाना हमेशा से सियासी दलों के मुश्किलें भरा रहा है. उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों को एक मजबूत वोट बैंक के रूप में देखा जाता रहा है, जिसे अपने पाले में करने के लिए हर पार्टी पूरा जोर लगाए हुए हैं, राजनीति की शतरंज में उसी का बादशाह जीतता है, जो एक-एक मोहरे पर सही चाल चलता है, कहते हैं यूपी की सियासत में जितने जातियों को साध लिया, उसके गद्दी तक पहुंचने का रास्ता भी साफ हो गया, दलितों, मुस्लिमों से लेकर जाटों के समीकरण को सेट करने में जुटी पार्टियों के लिए ब्राह्मण वोटर भी कम जरूरी नहीं हैं.
यूपी में ब्राह्मण कार्ड कितना असरदार
पूर्व उप-मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा राजसभा के भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी बनाए गए तो यह चयन भी बीजेपी का ब्राह्मण चेहरे के तौर पर देखा जा रहा है, मध्य और पूर्वांचल के यूपी क्षेत्र का समीकरण सुधारने के लिहाज से देखा जा रहा है. यह अलग बात है कि विकास मुद्दा बनता है,पर सत्ता हो विपक्ष जाति समीकरण और क्षेत्रीय समीकरण को कोई छोड़कर चुनाव नही पाता है.
चुनाव में समीकरण का अपना ही महत्व होता है और उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण वोटो का महत्व दिनेश शर्मा के प्रत्याशी बनाए जाने से समझा जा सकता है. 2007 में एक समय था यूपी में एक प्रयोग हुआ सोशल इंजीनियरिंग का सरकार प्रचंड बहुमत से बनी और वहीं से सोशल इंजीनियरिंग के माध्यम से समीकरण के एक नए राजनीतिक युग का प्रारंभ हुआ. उसके बाद फिर दूसरी पार्टी ने कुछ ऐसा ही प्रयोग किया और यूपी में 5 साल का बहुमत मिल गया, 2017 के बाद योगी सरकार लगातार दूसरी बार जीत के आई है, इसलिए यह जरूरी है की 2024 का लोकसभा जब लड़ने के लिए उतरे तो चाहे क्षेत्रीय समीकरण की बात हो, जाति समीकरण की बात हो, संगठन के समीकरण की बात हो या फिर सरकार के कार्यों के विकास की, भारतीय जनता पार्टी चौतरफा सारे समीकरण को ठीक करके चुनाव में जाना चाहती है, इसलिए दिनेश शर्मा को सरकार में तो जगह नहीं मिली इस बार योगी के, लेकिन संसद में उन्हें राज्यसभा की सीट जरूर मिल गई.
यूपी विधानसभा में ब्राह्मण वोट बैंक का दबदबा इसी बात से साबित होता है कि इस बार 2022 में ब्राह्मण बिरादरी के 52 विधायक जीतकर पहुंचे हैं. इनमें 46 ब्राह्मण विधायक बीजेपी गठबंधन के हैं, जबकि पांच समाजवादी पार्टी से और एक कांग्रेस से. यानी कुल 52 ब्राह्मण विधायक विधानसभा में हैं. ये संख्या किसी भी दूसरी बिरादरी से ज्यादा है. विधानसभा में बिरादरी के नजरिये से ब्राह्मण विधायकों की संख्या सबसे ज्यादा है. इसे इत्तेफाक कहें या विचारधारा का मुद्दा, लेकिन ब्राह्मणों ने सबसे ज्यादा और सबसे लंबे समय तक बीजेपी का ही साथ दिया है.
इसे भी पढ़ें: Chandrayaan-3: चांद की सतह पर दिखा लाल और नीला रंग, प्रज्ञान रोवर ने भेजी नई तस्वीर
भारतीय जनता पार्टी में दूसरों से अलग संगठन को मजबूत करना, निरंतर साल भर चुनाव के मुद्रा में बने रहना, जनता के बीच में जाना कार्यकर्ताओं को सम्मान देना, यह कुछ बातें उसे दूसरी पार्टियों से अलग करती हैं और ऐसे में अगर बाकी पॉलिटिकल समीकरण ठीक कर ले जाए तो फिर परहेज किस बात का और यही वजह है कि पूर्व उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा का राज्यसभा का टिकट दिखाई तो पड़ा रहा, पर 2024 में वह एक ऐसा काम है जो 2024 में गिना जा सकता है कि ब्राह्मणों को ध्यान रखने में उन्हें सम्मान देने में पीछे नहीं रही और यही होता है जीत का मंत्र, जब समाज पार्टी के साथ खड़ा हो जाता है.
पीठ ने अपने फैसले में कहा कि हर निजी संपत्ति को सामुदायिक संपत्ति नहीं कह…
उत्तर प्रदेश के मदरसों में पढ़ रहे लाखों छात्रों को बड़ी राहत मिली है. सुप्रीम…
Samosa Caucus Club: 'समोसा' एक लोकप्रिय भारतीय स्नैक है. यह शब्द 2018 के आसपास राजा…
Maharashtra Assembly Elections 2024: संजय राउत ने कहा कि रश्मि शुक्ला को पुलिस डीजीपी बनाना…
मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि मंदिर से सटे शाही ईदगाह मस्जिद परिसर को लेकर भूमि विवाद…
Rahul Gandhi Raebareli visit: रायबरेली आते समय कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने चुरुवा मंदिर में…