भारत अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और विविध भाषाई परिदृश्य के साथ कई तरह की भाषाओं का घर है. इनमें से कुछ को शास्त्रीय भाषाओं के रूप में विशेष दर्जा प्राप्त है. एक महत्वपूर्ण और दिलचस्प सवाल यह है कि भारत में कितनी शास्त्रीय भाषाएँ हैं? हमारा भारत 6 भाषाओं को शास्त्रीय भाषाओं के रूप में अभी मान्यता देता है. जो कि तमिल, संस्कृत , ओडिया, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम हैं. भारत की प्राचीन सभ्यताओं में उल्लेखनीय बौद्धिक और सांस्कृतिक क्षमताएँ थीं. इसका प्रमाण शास्त्रीय भाषाओं से मिलता है, जिनकी साहित्यिक विरासत और प्राचीन मूल महत्वपूर्ण हैं. भारत में शास्त्रीय भाषाओं को उनके ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भाषाई महत्व के कारण विशेष मान्यता और लाभ प्राप्त हैं. भारत सरकार कुछ भाषाओं को शास्त्रीय के रूप में पहचानती है और उन्हें विशिष्ट विशेषाधिकार और सहायता प्रदान करती है.
भारत में किसी भाषा को शास्त्रीय घोषित करने के मानदंड पुरातनता, समृद्ध साहित्यिक परंपरा, ऐतिहासिक प्रभाव, भाषाई विशिष्टता और सक्रिय सांस्कृतिक अभ्यास पर आधारित हैं. इस मान्यता का उद्देश्य किसी भाषा की अमूल्य भाषाई और सांस्कृतिक विरासत का सम्मान और संरक्षण करना है. इन शास्त्रीय भाषाओं की पहचान करके और उन्हें बढ़ावा देकर, भारत अपनी विविध भाषाई ताने-बाने को श्रद्धांजलि देता है और आने वाली पीढ़ियों के लिए अपने सांस्कृतिक ताने-बाने को मजबूत करता है.
शास्त्रीय भाषाओं को कई वर्षो से चले आ रहे प्राचीन साहित्य, धर्मग्रंथों और सांस्कृतिक विरासत के महत्वपूर्ण भंडार के रूप में देखा जाता है जो हमारे देश कि संस्कृति को दर्शाते है और प्रेरणा देते है. सरकार का उद्देश्य मान्यता और समर्थन प्रदान करके इन भाषाओं से जुड़ी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को सुरक्षित रखना और बढ़ावा देना है. शास्त्रीय भाषाओं को अक्सर उन राज्यों में आधिकारिक भाषा का दर्जा प्राप्त होता है जहाँ वे मुख्य रूप से बोली जाती हैं. यह मान्यता सरकारी कार्यालयों, शैक्षणिक संस्थानों और अन्य आधिकारिक डोमेन में उनके उपयोग को सुनिश्चित करती है.
-भारत एक्सप्रेस
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