भरूच का सियासी समीकरण

2024 के लोकसभा चुनाव में गुजरात में इस बार सबसे दिलचस्प और रोचक मुकाबला भरूच लोकसभा सीट पर ही होने के आसार हैं। यहां भाजपा बनाम आम आदमी पार्टी में आमना-सामना है, लेकिन कांग्रस और आम आदमी पार्टी में गठबंधन के बावजूद कांग्रेस का रोल यहां कैसा रहेगा, ये अहमद पटेल के परिवार पर ही निर्भर करता है। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा के मनसुखभाई वसावा ने भरूच लोकसभा क्षेत्र में 3,34,214 वोटों के अंतर से कांग्रेस के शेरखान अब्दुलसाकुर पठान को हराया था। मनसुखभाई धनजीभाई वसावा ने 6,37,795 वोट हासिल किए थे।

भरूच लोकसभा के तहत कर्जन, वागरा, अंकलेश्वर, भरूच, जंबुसर, झगड़िया, डेडियापाड़ा जैसे सात विधासभा क्षेत्र आते हैं, जिनमें से फ़िलहाल डेडियापाडा सीट आम आदमी पार्टी के पास है, जबकि बाकी 6 पर बीजेपी का कब्ज़ा है। भरूच लोकसभा सीट पर करीबन पौने दो लाख मतदाता हैं, जिनमें सबसे ज्यादा SC के 39 फीसदी मतदाता हैं, मुस्लिम मतदाताओं की संख्या भी यहाँ 10 फीसदी के आस-पास है. एक और नजरिए से देखें तो भरूच में ग्रामीण मतदाता 75 फीसदी और शहरी मतदाता 25 फीसदी के करीब हैं।

2024 लोकसभा चुनावों में भरूच लोकसभा सीट के लिए उम्मीदवारों के नाम सामने आने के बाद अब उन उम्मीदवारों ने अपने राजनीतिक दाव-पेंच लगाने शुरू कर दिए हैं। गुजरात में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन से अब सिर्फ आमने-सामने का मुकाबला है और भरूच ही लोकसभा की ऐसी सीट है जिसका उम्मीदवार सबसे पहले घोषित हुआ है, आम आदमी पार्टी ने काफी समय पहले ही अपने तेज-तर्रार नेता और डेडियापाडा के विधायक चेतर वसावा को भरूच से लोकसभा उम्मीदवार घोषित कर दिया था। जबकि भाजपा ने भी अपनी पहली ही सूची में उनके मौजूदा संसद पर ही विश्वास जताते हुए मनसुख वसावा को ही मैदान में उतारा है, ऐसे में दोनों ही आदिवासी नेताओं के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है।

भरूच का मुकाबला दिलचस्प इसलिए भी है कि यहाँ चुनावी मैदान में आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच वसावा बनाम वसावा के बीच जंग होगी। मनसुख वसावा भरूच सीट से लगातार 6 बार विजय प्राप्त कर चुके हैं। आदिवासियों काफी लोकप्रिय माने-जाने वाले युवा नेता चैतर वसावा को आम आदमी पार्टी की ओर से उम्मीदवार बनाए जाने के बाद बीजेपी ने भी आदिवासी दांव खेलते हुए इस सीट पर मनसुख वसावा की टिकट को बरकरार रखते हुए उन्हें ही अपना प्रत्याशी घोषित किया है।

आइये अब आपको दोनों ही प्रत्याशियों के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी दे दें। फिलहाल गुजरात की भरूच लोकसभा सीट से 66 साल के मनसुख वसावा बीजेपी से सांसद हैं जो अपने बेबाक बोल और मुखर स्वाभाव के चलते कई बार अपनी ही सरकार को आड़े हाथों लेने से भी पीछे नहीं रहते हैं। पोस्ट ग्रेजुएट तक की उन्होंने शिक्षा हासिल की है, वो इस क्षेत्र में एक अहम आदिवासी चेहरे के रूप में जाने जाते हैं। मनसुख वसावा इस सीट से लगातार 6 बार चुनाव में जीत दर्ज करने में कामयाब रहे हैं। पहली दफा मनसुख वसावा 1998 में यहां से चुनाव जीते थे। इसके बाद से वो लगातार भरूच से जीत दर्ज करते आ रहे हैं। मनसुख वसावा पूर्व में केंद्रीय मंत्री के तौर पर भी जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। ऐसा माना जाता है कि इस सीट पर मनसुख वसावा की जनता के बीच पकड़ काफी मजबूत है।

गुजरात की सियासत में चैतर वसावा का नाम कुछ ही समय पहले सामने आया लेकिन वो काफी तेजी से आदिवासी समाज में लोकप्रिय नेता के तौर पर उभरे हैं। वो अभी आम आदमी पार्टी का एक अहम चेहरा हैं और इसी पार्टी से वर्तमान में विधायक भी हैं। 36 साल के चैतर वसावा 8 दिसंबर 2022 से डेडियापाड़ा विधानसभा क्षेत्र के आम आदमी पार्टी का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। वो पिछले कुछ महीने से कथित रूप से वन कर्मचारियों को धमकाने के मामले में जेल में बंद थे। अरविंद केजरीवाल उनसे जेल में भी मिलने गए थे। भरूच में वसावा समाज की आबादी करीब 38 प्रतिशत तक होने का अनुमान है। डेडियापाड़ा विधानसभा भी भरूच लोकसभा में ही आती है।

भरूच लोकसभा सीट का सबसे दिलचस्प पहलु ये है कि यहाँ पर कांग्रेस के दिवंगत नेता और सोनिया गाँधी के सबसे करीबी माने जाने वाले अहमद पटेल की काफी पकड़ थी और आज भी अहमद पटेल के समर्थक उनकी बेटी मुमताज़ पटेल और बेटे फैज़ल पटेल के साथ खड़े नज़र आते हैं और इसी के चलते मुमताज़ पटेल उम्मीद कर रही थी कि भरुच सीट कांग्रेस अपने पास रखेगी और वहां से मुमताज़ पटेल को टिकट भी दे सकती है और इस तरह से अहमद पटेल की विरासत का फायदा भी कांग्रस को मिलेगा। लेकिन दोनों पार्टियों के समझौते में ये सीट आम आदमी पार्टी के पाले आयी और चेतर वसावा यहां पहले ही उम्मीदवार घोषित हो चुके थे। शुरू—शुरू में मुमताज़ और फैज़ल दोनों ही इस फैसले के विरोध में दिखाई दिए, लेकिन कुछ दिनों बाद विरोध के स्वर तो धीमे हो गए लेकिन राहुल गाँधी की ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ जब भरूच से निकली तो दोनों ही यात्रा में नज़र नहीं आये, जो एक तरह से बगावत का इशारा भी माना जा रहा है।

भरूच ने अहमद पटेल उर्फ़ बाबूभाई को पहली बार 1977 में यहां से चुनाव जिताकर लोकसभा भेजा था। हालांकि, वर्ष 1989 में भाजपा ने इस सीट पर कब्‍जा जमाया जो अभी तक कायम है, इसी के चलते अहमद पटेल को राज्‍यसभा के रास्ते संसद जाना पडा था। अहमद भाई की पुत्री मुमताज व पुत्र फैजल पिता की विरासत को बचाने के लिए जूझ रहे हैं, नवंबर 2020 में कोरोना के कारण पिता के निधन के बाद से मुमताज यहां सक्रिय है, उधर फैजल भी गाहे बगाहे खुद को तैयार कर रहे हैं। कांग्रेस ने भाव नहीं दिया तो वे गुजरात भाजपा अध्‍यक्ष सी आर पाटिल से भी मिल आए। फैजल ने गुजरात कांग्रेस प्रभारी मुकुल वासनिक से मिलकर भरूच में गठबंधन के लिए सीट छोड़ने के पार्टी के फैसले को वापस लेने की मांग की है। मुमताज कांग्रेस की राष्‍ट्रीय कार्यसमिति की सदस्‍य हैं तथा जमीनी राजनीति से जुडी हैं, हालांकि उन्‍होंने आप के लिए सीट छोडे जाने के बाद ट्वीट कर अपनी पीड़ा व्‍यक्‍त की थी।

भरूच से आप के उम्‍मीदवार विधायक चैतर वसावा और गुजरात में आप के बड़े नेता कहे जाने वाले ईसूदान गढ़वी और गोपाल इटालिया ने भी ये कहा है कि वे कांग्रेस के रूठे नेताओं को मनाने का प्रयास करेंगे। कांग्रेस के हिस्‍से की लड़ाई भी वे लड़ेंगे तथा कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेताओं के मान—सम्‍मान को बरकरार रखने का प्रयास करेंगे। यहाँ आपको ये भी बता दें कि राहुल गाँधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा में आम आदमी पार्टी के नेता और कार्यकर्ताओं ने बढ़—चढ़कर हिस्सा लिया। भरुच लोकसभा के अंतर्गत आने वाले ज्यादातर इलाकों से ये यात्रा गुजरी, जहां राहुल गाँधी ने आदिवासी समाज के कई मुद्दों को जमकर उछाला। इस दौरान राहुल गांधी ने इन इलाकों के दलित, आदिवासी, किसान, मुस्लिम व अन्‍य पिछडा वर्ग से जुडे विविध 70 नागरिक संगठनों के पदाधिकारियों से मुलाकात की और उनकी बात सुनी। इन सबका चुनावों में चैतर वसावा को कितना फायदा होगा, ये अभी कहना मुश्किल है।

हैरत की एक बात यह है कि भारतीय ट्राइबल पार्टी के पूर्व विधायक महेश भाई वसावा तथा आम आदमी पार्टी के पूर्व विधायक अरविंद लाडानी अपने सैकडों कार्यकर्ताओं के साथ भाजपा में शामिल हो गये। वहीं दूसरी तरफ महेश वसावा के पिता, पूर्व विधायक एवं बीटीपी के संस्‍थापक छोटू भाई वसावा ने भरुच से लोकसभा चुनाव लडने का ऐलान किया है। इससे आम आदमी पार्टी के नेता चैतर वसावा को आदिवासी मतों का सीधे नुकसान हो सकता है। ऐसे में भाजपा के टिकट पर मंझे हुए और अनुभवी आदिवासी नेता सांसद मनसुख वसावा जो आठवीं बार मैदान में हैं उन्हें इन सबका कितना फायदा मिलता है ये भी देखना होगा।

गुजरात में आदिवासी मतदाता करीब 14 फीसदी है। वहीं इस लोकसभा सीट पर आदिवासी और मुस्लिम मतदाताओं की एक बड़ी संख्या है, इस सीट पर दोनों समुदायों के लगभग 7.5 लाख मतदाता हैं, जिसमें अंकलेश्वर और दहेज, गुजरात की जीवन रेखा नर्मदा बांध और आदिवासी क्षेत्रों जैसे कुछ सबसे बड़े औद्योगिक क्षेत्र हैं— डेडियापाड़ा, झगड़िया और नांदोद। आपको ये भी बता दें कि मनसुखभाई 2022 के राज्य विधानसभा चुनावों के लिए भरूच लोकसभा सीट के तहत सात विधानसभा क्षेत्रों के प्रभारी थे। यह कहना गलत नहीं होगा कि पार्टी ने डेडियापाड़ा में चैतर की लोकप्रियता को कम करके आंका, जिसके कारण उन्होंने 1 लाख से अधिक वोटों से सीट जीती।

— भारत एक्सप्रेस

अरविंद शर्मा, ब्यूरो चीफ, अहमदाबाद

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