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PFI: एक ऐसा संगठन जिसने किया मुसलमानों का फायदे से ज्यादा नुकसान

पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया(PFI) को आखिरकार बैन कर दिया गया है. इसी महीने देश में लगातार दो कार्रवाइयों के बाद यह साफ हो गया कि सरकार ने केवल पीएफआई बल्कि उससे जुड़े संगठनों यानी छात्र संगठन कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया, रिहैब फाउंडेशन ऑफ इंडिया, रिहैब फाउंडेशन (केरल)को भी बैन किया.इसके अलावा इमाम काउंसिल, नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स, नेशनल विमेंस फ्रंट, जूनियर फ्रंट और एम्पावर इंडिया फाउंडेशन पर भी पाबंदी लगा दी. संगठन के सैकड़ों कार्यकर्ताओं को जेल भेजा जा चुका है. पीएफआई (PFI) अपने गठन के 16 साल के भीतर ही गर्त में समा गया था.

पीएफआई (PFI) पर आतंकवादी संगठनों से संबंध, अपने कैडरों को हथियारों के संचालन, अपहरण, हत्या, घृणा अभियान चलाने, दंगे भड़काने के साथ साथ कई गंभीर आरोप हैं. भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार ही नहीं, केरल की वामपंथी सरकार भी इसे स्वीकार करती है. इस हालिया कार्रवाई के बाद पीएफआई के राजनीतिक संगठन सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया के अलावा किसी राजनीतिक दल से कोई सहानुभूति नहीं मिली है. केरल उच्च न्यायालय को 2012 में केरल सरकार द्वारा एक हलफनामे के साथ सूचित किया गया था कि पीएफआई(PFI) कार्यकर्ता अब तक 27 हत्याओं में शामिल थे, जिनमें मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ता भी शामिल थे. केरल सरकार ने 2014 में एक हलफनामे के साथ भी दोहराया कि 27 हत्याओं के साथ, पीएफआई और उसके सहयोगी भी हत्या के प्रयास के 86 मामलों और दंगों , सांप्रदायिक तनाव जैसी 106 घटनाओं के दोषी थे.वर्ष 2003 में केरल के कोच्चि में मराड नामक स्थान पर दंगे हुए थे जिसमें आठ हिंदू मारे गए थे. इस हत्याकांड का मुख्य आरोपी मोहम्मद आशकर बताया जा रहा था, जिसकी एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी. अपने वर्तमान स्वरूप से पहले, पीएफआई को राष्ट्रीय विकास मोर्चा (एनडीएफ) के रूप में जाना जाता था. आशकर तब एनडीए से जुड़े थे.

पीएफआई(PFI) के छात्र संगठन कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) पर 2012 में केरल के कन्नूर में एबीवीपी कार्यकर्ता सचिन गोपाल और एक अन्य छात्र नेता विशाल की हत्या के भी आरोप है. केरल में ही अगस्त 2019 में पीएफआई कार्यकर्ता रहमान सादिक, जो फरार था. वह दो साल बाद रामलिंगम नाम के व्यक्ति की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. कहा जाता है कि पूर्व में प्रतिबंधित स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के कई कार्यकर्ता पीएफआई में शामिल हो गए थे. इसके अध्यक्ष ओएमए अब्दुल सलाम ( ‘ओमा’) हैं. वह सिमी के पूर्व राष्ट्रीय सचिव हैं. इसी तरह, पीएफआई(PFI) के केरल राज्य सचिव अब्दुल हमीद सिमी के केरल राज्य सचिव रह चुके हैं. 2012 में, केरल सरकार के हलफनामे में यह भी कहा गया था कि सिमी कार्यकर्ता पीएफआई में काम कर रहे थे. जुलाई 2010 में, केरल पुलिस ने पीएफआई कार्यालय से देशी बम, हथियार, सीडी और कई कागजात बरामद किए, जिसमें तालिबान और अल कायदा के लिए प्रचार सामग्री भी शामिल थी. अप्रैल 2013 में केरल पुलिस ने PFI पर छापा मारा. उसके कार्यालय से हथियार, विदेशी मुद्रा, मानव शूटिंग लक्ष्यों के पुतले, बम, महंगा कच्चा माल, गन पाउडर और तलवारें मिलीं. जनवरी 2016 में, एनआईए अदालत ने एक पीएफआई कार्यकर्ता को सात साल और पांच सदस्यों को पांच-पांच साल की सजा सुनाई. नवंबर 2017 में, केरल पुलिस ने छह लड़कों की पहचान की जो पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया से जुड़े थे और बाद में सीरिया में इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (ISIS) में शामिल हो गए.

पीएफआई(PFI) के खिलाफ चार्जशीट बहुत बड़ी है. इसमें समूह से जुड़ी सभी घटनाओं का जिक्र नहीं किया जा सकता. हालांकि, पीएफआई के खिलाफ सबसे बड़ा अपराध यह है कि इसने बड़ी संख्या में मुस्लिम युवाओं को झुंड में रखा और उन्हें यह भी नहीं बताया कि उनका इस्तेमाल समूह के गुप्त उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है.दरअसल, पीएफआई (PFI) मुस्लिम ब्रदरहुड की नीतियों और विचारधारा पर काम करता है. मुस्लिम ब्रदरहुड इस्लाम पर आधारित एक राजनीतिक संगठन है, जिसने पूरी दुनिया में मुस्लिम लोगों के बीच प्रचार किया है कि एक दिन वे राष्ट्र नामक संस्थाओं को नष्ट कर देंगे और खिलाफत की स्थापना करेंगे. उन्हें यह सपना दिखाकर समूह मुस्लिम युवाओं को कट्टर बनाता है. भारत में मुस्लिम समाज अपनी मूलभूत समस्याओं को लेकर सबसे ज्यादा चिंतित है. इस समुदाय की प्राथमिकताएं शिक्षा, रोजगार और अमन हैं. अपराध और नशीली दवाओं से मुक्ति, महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा, बच्चों की बेहतर शिक्षा और जीवन स्तर भारत के मुसलमानों की सख्त जरूरत है. लेकिन नशा सिर्फ केमिकल और तंबाकू से ही नहीं, बल्कि विचारधारा का भी नशा है जिसे पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) ने भारत के मुस्लिम युवाओं में भरने की कोशिश की.

पीएफआई (PFI)भारत के विविध और बहुत जीवंत सांस्कृतिक परिवेश को देखते हुए अपने मिशन में सफल नहीं हो पाया है, लेकिन इसने निश्चित रूप से पहले से ही परेशान मुस्लिम समुदाय को और अधिक परेशान किया है. अशिक्षा, भूख, नशा और अमानवीयता से जूझ रहे मुस्लिम समुदाय के एक वर्ग ने गलती से समाधान के लिए पीएफआई (PFI) की ओर देखा. यह एक गंभीर गलती थी और अब इस गलती को सुधारने का समय आ गया है.

-डॉ शुजात अली क़ादरी

(लेखक भारत के मुस्लिम छात्र संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं)

 

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