Gautam Adani: सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ पैनल ने अडानी समूह को हाल ही में क्लीन चिट दिया जिसके बाद कांग्रेस पार्टी के लिए कई महत्वपूर्ण सवाल खड़े हो गए हैं. इस विश्लेषण में हम इन सवालों को और सबसे पुरानी पार्टी पर इसके प्रभावों को समझेंगे. अडानी ग्रुप, भारत का एक नामी समूह, अपने व्यवसाय और सरकार द्वारा कथित पक्षपात के आरोपों में जांच के दायरे में रहा है. हालांकि, प्रमुख हस्तियों के एक विशेषज्ञ पैनल ने अब उसे क्लीन चीट दे दी है जिसके बाद कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी पर कई बड़े सवाल खड़े हुए हैं.
कांग्रेस के लिए एक अहम सवाल यह है कि विशेषज्ञ पैनल के फैसले के बाद वह अपनी राजनीतिक रणनीति को कैसे समायोजित करेगी. अडानी ग्रुप के खिलाफ ढेरों आरोप पार्टी द्वारा सरकार की विश्वसनीयता पर हमले का एक महत्वपूर्ण घटक रहे. कई वर्षों तक राहुल गांधी के हर दूसरे भाषण का फोकस अडानी और उसके कथित संबंधों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लक्षित करने पर केंद्रित रहा है. हिंडनबर्ग रिपोर्ट गांधी और कांग्रेस पार्टी के पक्ष में थी और उसने उसे सरकार के खिलाफ बोलने का मौका देखा.
इस क्लीन चिट के बाद कांग्रेस को अपने अफसाने का पुनर्मूल्यांकन करने और सत्तारूढ़ पार्टी की प्रभावी ढंग से आलोचना करने के लिए वैकल्पिक रास्ते तलाशने की जरूरत है. मूल्य वृद्धि, बेरोजगारी, नौकरी की संभावनाओं की कमी और एक स्थिर अर्थव्यवस्था औसत व्यक्ति के लिए वास्तविक चिंता का विषय है. कांग्रेस को कुछ कॉर्पोरेट संस्थाओं को लक्षित करने वाले राजनीतिक चाल के बजाय इन मुद्दों को प्राथमिकता देनी चाहिए.
कांग्रेस अपनी स्थिति मजबूत करने और सरूत्ताढ़ दल को चुनौती देने के लिए क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन करने का प्रयास कर रही है. हालांकि अडानी ग्रुप को दोषमुक्ति के साथ पार्टी को यह मूल्यांकन करने की आवश्यकता है कि क्या अडानी विरोधी रुख उसके गठबंधन-निर्माण के प्रयासों को कमजोर करेगा.
हिंडनबर्ग प्रकरण के तुरंत बाद एनसीपी प्रमुख शरद पवार हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट में लगाए गए दावों की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की जांच के लिए विपक्षी दलों की मांग से सहमत नहीं थे.
एनडीटीवी के साथ एक इंटरव्यू में शरद पवार गौतम अडानी के समूह के समर्थन में दृढ़ता से सामने आए थे. हिंडनबर्ग रिपोर्ट और समूह के आसपास की कथा की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा था कि इस मुद्दे को जरूरत से ज्यादा महत्त्व दिया गया था.
यहां तक कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी अब अडानी-विरोधी ब्रिगेड का हिस्सा नहीं हैं. उन्होंने 2022 में इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में कहा था “राजनीति अलग है और उद्योग अलग. यदि आप विकास करना चाहते हैं तो आपको सभी को शामिल करना होगा”. इसलिए कांग्रेस को अपनी मूल चिंताओं को दूर करने और संभावित भागीदारों के साथ सामंजस्यपूर्ण संबंध बनाए रखने के बीच संतुलन बनाना चाहिए.
विशेषज्ञ पैनल का फैसला कांग्रेस पार्टी की विश्वसनीयता और तथ्य-जांच प्रक्रियाओं पर सवाल खड़े करता है. हालांकि राजनीतिक दलों के लिए सवाल उठाना और जवाबदेही की मांग करना स्वाभाविक है लेकिन यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि आरोप सत्यापित जानकारी पर आधारित हैं. कांग्रेस को अपनी विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए मान्य तथ्यों को इकट्ठा करने की खातिर अपने आंतरिक तंत्र का आत्मनिरीक्षण कर उसे मजबूत करना चाहिए.
राफेल सौदे से जुड़े आरोपों के मामले में कांग्रेस और राहुल गांधी की बड़ी किरकिरी हुई थी. 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि हथियारों के सौदे में जांच की कोई आवश्यकता नहीं है. कोर्ट के फैसले ने कांग्रेस और राहुल गांधी द्वारा बड़ी मेहनत से राफेल को लेकर बनाये गये माहौल को गर्म हवा के गुब्बारे की तरह फोड़ दिया था. राफेल मामले के आदेश को गलत तरीके से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपने “चौकीदार चोर है” अभियान से जोड़ने के लिए गांधी को अदालत में बिना शर्त माफी मांगनी पड़ी. इसलिए, कांग्रेस को असत्यापित या गलत तथ्यों के आधार पर राजनीतिक अभियान बनाना बंद करना चाहिए.
अडानी ग्रुप की मंजूरी के आलोक में कांग्रेस पार्टी को अपनी नीति का फोकस तय करना चाहिए. इसे अपना ध्यान अन्य ज़रूरी मुद्दों और नीतिगत मामलों की ओर पुनर्निर्देशित करने पर विचार करना चाहिए जिनसे जनता का सरोकार होता है. अपना ध्यान उन क्षेत्रों पर केंद्रित करके जहां यह पार्टी प्रभावी रूप से सरकार को चुनौती दे सकती है वहीं अपनी प्रासंगिकता बनाए रखकर मतदाताओं से जुड़ सकती है.
इन सवालों को रणनीतिक रूप से समझकर कांग्रेस बदलते परिदृश्य में स्वयं को बदलकर एक मजबूत विपक्ष के रूप में उभर सकती है.
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