Kaaba Keys: काबा की चाबी की जिम्मेदारी सम्भालने वाले डॉ शेख सालेह अल-शेबी का पिछले दिनों निधन हो गया. वह मक्का में मुस्लिमों के सबसे पवित्र स्थलों में माने जाने वाले काबा की गोल्डन चाबी के 109वें संरक्षक थे. वह उस्मान बिन तलहा के वंशज थे. वह इस खानदान के वारिस थे.
माना जाता है कि पैगंबर मुहम्मद की इच्छा के अनुसार हमेशा इस चाबी का संरक्षक अल-शेबी परिवार ही रहा है. कहा जाता है कि पैगंबर मुहम्मद ने खुद ये चाबी उस्मान को देते हुए कहा था कि काबा की ये चाबी आपके पास रहेगी और किसी आतताई के अलावा इसे कोई आपसे नहीं छीन पाएगा. माना जाता है कि उसी जमाने से ये दस्तूर लगातार चला आ रहा है और इस चाबी का अल-शेबी परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी इसका संरक्षक रहा है.
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1600 सालों से बानु शेबी वंश काबा का संरक्षक है और उसके पास ही चाबी है. कहा जाता है कि काबा के खोलने से लेकर बंद होने तक, साफ-सफाई, रिपेयरिंग समेत समस्त धार्मिक कार्य इन्हीं के द्वारा किया जाता रहा है. बीबीसी की एक रिपोर्ट की मानें तो साल 2008 में 12वीं सदी में बनी काबा की एक लोहे की चाबी की नीलामी हुई थी. ये चाबी पंद्रह इंच लंबी थी और उस पर लिखा था- ‘इसको अल्लाह के घर के लिए बनाया गया है. इसको किसी अज्ञात खरीदार ने खरीदा था. रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि तुर्की और सऊदी अरब के संग्रहालयों में कई चाबियां रखीं हुई हैं लेकिन सिर्फ एक चाबी ऐसी है जिसका मालिक कोई व्यक्ति है.
बता दें कि काबा में प्रवेश करने के लिए केवल एक ही दरवाजा है जो कि उत्तर-पूर्वी दीवार के पास है. इसको बाब-ए-काबा कहा जाता है. ये दरवाजा काले पत्थर के करीब है जहां से तवाफ शुरू होता है. मालूम हो कि उमरा या हज के दौरान हाजी इस काले पत्थर को चूमते हैं और फिर काबा के चक्कर लगाते हैं. इसी को तवाफ कहा जाता है.
कहा जाता है कि उस्मान के खानदान के पास ऐतिहासिक रूप से 1500 बीसी यानी इस्लाम के उदय से पहले काबा की चाबी थी. बता दें कि सऊदी अरब के कुरैश कबीले से ताल्लुक रखने वाला ये वंश है. इनके वारिस उस्मान बिन तलहा के वंशज हैं. मान्यता है कि सन 630 में पैगंबर मुहम्मद ने जब मक्का को फतेह किया तो उसके बाद फिर से ये चाबी उस्मान के खानदान को सौंप दी थी.
मान्यता है कि पैगंबर मुहम्मद ने खुद ये चाबी उस्मान को दी थी और कहा था कि काबा की ये चाबी आपके पास रहेगी और किसी आतताई के अलावा कोई आपसे ये चाबी कभी नहीं छीन पाएगा. कहा जाता है कि उसी वक्त से ये दस्तूर चला आ रहा है और उनका अल-शेबी परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी इसका संरक्षक रहा है. बताते हैं कि हिज्र के आठ साल बाद जब पैगंबर मुहम्मद ने मक्का को फतेह किया तो उस्मान बिन तलहा से ये चाबी कुछ समय के लिए ले ली गई थी लेकिन बाद में अल्लाह के आदेश के बाद उस्मान को शहर की चाबी दे दी गई और काबा का संरक्षक नियुक्त किया गया.
जानकारों की मानें तो काबा का ताला और चाबी 18 कैरेट सोने और निकल से बना हुआ है और खास बात ये है कि इस पर कुरान की आयतें लिखी हैं. बताते हैं कि फिलहाल इस चाबी की जिम्मेदारी सम्भालने वाले के पास केवल ताला खोलने और बंद करने का काम है. शाही आदेश पर हर साल इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक मोहर्रम महीने की 15 तारीख को काबा की सफाई की जाती है. यदि कोई विदेशी अतिथि आता है तो रॉयल कोर्ट और गृह मंत्रालय एवं आपात सेवाएं इस दौरान सहयोगात्मक भूमिका में होते हैं.
जानकार बताते हैं कि 1979 में 300 किलो सोने से काबा के लिए सोने का दरवाजा बनाया गया था. तत्पश्चात सऊदी अरब के शाह अब्दुल्ला के आदेश पर काबा के ताले और चाबी को बदला गया. फिर इस नए ताले व चाबी को शाह की ओर से प्रिंस खालिद ने पूर्व संरक्षक शेख अब्दुल कादिर को दिया गया था और फिर जब 2013 में कादिर का निधन हो गया तो इसकी जिम्मेदारी डॉ शेख सालेह पर आ गई थी.
-भारत एक्सप्रेस
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