Viral News: एक सुंदर घर हर किसी का सपना होता है. हर कोई चाहता है कि उसका जो घर हो वो कम कीमत में तैयार भी हो जाए और देखने में खूबसूरत भी हो. ताकि लोग देखें तो तारीफ करते न थकें. कुछ इसी तरह महाराष्ट्र के एक डॉक्टर ने ऐसे घर का निर्माण करा दिया है कि लोग उसकी तारीफ करते नहीं थक रहे हैं. इसके अलावा ये घर कुछ ऐसे सामानों से बनाया गया है कि जो भी इसके बारे में सुन रहा है वो दूर-दूर से इसे देखने के लिए आ रहा है. माना जा रहा है कि डाक्टर साहब का ये घर कई मामलों में सदियों तक याद रखा जाएगा.
मीडिया सूत्रों के मुताबिक, चंद्रपुर में रहने वाले डॉक्टर बालमुकुंद पालीवाल ने एक नायाब तरकीब निकाल कर अपने घर की लागत को 20 फीसदी तक कम कर दिया है, जिसे सुनकर शायद ही आपको यकीन हो. उन्होने इस घर को बेकार प्लास्टिक से तैयार किया है जिसमें दूध के पाउच, चिप्स के पैकेट और पानी की खाली बोतलों का इस्तेमाल किया गया है. 625 वर्ग फीट में फैले इस घर को मात्र से 9 लाख में बनाया गया है जबकि ये दो मंजिला है. अगर इसे सीमेंट आदि से बनाया जाता तो इसकी लागत करीब 1 करोड़ 80 लाख रुपए आती.
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डॉ. बालमुकुंद चंद्रपुर में ही पालीवाल हॉस्पिटल का संचालन करते हैं. उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा कि करीब 13 तरह की प्लास्टिक का इस्तेमाल किया गया है. घर को पेंचकस के जरिए कभी भी खोलकर अलग किया जा सकता है और कभी भी फिर से जोड़ा जा सकता है. घर की दीवार से लेकर छत, हर चीज बेकार प्लास्टिक से बनाई गई है. पानी की खाली बोतलों से लेकर दवाइयों के रैपर और दूध के खाली पाउच, चिप्स के पैकेट तक को घर बनाने के लिए यूज किया गया है. यानी हम लोग जिस प्लास्टिक को कचरे में फेंक देते हैं उसी का इस्तेमाल कर डाक्टर साहब ने आलीशान घर बना लिया है.
डॉक्टर बालमुकुंद कहते हैं कि पहले उन्होंने सभी तरह की प्लास्टिक को इकट्ठा किया, जिसमें शैंपू पाउच, चिप्स के पैकेट, खाली बोतलें, दूध के पाउच आदि को सुखाकर छोटे-छोटे टुकडों में काट लिया और फिर पिघलाकर किसी भी आकार में ढालने के लिए तैयार कर लिया. फिर प्लास्टिक को अलग-अलग आकार में बनाकर पॉलिश किया गया. बाद में इनको इन्हें अलग-अलग रंग में रंग दिया गया. करीब तीन महीने की मेहनत लगी और आलीशान घर तैयार हो गया. चौंकाने वाली बात ये भी है कि इस घर को बनाने में पानी का बिल्कुल इस्तेमाल नहीं किया गया है.
इस घर में गार्डन के बीच दो बड़े हॉल और एक बेडरूम बनाया गया है और बेडरूम के ठीक सामने पहली मंजिल पर जाने के लिए सीढ़ियां भी बनाई गई है. पहली मंजिल पर बच्चों के खेलने के लिए एक कमरा और बरामदा है, जहां से नीचे के बगीचे का नजारा दिखाई देता है. डॉ. बालमुकुंद बताते हैं कि उनकी मां बचपन में प्लास्टिक को पिघलाकर उसका इस्तेमाल घर में बाल्टी और दूसरी टूटी हुई चीजों को जोड़ने में करती थी. बस यही से उनको आइडिया मिला. इसके बाद आईएएस अधिकारी विवेक जॉनसन की मदद से प्लास्टिक के इस घर के सपने को साकार किया गया.
-भारत एक्सप्रेस
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