किंग कोबरा (King Cobra) के बारे में एक नई जानकारी सामने आई है. जैसा कि पहले सोचा गया था, उसके उलट नई बात निकल कर सामने आई है. एक नए अध्ययन से पता चला है कि दुनिया का सबसे लंबा विषैला सांप किंग कोबरा, एक प्रजाति नहीं है, बल्कि आनुवंशिक रूप से यह चार अलग-अलग प्रजातियां (King Cobra Four Species) है.
वन्यजीव जीवविज्ञानी पी. गौरी शंकर ने 12 साल (2012-24) तक किंग कोबरा पर रिसर्च किया. इस रिसर्च में यूके, स्वीडन, मलेशिया और भारत के वैज्ञानिकों ने सहयोग किया है.
यह अध्ययन लंबे समय से चली आ रही इस धारणा को चुनौती देता है कि किंग कोबरा में उनकी फैली हुई भौगोलिक सीमा में दिखावटी अंतर के बावजूद वे सभी एक ही प्रजाति, ओफियोफैगस हन्नाह (Ophiophagus Hannah) के हैं.
किंग कोबरा का सबसे पहले डेनिश शोधकर्ता थियोडोर एडवर्ड कैंटर (Theodore Edward Cantor) ने 1836 में हमाद्रियास हन्नाह (Hamadryas Hannah) के रूप में वर्णन किया था. अगले वर्ष दक्षिण पूर्व एशिया के सुंडा क्षेत्र की एक और प्रजाति, नाजा बंगारस (Naja Bungarus) के बारे में हरमन श्लेगल ने बताया था, जिसे 2024 में सत्यापन के बाद ओफियोफैगस बंगारस (Ophiophagus Bungarus) नाम दिया गया.
गौरी शंकर बताते हैं कि 1836 से लेकर 1961 तक कई वैज्ञानिकों ने किंग कोबरा को वर्गीकृत करने का असफल प्रयास किया. प्रजातियों के भेद के संबंध में भ्रम की स्थिति के बाद 1945 में यह निर्णय लिया गया कि किंग कोबरा एक मोनोटाइपिक प्रजाति है (जिसकी कोई उप-प्रजाति नहीं है) और इसका नाम ओफियोफैगस (ओ.) हन्ना रखा गया.
188 वर्षों के बाद अब उस वर्गीकरण के बारे में नए अध्ययन में आनुवंशिक और रूपात्मक दोनों तरह के साक्ष्य मिले हैं, जो साबित करते हैं कि किंग कोबरा की एक नहीं, बल्कि चार अलग-अलग प्रजातियां हैं, जिनमें से दो का नाम पहली बार टीम द्वारा रखा गया है. किंग कोबरा भारत से लेकर फिलीपींस तक फैले दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के उष्णकटिबंधीय जंगलों में व्यापक रूप से फैले हैं.
कोबरा की ये चार प्रजातियां ओ. हन्ना (उत्तरी किंग कोबरा), ओ. बंगारस (सुंडा किंग कोबरा), ओ. कलिंगा (पश्चिमी घाट किंग कोबरा), और ओ. साल्वाटाना (लूजोनन किंग कोबरा) हैं. ओ. हन्ना पूर्वी पाकिस्तान, उत्तरी और पूर्वी भारत, अंडमान द्वीप समूह, इंडो-बर्मा, इंडो-चीन और थाईलैंड में पाया जाता है. ओ. बंगारस सुंडा शेल्फ क्षेत्र का मूल निवासी है, जबकि ओ. कलिंगा और ओ. साल्वाटाना, नई नामित प्रजातियां, क्रमशः पश्चिमी घाट और उत्तरी फिलीपींस के लूजोन में पाई जाती हैं.
गौरी शंकर बताते हैं, प्रजातियों को अलग करने वाले सबसे महत्वपूर्ण रूपात्मक लक्षणों में से एक, जिसे पेपर में हाइलाइट किया गया है, इनकी ऊपरी बैंड की संख्या है. “लूजोन आबादी के वयस्क, किशोरों के उलट, किसी भी अलग पीले बैंड का प्रदर्शन नहीं करते हैं. वयस्क ओ. साल्वाटाना में, बैंड फीके और मुश्किल से पहचाने जाने वाले होते हैं, जो उन्हें एक धब्बेदार, लगभग बिना बैंड वाला रूप देते हैं.”
गौरी शंकर ने सांपों के शारीरिक बनावट के बारे में बताते हुए कहा, “कालिंगा में प्रत्येक सफेद पट्टी के बीच गहरे रंग के शल्कों की तीन से चार पंक्तियां होती हैं. ओ. हन्नाह में पट्टी पर सफेद शल्कों के किनारे काले रंग के होते हैं.”
उन्होंने आगे बताया कि दूसरी ओर ओ. बंगारस में कई हल्के रंग की पट्टियां होती हैं. अगर हम पट्टियों की गिनती करें, तो ओ. कलिंगा में 40 से कम पट्टियां होती हैं, ओ. हन्नाह में 40 से 70 पट्टियां होती हैं, और ओ. बंगारस में 70 से अधिक पट्टियां होती हैं. ओ. बंगारस के युवा में 100 से 135 पट्टियां हो सकती हैं.
लंबे समय तक पश्चिमी घाटों में किंग कोबरा का अध्ययन करने वाले वन्यजीव जीवविज्ञानी रोमुलस व्हिटेकर (Romulus Whitaker) कहते हैं “मुझे हमेशा संदेह था कि यह एक से अधिक प्रजातियां हैं क्योंकि वे एक-दूसरे से बहुत अलग दिखते हैं और व्यवहार करते हैं.”
व्हिटेकर ने बताया कि पश्चिमी घाट में किंग कोबरा (ओ. कालिंगा) की पूजा की जाती है, जिसने ऐतिहासिक रूप से इसके संरक्षण में योगदान दिया है. हालांकि, यह सांस्कृतिक सम्मान अब पर्याप्त नहीं है, क्योंकि इस क्षेत्र के लगभग 80 प्रतिशत जंगल या तो गायब हो गए हैं या गंभीर संकट में हैं. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि स्थानीय समुदायों को शिक्षित करना भी प्रजातियों के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है.
किंग कोबरा न केवल दिखने में आकर्षक है, बल्कि कई महत्वपूर्ण पारिस्थितिक भूमिकाएं भी निभाता है, जिसमें चिकित्सकीय रूप से महत्वपूर्ण सांपों जैसे कि चश्माधारी कोबरा (नाजा नाजा) की आबादी को नियंत्रित करना शामिल है क्योंकि वे अन्य सांपों का शिकार करते हैं.
इस अध्ययन में कुल 153 (148 गैर-कंकाल, पांच कंकाल) नमूनों की जांच की गई, ताकि यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि आनुवंशिक स्तर पर प्रजातियां एक दूसरे से लगभग एक से चार प्रतिशत अलग हैं. गौरी शंकर के इस नंबर को महत्वपूर्ण मानते हैं क्योंकि, मनुष्य आनुवंशिक रूप से चिम्पांजी से केवल एक प्रतिशत ही अलग हैं.
शोधकर्ता गौरी शंकर बताते हैं कि अध्ययन में सिर्फ चार प्रजातियों को स्पष्ट रूप से अलग किया गया है, अभी और भी प्रजातियां हो सकती हैं. वे कहते हैं. “किंग कोबरा संभावित रूप से पांच या छह प्रजातियां हो सकती हैं. अधिक शोध की आवश्यकता है.”
विशेषज्ञों का कहना है कि नवीनतम निष्कर्षों का किंग कोबरा के संरक्षण पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा. यह प्रजाति वर्तमान में संकटग्रस्त प्रजातियों की IUCN (International Union for Conservation of Nature) रेड लिस्ट में असुरक्षित के रूप में शामिल है. अब तक किंग कोबरा को अधिक फैली हुई एक सामान्य प्रजाति माना जाता था, और माना जाता था कि इसे विशेष संरक्षण की आवश्यकता नहीं है.
हालांकि, हाल के निष्कर्षों के साथ यह नजरिया बदल गया है. गौरी शंकर के अनुसार, चार नई वर्णित प्रजातियों में से ओ. कलिंगा और ओ. साल्वाटाना अत्यधिक संकटग्रस्त हैं और अब विशेष संरक्षण की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि फिलीपीन सरकार और लूजोन के अधिकारियों ने इन निष्कर्षों का संज्ञान लिया है और प्रजातियों की सुरक्षा के उपायों पर विचार कर रहे हैं, जिसमें अवैध शिकार, अवैध निर्यात और जानवर के लिए अन्य खतरों पर नकेल कसना शामिल हो सकता है.
-भारत एक्सप्रेस
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