बेंगलुरु में एक AI इंजीनियर अतुल सुभाष की खुदकुशी ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है. बिहार के समस्तीपुर के रहने वाले अतुल सुभाष ने अपनी पत्नी निकिता सिंघानिया और सास निशा सिंघानिया पर पैसों के लिए प्रताड़ित करने का आरोप लगाते हुए मौत को गले लगा लिया. 9 दिसंबर को खुदकुशी करने से पहले अतुल सुभाष ने करीब 1 घंटे 20 मिनट का वीडियो पोस्ट किया था और 24 पन्नों का एक सुसाहड नोट भी छोड़ा था. अपने वीडियो और सुसाइड नोट में अतुल सुभाष ने अपनी पत्नी और ससुराल वालों पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं. इतना ही नहीं अपने सुसाइड नोट ने उन्होंने पूरे सिस्टम और न्यायिक व्यवस्था पर भी सवाल उठाए हैं. जौनपुर की फैमिली कोर्ट की जज पर केस के निपटारे के लिए 5 लाख रुपये मांगने का भी आरोप लगाया है. साथ ही लिखा था- ‘Justice is Due’ यानी ‘इंसाफ बाकी है’.
अतुल सुभाष के सुसाइड नोट के मुताबिक ससुरालवालों ने उन पर दहेज प्रताड़ना, घरेलू हिंसा समेत 9 केस दर्ज करा दिए थे. इसके बाद से उसने लगातार पैसों की डिमांड करते रहे. आखिरकार अतुल सुभाष हिम्मत हार गए और उन्होंने मौत को गले लगा लिया. लेकिन उनकी खुदकुशी के बाद से ही एक बार फिर दहेज और घरेलू हिंसा कानून सवालों के घेरे में आ गया है और इसे दहेज उत्पीड़न रोकने वाला ‘कातिल कानून’ कहा जाने लगा है.
हाल ही में तेलंगाना से आए एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने भी घरेलू हिंसा से जुड़े कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताई है. कोर्ट ने टूक कहा कि IPC की धारा 498A का बड़े पैमाने पर गलत इस्तेमाल किया जा रहा है. घरेलू हिंसा कानून का उद्देश्य महिलाओं को घरेलू हिंसा और उत्पीड़न से बचाना था, लेकिन, इसका बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया जा रहा हैं. महिलाएं इस कानून का डर दिखाकर अपने पति और उसके परिवार का शोषण कर रही हैं और उन्हें अपनी अनुचित मांगें मानने के लिए मजबूर कर रही हैं. कोर्ट ने आगे कहा कि पिछले कुछ समय में पति-पत्नी के बीच जुड़े झगड़ों में न सिर्फ तेजी से बढ़ोतरी देखने को मिली है, बल्कि IPC की धारा 498A का गलत इस्तेमाल भी बढ़ा है. आलम ये है कि ये कानून पति और उसके परिवार से बदला लेने का हथियार बन गया है.
पति और परिवारवालों को फंसाने की प्रवृत्ति को देखते हुए कोर्ट ने भी पीड़ित परिवार को गैरजरूरी परेशानी से बचाने की बात पर जोर दिया. इतना ही नहीं कोर्ट ने कहा कि ठोस सबूतों या विशेष आरोपों के बिना आपराधिक अभियोजन का आधार नहीं बन सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा से जुड़े केसों की सुनवाई में अदालतों को भी सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि धारा 498A को पत्नी और उसके परिवार वाले ढाल की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं. हालांकि ये पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने 498A को लेकर इस तरह के सवाल उठाए हैं. इससे पहले इसी साल सितंबर में भी सुप्रीम कोर्ट ने 498A को सबसे ज्यादा दुरुपयोग किया जाने वाला कानून बताया था.
IPC की धारा 498A की जगह, BNS यानी भारतीय न्याय संहिता में धारा 85 और 86 ने ले ली है. हालांकि इसके प्रावधानों तस के तस हैं. किसी भी विवाहित महिला पर उसके पति और उसके रिश्तेदारों के क्रूरता को रोकने के लिए IPC में धारा 498A को शामिल किया गया था. इस अपराध के लिए तीन साल की कैद और जुर्माने का प्रावधान है. किसी भी महिला पर शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से क्रूरता हो सकती है. शारीरिक क्रूरता में महिला से मारपीट, तो मानसिक क्रूरता में तंग करना और ताने मारना जैसे बर्ताव शामिल हैं. इतना ही नहीं जानबूझकर ऐसा काम करना और पत्नी को खुदकुशी के उकसाना भी क्रूरता की श्रेणी में ही माना जाता है.
इसके अलावा पत्नी या उसके परिवारवालों से गैरकानूनी तरीके से पैसों या संपत्ति मांगना भी क्रूरता मानी जाती है. जब किसी विवाहित महिला की मौत उसकी शादी के 7 साल के अंदर जलन, चोट, या फिर असमान्य परिस्थितियों में होती है और जांच के दौरान ये पता चलता है कि मौत से पहले महिला के साथ पति और उसके रिश्तेदारों ने कोई क्रूरता या उत्पीड़न किया था, तो तब इसे दहेज हत्या मानी जाती है. दहेज हत्या में दोषी पाए जाने वाले को कम से कम 7 साल की जेल हो सकती है, जिसे उम्रकैद तक बढ़ाया जा सकता है.
दहेज लेने या देने पर रोक लगाने के लिए भारत की संसद ने 20 मई 1961 को दहेज निरोधक अधिनियम, 1961 नाम का एक कानून बनाया, जो 1 जुलाई 1961 को लागू हुआ था. इसे देश में दहेज प्रथा को पूरी तरह से खत्म करने के उद्देश्य से बनाया गया था. इस कानून के तहत दहेज के लेन-देन को आपराधिक बना दिया गया था. इस कानून में शादी के दौरान एक पक्ष से दूसरे पक्ष को दो गई किसी तरह की संपत्ति मसलन, जूलरी, कैश, मकान, जमीन और बैंक में पैसे ट्रांसफर करने को दहेज के तहत परिभाषित किया गया है. ये कानून सभी धर्मों और जातियों पर लागू होता है. समय-समय पर इस कानून में कई संशोधन भी किए गए. इस कानून के तहत सजा का जो प्रावधान किया गया है, उसके मुताबिक दहेज लेने या देने पर 5 साल जेल, 15,000 रुपये या दहेज के मूल्य से जो भी ज्यादा हो.
मेंटेनेंश यानी भरण-पोषण पर दो कानून हैं. हिंदू मैरिज एक्ट 1955 की धारा 24 और 25, पति-पत्नी दोनों को तलाक के बाद भरण-पोषण की मांग करने का अधिकार देती हैं. आजीविका चलाने में असमर्थ होने की स्थिति में दंड प्रक्रिया संहिता यानी CrPC की धारा 125 के तहत पत्नी, नाबालिग बच्चों और असहाय माता-पिता को भरण-पोषण की मांग का अधिकार देती है. ये कानून सभी धर्मों और जाति पर लागू होती है.
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के आंकड़ों की मानें तो 18 से 49 साल की उम्र की 10% महिलाओं ने कभी न कभी अपने पति पर हाथ उठाया है. सर्वे में जो बातें सामने आईं, उसके मुताबिक 11% महिलाओं ने बीते एक साल के दौरान अपने पति के साथ हिंसा की बात मानी, उम्र बढ़ने के साथ ही पति के साथ हिंसा करने वाली महिलाओं की संख्या में भी इजाफा देखने को मिलती है. 18 से 19 साल की 1% से कम, 20 से 24 साल की करीब 3%, 25 से 29 साल की 3.4%, 30 से 39 साल की 3.9% और 40 से 49 साल 3.7% महिलाओं ने पति के साथ हिंसा की. दिलचस्प बात तो ये है कि शहरों की 3.3% की तुलना में ग्रामीण इलाकों की 3.7% महिलाएं पति के साथ ज्यादा हिंसा करतीं हैं.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो यानी NCRB के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो हर साल हजारों महिलाओं की जान चली जाती है. इससे जुड़े हजारों केस दर्ज किए जाते हैं. NCRB की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2022 में दहेज हत्या के करीब 6,500 केस दर्ज किए गए थे. इस हिसाब से दहेज की वजह से हर दिन औसतन करीब 18 महिलाएं मौत के मुंह में समा जा रही हैं.
घरेलू हिंसा कानून पर सवाल इसलिए उठते हैं, क्योंकि ये पुरुषों पर नहीं, सिर्फ महिलाओं पर ही लागू होता है. यानी कानून के तहत सिर्फ पुरुषों को ही आरोपी बनाया जा सकता है. अक्सर कहा जा रहा है कि पति-पत्नी में अगर कोई भी हिंसा करता है, तो अपराध की श्रेणी में आता है, लेकिन घरेलू हिंसा कानून से सिर्फ महिलाओं को ही सरक्षण मिलता है. यानी पत्नी अगर अपने पति के साथ किसी तरह की हिंसा, मारपीट या कोई अत्याचार करती है, तो घरेलू हिंसा नहीं मानी जाती है.
इसके अलावा NCRB की रिपोर्ट की मानें तो घरेलू हिंसा कानून और धारा 498A के तहत सजा मिलने की दर महज 18% है. यानी बाकी मामलों में या तो आरोप साबित साबित नहीं हो पाता है, या फिर समझौता हो जाता है. लेकिन आरोप से दोषी साबित होने तक पुरुषों को कई तरह की यातनाओं का सामना करना पड़ता है और अतुल सुभाष जैसे लोगों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है.
-भारत एक्सप्रेस
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