चीन ‘फैक्ट्री ऑफ वर्ल्ड’ के रूप में अपना दबदबा खो रहा है और इसे भारत के लिए अच्छे अवसर के तौर पर देखा जा रहा है. पश्चिमी कंपनियां चीन का विकल्प तलाश रही हैं. चीन को चुनौती देने के लिए भारत के पास ही वह जरूरी श्रमशक्ति और इंटरनल मार्केट है. चीन को भारत ने आबादी के मामले में पीछे छोड़ दिया है.
पश्चिमी सरकारें भारत को एक स्वभाविक भागीदार के रूप में देखती हैं और भारत सरकार ने कारोबारी माहौल को पहले की तुलना में अधिक अनुकूल बनाने पर जोर दिया है. हाल ही में एप्पल ने भारत में अपने प्रोडक्शन को विस्तार देने का फैसला किया है. विदेशी मैन्युफैक्चरर्स ने भी भारत में काफी दिलचस्पी दिखाई है.
केंद्रीय बैंक के आंकड़ों के अनुसार, भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 2020 से 2022 तक सालाना औसतन 42 बिलियन अमेरीकी डालर था, जो एक दशक के भीतर दोगुना हो गया. दरअसल, यूक्रेन पर सैन्य हमले के बाद रूस के साथ चीन की घनिष्टता और भी बढ़ी है जिसको देखते हुए अमेरिका और उसके सहयोगी चीन पर अपनी निर्भरता कम करना चाहते हैं. जिसके परिणामस्वरूप अमेरिका भारत समेत अपने ट्रेडिंग पार्टनर्स के साथ संबंध और बेहतर करने की दिशा में काम कर रहा है.
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कोई भी कंपनी अगले चीन के रूप में भारत पर एप्पल की तुलना में बेहतर दांव नहीं लगा सकती है. पिछले 15 वर्षों में, कंपनी ने अपने लैपटॉप, आईफ़ोन और सहायक उपकरण बनाने के लिए लगभग पूरी तरह से चीन में एक अत्याधुनिक सप्लाई चेन स्थापित किया. इसकी उपस्थिति से चीन में पूरे मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र को मदद मिली. ऐसे में भारत के अधिकारियों को लगता है कि एप्पल के आने से और भी कंपनियों के आने के दरवाजे खुलेंगे.
पिछले दिनों, केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि प्राय: ऐसा होता है कि आपके पास मार्केट में ट्रेंड सेट करने वाली एंकर कंपनी होती है. उन्होंने कहा कि हमें उम्मीद है ये अमेरिका, यूरोप और जापान की कंपनियों के लिए बड़ा मैसेज होगा. कोविड लॉकडाउन के दौरान प्रोडक्शन में बाधाओं के बाद एप्पल सप्लायर्स को चीन से हटकर विविधता लाने के लिए प्रेरित कर रहा है.
-भारत एक्सप्रेस
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