जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने यह कहकर राजनीतिक विवाद खड़ा कर दिया कि 2001 के संसद हमले के दोषी अफजल गुरु को फांसी देने से कोई फायदा नहीं हुआ. उन्होंने यह भी कहा कि पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर सरकार अफजल गुरु की फांसी को मंजूरी नहीं देती.
समाचार एजेंसी एएनआई से बात करते हुए नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने स्पष्ट किया कि अफजल गुरु की फांसी में जम्मू-कश्मीर सरकार की कोई संलिप्तता नहीं थी और कहा कि इससे ‘कोई उद्देश्य पूरा नहीं हुआ.’
अब्दुल्ला ने कहा, ‘दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि जम्मू-कश्मीर सरकार का अफजल गुरु की फांसी से कोई लेना-देना नहीं था. अन्यथा, आपको राज्य सरकार की अनुमति से ऐसा करना पड़ता, जिसके बारे में मैं आपको स्पष्ट शब्दों में बता सकता हूं कि ऐसा नहीं होता. हम ऐसा नहीं करते. मुझे नहीं लगता कि उसे फांसी देने से कोई उद्देश्य पूरा हुआ.’
अपने रुख को सही ठहराते हुए अब्दुल्ला ने कहा कि वे मृत्युदंड के खिलाफ हैं. उन्होंने कहा, ‘साक्ष्य ने हमें बार-बार दिखाया है, भले ही भारत में न हो लेकिन अन्य देशों में, जहां आपने लोगों को मृत्युदंड दिया है और पाया है कि आप गलत थे.’
मालूम हो कि जम्मू-कश्मीर के निवासी अफजल गुरु को 13 दिसंबर 2001 को संसद भवन पर हमले की साजिश रचने के जुर्म में 9 फरवरी 2013 को दिल्ली की तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई थी और उसे जेल परिसर में ही दफना दिया गया था. संसद भवन पर हमले के दौरान 9 लोगों की मौत हुई थी.
अफजल को संसद पर हमला करने वाले पांच आतंकवादियों की सहायता करने और उन्हें उकसाने के लिए दोषी ठहराया गया था. हमलावर सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मारे गए थे और हमलावरों को रसद सहायता प्रदान करने में अफजल की भूमिका उसकी सजा में एक महत्वपूर्ण कारक थी.
हालांकि, उसकी फांसी विवाद का विषय बनी हुई है. कई लोगों ने उसके खिलाफ चलाए गए मुकदमे की निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं और दूसरों को लगता है कि यह न्याय पर आधारित न होकर एक राजनीतिक निर्णय था.
उमर अब्दुल्ला के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए भाजपा नेता साजिद यूसुफ ने कहा कि अफजल गुरु को फांसी देना जम्मू-कश्मीर के लोगों को न्याय दिलाने की दिशा में एक आवश्यक कदम था.
कांग्रेस पार्टी, जो नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ गठबंधन में जम्मू-कश्मीर चुनाव लड़ रही है, ने अब्दुल्ला की टिप्पणी से खुद को अलग कर लिया है. कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने इस मामले पर कोई रुख अपनाने से कतराते हुए कहा, ‘हम यहां इस पर चर्चा क्यों कर रहे हैं? यह चुनाव का समय है. लोग बयान देते हैं. मैं यहां इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता.’
यह घटनाक्रम अफजल गुरु के भाई एजाज अहमद गुरु द्वारा यह घोषणा करने के बाद सामने आया है कि वह जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव लड़ेंगे, जो अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद केंद्र शासित प्रदेश में होने वाला पहला चुनाव है.
अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के लिए दो सीटों – गांदेरबल और बडगाम से नामांकन दाखिल किया है. अपनी उम्मीदवारी के बारे में बात करते हुए अब्दुल्ला ने कहा कि उन्हें दोनों सीटें जीतने और ‘हमारा खोया हुआ सम्मान’ वापस पाने की उम्मीद है.
केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में 18 सितंबर, 25 सितंबर और 1 अक्टूबर को तीन चरणों में विधानसभा के लिए मतदान होगा. चुनाव परिणाम 8 अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे.
-भारत एक्सप्रेस
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