बुलंदशहर: यूपी में बुलंदशहर की स्याना तहसील के बिहटा गांव के पद्मश्री भारत भूषण त्यागी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से मैथ, फिजिक्स और केमिस्ट्री में बीएससी की. पिता की बात मानकर में 1976 में भारत भूषण त्यागी ने खेती को अपना लिया और संकल्प के साथ उसकी शुरुआत की.
1976 से 1987 तक आधुनिक खेती करते समय भारत भूषण त्यागी ने इस बात पर गौर किया कि ये खेती लागत आधारित खेती है, जिसमें जुताई, बीज, खाद, सिंचाई, कीटनाशकों के बल पर खेती की जाती है. किसान हर चीज के लिए बाजार पर निर्भर है. इस खेती को शुरू करने के पीछे विचार ये था कि इन सब चीजों का उपयोग करने से फसलों की उपज बढ़ेगी. इससे उसकी आमदनी बढ़ेगी और किसान खुशहाल होगा, जबकि वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.
खेती करते समय भारत भूषण त्यागी ने गौर किया कि आधुनिक लागत आधारित खेती से किसान खुशहाल नहीं हो सकता है, क्योंकि सब कुछ बाजार के भरोसे था. लागत के सभी साधन बाजार के हाथ में थे. इसके साथ ही किसान की उपज के दाम भी बाजार ही तय करता था. इस तरह से देखा जाए तो किसान खेती नहीं कर रहा है, बल्कि बाजार किसान से खेती करवा रहा है. समस्याओं को दूर करने के उपाय खोजने की कोशिश करते हुए भारत भूषण त्यागी ने धीरे-धीरे नए विकल्पों की तलाश की.
आधुनिक लागत आधारित खेती के विकल्प की तलाश में भारत भूषण त्यागी ने मधुमक्खी पालन, कपड़ा बनाना, जल संरक्षण, बीज निर्माण, एग्रो प्रोडक्ट प्रोसेसिंग जैसे कई काम किए और अपने परिवार का खर्च चलाते रहे. खेती में उनको कुछ खास मुनाफा नहीं हो रहा था. खेती के साथ-साथ जिंदगी के कुछ सवालों के उत्तर पाने की तलाश में 1997 में भारत भूषण त्यागी ‘मध्यस्थ दर्शन सह-अस्तित्ववाद’ के प्रणेता बाबा ‘श्री अग्रहार नागराज जी’ से मिलने मध्य प्रदेश के अमरकंटक गए.
भारत भूषण त्यागी ने प्रकृति की उत्पादन व्यवस्था के साथ-साथ संपूर्ण व्यवस्था में नियम, नियंत्रण और संतुलन को भली-भांति समझा और खेती में अनेक प्रयोग किए. प्रकृति में एक दाने से हजार दाने पैदा होने की क्रिया को समझा. फिर खेती में किसान उदास एवं कर्जदार क्यों है? इसका उत्तर भी खोजा और अनेक किसानों को इसका अध्ययन भी कराया.
भारत भूषण त्यागी ने ‘खेत एक, फसल अनेक’ का नियम बनाया. जब भारत भूषण त्यागी ने इसको अपनाया तो इससे उनकी जमीन की उर्वरकता सुधरी, जमीन में कार्बनिक तत्व बढ़े और सूक्ष्म जीव बढ़े, उपज बढ़ी और पानी, खाद में बचत हुई. सहफसली खेती से भारत भूषण त्यागी के खेतों में पानी का उपयोग आधा हो गया. इससे उनको लाभ हुआ.
इस जैविक खेती के लिए भारत भूषण त्यागी ने चार पहलुओं पर जोर दिया है. जिसमें सबसे पहले उत्पादन का प्रबंधन, उसके बाद गुणवत्ता प्रमाणीकरण, फिर मूल्य संवर्धन के लिए प्रसंस्करण और सबसे अंत में मार्केटिंग व्यवस्था को जगह दी गई है. भारत भूषण त्यागी का साफ कहना है कि अगर किसान इन चारों चीजों को अपनाकर एक जगह संयोजित करने में सफल हो गया तो किसान की आय दोगुनी तो क्या चार गुना बढ़ सकती है.
समाज में अपनी कृषि पद्धति को फैलाने के लिए भारत भूषण त्यागी हर रविवार को किसानों को नि:शुल्क प्रशिक्षण देते हैं. जिसमें गौशाला, गोबर गैस प्लांट के साथ ही खेती के तौर-तरीके सिखाए जाते हैं. भारत भूषण त्यागी को भरोसा है कि भविष्य में जैविक खेती को सफलता मिलेगी.
भारत भूषण त्यागी जमीन का कम होना या जोत के छोटी होने को कोई समस्या नहीं मानते हैं. उनका कहना है कि ज्यादा जमीन तो बड़ी मशीनों के लिए, बड़ी लागत आधारित खेती के लिए जरूरी है. अगर जमीन कम है तो किसान बहुत आसानी से इस जमीन को अपनी मेहनत से सजा-संवार करके अच्छा मुनाफा कमा सकता है. जैविक खेती के लिए अधिक जमीन की कोई खास जरूरत नहीं होगी.
कृषि एक्सप्रेस के लिए विशेष संवाददाता देवनाथ की रिपोर्ट
-भारत एक्सप्रेस
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