बांग्लादेश की मौजूदा सरकार ने भारत से पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के प्रत्यर्पण की आधिकारिक मांग की है. इस मुद्दे पर बांग्लादेश के विदेश और गृह मामलों के सलाहकारों ने बयान जारी कर कहा कि भारत को इस संबंध में एक Diplomatic Letter भेजा गया है. हालांकि, भारत ने अभी तक इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है.
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत, शेख हसीना को प्रत्यर्पित करने के बजाय, कूटनीतिक और राजनीतिक स्तर पर संतुलित निर्णय लेगा.
बांग्लादेश सरकार ने शेख हसीना पर हत्या सहित कई आरोपों के तहत मुकदमा चलाने के लिए उनका प्रत्यर्पण मांगा है. लेकिन इस मांग को बांग्लादेश की Political Instability और Radical Forces के बढ़ते प्रभाव से जोड़कर देखा जा रहा है.
विश्लेषकों का मानना है कि बांग्लादेश सरकार पर कट्टरपंथी गुटों और Pakistan-US Strategic Forces का दबाव है. ये गुट शेख हसीना के धर्मनिरपेक्ष शासन और भारत के साथ उनके मजबूत रिश्तों के खिलाफ हैं.
भारत और बांग्लादेश के बीच 2013 में Extradition Treaty पर हस्ताक्षर हुए थे. इस संधि का उद्देश्य दोनों देशों के बीच भगोड़े अपराधियों और दोषियों को सौंपने की प्रक्रिया को कानूनी रूप देना था.
शेख हसीना का मामला एक Political and Diplomatic Issue है. अंतरराष्ट्रीय कानून भारत को यह अधिकार देता है कि वह राजनीतिक विद्वेष के मामलों में प्रत्यर्पण से इनकार कर सकता है.
शेख हसीना को वापस भेजना, बांग्लादेश में Political Retaliation को बढ़ावा देने जैसा हो सकता है.
शेख हसीना का भारत में रहना यह सुनिश्चित करता है कि बांग्लादेश की कट्टरपंथी ताकतें अपने मकसद में सफल न हों.
भारत और बांग्लादेश के द्विपक्षीय संबंध इस समय बेहद महत्वपूर्ण हैं. भारत को इस मामले में Balanced Decision लेना होगा.
भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर 24 दिसंबर से दो दिन के US Visit पर जाएंगे. इस दौरान क्षेत्रीय स्थिरता और बांग्लादेश की मौजूदा स्थिति पर चर्चा होने की संभावना है.
अमेरिका का बांग्लादेश पर खासा प्रभाव है और वहां की Bangladesh Policy पर भारत भी नजर बनाए हुए है. इस स्थिति में शेख हसीना का प्रत्यर्पण भारत के लिए केवल कानूनी मुद्दा नहीं, बल्कि एक बड़ा कूटनीतिक निर्णय है.
भारत के लिए शेख हसीना का मामला बेहद संवेदनशील है. यह केवल बांग्लादेश की राजनीति से जुड़ा मुद्दा नहीं, बल्कि भारत-बांग्लादेश के संबंध, क्षेत्रीय स्थिरता और कट्टरपंथी ताकतों के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ एक कूटनीतिक चुनौती है.
-भारत एक्सप्रेस
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