दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में सभी पारिवारिक अदालतों से कहा है कि वे गवाहों से जिरह जल्द से जल्द पूरी करें, ताकि पक्षकारों को अनावश्यक परेशानी या शर्मिदगी का सामना न करना पड़े. न्यायमूर्ति रेखा पल्ली और न्यायमूर्ति सौरभ बनर्जी की पीठ ने इस संबंध में एक महत्वपूर्ण निर्देश जारी किया, जिसमें कहा गया कि पारिवारिक अदालतों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वकीलों को जिरह के दौरान अप्रासंगिक सवाल पूछने की अनुमति न दी जाए, जिससे जिरह का समय बर्बाद हो.
कानूनी विवादों का त्वरित निपटारा जरूरी
पीठ ने यह भी कहा कि पारिवारिक अदालतों में उठने वाले विवाद जैसे क्रूरता, परित्याग, तलाक, और नाबालिग बच्चों की हिरासत, आमतौर पर संवेदनशील होते हैं, इसलिए इन मामलों का निपटारा शीघ्र और प्रभावी तरीके से किया जाना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि लंबे समय तक जिरह करना न केवल दोनों पक्षों के लिए परेशानी का कारण बनता है, बल्कि यह पारिवारिक अदालतों की मूल भावना के भी खिलाफ है.
अपील पर सुनवाई के दौरान निर्देश जारी
यह आदेश एक अपील पर सुनवाई करते हुए दिया गया, जिसमें तलाक के मामले की सुनवाई आगे बढ़ाने से पहले भरण-पोषण पर निर्णय लेने की मांग की गई थी. पारिवारिक अदालत ने यह मांग खारिज कर दी थी और जिरह के लिए पेश न होने के आधार पर मामला भी खारिज कर दिया था. इस फैसले को चुनौती दी गई थी.
पारिवारिक मामलों में संवेदनशीलता की आवश्यकता
कोर्ट ने यह भी माना कि पारिवारिक मामलों में थोड़ी अधिक संवेदनशीलता दिखाने की जरूरत होती है. उदाहरण के लिए, एक महिला जो निजी कंपनी में काम करती है, उससे यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह जल्दी ऑफिस से छुट्टी लेकर जिरह में भाग ले. इस कारण, कोर्ट ने अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए कहा कि जिरह के लिए पेश न होने पर मामले को जल्दबाजी में बंद नहीं किया जा सकता है.
आगे की कार्रवाई
कोर्ट ने इस आदेश को इस सीमा तक रद्द किया कि अपीलकर्ता के खुद की जांच करने के अधिकार को समाप्त नहीं किया जा सकता है. पारिवारिक अदालत को यह निर्देश दिया गया कि वे जनवरी में पक्षों की सहमति से तारीख तय करने के लिए स्वतंत्र हैं.
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