दिल्ली हाई कोर्ट ने अधिकारियों द्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के उस फैसले वाली फाइल पेश न किए जाने पर नाराजगी जताई, जिसमें राष्ट्रीय राजधानी में ऐतिहासिक मुगलकालीन जामा मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित न किए जाने का फैसला लिया था. न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह व न्यायमूर्ति अमित शर्मा की पीठ ने कहा कि पहले के आदेश के बावजूद, मस्जिद के स्मारक के रूप में दर्जे, इसके वर्तमान निवासियों आदि से संबंधित रिकॉर्ड के बजाय ढीले पन्ने और अन्य दस्तावेज पेश किए गए.
अदालत ने मामले में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को अंतिम अवसर प्रदान करते हुए हलफनामा मांगा है और साथ ही अक्टूबर में अगली सुनवाई की तारीख पर मूल फाइल भी मांगी. अदालत ने एएसआई महानिदेशक से मामले की सीधे निगरानी करने और केंद्र सरकार के वकील अनिल सोनी और मनीष मोहन के साथ बैठक करने को कहा, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि एक व्यापक हलफनामा दायर किया जाए.
अदालत जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें अधिकारियों को जामा मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित करने तथा इसके आसपास के सभी अतिक्रमणों को हटाने के निर्देश देने की मांग की गई थी. 28 अगस्त को न्यायालय ने केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय तथा एएसआई को निर्देश दिया था कि वे सिंह के उस निर्णय वाली फाइल को उसके समक्ष प्रस्तुत करें, जिसमें कहा गया था कि जामा मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित नहीं किया जाना चाहिए. मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने न्यायालय में उपस्थित एएसआई अधिकारी से आदेश का पालन न करने के बारे में पूछा तथा कहा फाइल कौन नहीं दे रहा है? हम सचिव को बुलाएंगे.
अगस्त 2015 में एएसआई ने अदालत को बताया था कि सिंह ने शाही इमाम को आश्वासन दिया था कि जामा मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित नहीं किया जाएगा. अदालत को यह भी बताया गया कि चूंकि जामा मस्जिद केंद्र द्वारा संरक्षित स्मारक नहीं है, इसलिए यह एएसआई के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 20 अक्टूबर, 2004 को लिखे अपने पत्र में शाही इमाम को आश्वासन दिया था कि जामा मस्जिद को केंद्र द्वारा संरक्षित स्मारक घोषित नहीं किया जाएगा.
-भारत एक्सप्रेस
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