Dr. Muthulakshmi Reddy: आज भारत में भले ही महिलाओं को उनके अधिकार के लिए उनको कोई मशक्कत न करनी पड़ती हो और उनको अपने अधिकार आसानी से मिल जाते हों लेकिन एक समय ऐसा भी था जब महिलाओं को अपने अधिकार को पाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती थी या यूं कहें कि महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित रखा जाता था. यहां तक कि उनको पढ़ने या फिर कहीं आने-जाने तक की स्वतंत्रता भी नहीं थी. महिलाओं को केवल घर और चौके तक ही सीमित रखा जाता था और उनको समाज के तमाम तानें तक झेलने पड़ते थे.
हालांकि समय-समय पर समाज को नई दिशा दिखाने के लिए कई महिला विभूतियां सामने आई, जिसमें से एक थीं डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी. 18वीं सदी में भारत में जन्म लेने वाली इस महिला ने न सिर्फ समाज को बदलने का काम किया बल्कि वे देश की पहली महिला विधायक और सर्जन भी बनीं. इस तरह से उन्होंने उस जमाने में एक ऐसी रेखा खींची जो पूरे समाज के लिए मिसाल बन गई.
बता दें कि आज देश की पहली महिला विधायक और सर्जन डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी की 138वीं जयंती है. उनका जन्म 1886 में तमिलनाडु (तब मद्रास) के पुडुकोट्टई में हुआ था. जब वह पैदा हुईं, तब देश में अंग्रेजों का शासन था. मुथुलक्ष्मी रेड्डी के पिता नारायण स्वामी अय्यर महाराजा कॉलेज में प्रिंसिपल थे और उनकी मां चंद्रामाई देवदासी समुदाय से थीं. वह बचपन से ही पढ़ने में बहुत ही होशियार थीं लेकिन माता-पिता उनकी शादी कम उम्र में ही करना चाहते थे लेकिन, उन्हें सिर्फ पढ़ाई करनी थी. इसलिए उन्होंने अपने माता-पिता की बात का विरोध कर उन्हें पढ़ाई के लिए राजी कर लिया था.
मुथुलक्ष्मी के पिता प्रिंसिपल थे, बावजूद इसके उनको उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ा. मैट्रिक तक उनके पिता और कुछ शिक्षकों ने उन्हें घर पर ही पढ़ाया था लेकिन समस्या तो इसके बाद सामने आई. मुथुलक्ष्मी ने तमिलनाडु के महाराजा कॉलेज में दाखिला लेने के लिए फॉर्म डाला तो उनका फॉर्म सिर्फ इसलिए खारिज कर दिया गया, क्योंकि वह एक महिला थीं. कहा जाता है कि उस समय कॉलेज में सिर्फ लड़के ही पढ़ाई करते थे.
जहां एक ओर समाज की तमाम बंदिशें मुथुलक्ष्मी का रास्ता रोकने के लिए पहाड़ की तरह खड़ी थी तो वहीं मुथुलक्ष्मी लगातार उन रास्तों की चुनौतियों को स्वीकार करते हुए आगे बढ़ रही थीं. बाद में मद्रास मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया. वह मद्रास मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेने वाली पहली महिला छात्रा बनीं. यहीं उनकी एनी बेसेंट और सरोजिनी नायडू से भी मुलाकात हुई. इसके बाद वह इंग्लैंड गईं और आगे की पढ़ाई की.
मुथुलक्ष्मी 1912 में भारत की पहली महिला सर्जन बनीं. इसके बाद 1927 में वह भारत की पहली महिला विधायक चुनी गईं. इस दौरान उन्होंने मद्रास विधानसभा में लड़कियों की कम उम्र में होने वाली शादी के लिए नियम बनाएं. उन्होंने महिलाओं के शोषण के खिलाफ भी आवाज उठाई. देवदासी प्रथा को खत्म करने में अहम भूमिका निभाई.
मुथुलक्ष्मी रेड्डी महात्मा गांधी और सरोजिनी नायडू से बहुत प्रभावित थीं. सरोजिनी नायडू से मुलाकात के बाद उन्होंने महिलाओं से जुड़ी बैठकों में हिस्सा लेना शुरू किया और उनके हित में कई महत्वपूर्ण काम किए. वह अनाथ बच्चों और लड़कियों के बारे में काफी चिंतित रहती थीं और उनकी पढ़ाई के लिए वह हमेशा प्रयास करती रहती थीं. महिलाओं की खराब स्थिति से उनको उबारने के लिए भी प्रयत्नशील रहीं. उन्होंने महिलाओं की शिक्षा के लिए 1931 में अव्वाई होम की स्थापना की.
उनकी बहन की मौत कैंसर के कारण हो गई थी, जिससे उनको सबसे अधिक सदमा लगा. इस हादसे ने मुथुलक्ष्मी को तोड़ा दिया था लेकिन उन्होंने इस हादसे को अपने जीवन का एक मिशन बना लिया था और इस जानलेवा बीमारी से पीड़ित लोगों के इलाज के लिए साल 1954 में कैंसर इंस्टिट्यूट की नींव रखी. बता दें कि इस इंस्टिट्यूट में हर साल 80 हजार से अधिक मरीजों का इलाज होता है.
बता दें कि साल 1956 में सामाजिक कामों के लिए उन्हें पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. वह अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक समाज व महिला हितों के लिए कार्य करती रहीं. साल 1968 में 81 वर्ष की आयु में डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी का निधन हो गया.
-भारत एक्सप्रेस
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