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क्या 2019 वाले ‘जाल’ में फंस रही है कांग्रेस पार्टी? तब ये गलती पड़ी थी भारी

Lok Sabha Elections 2024: कांग्रेस पार्टी को 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में करारी हार का सामना करना पड़ा था. 2014 का चुनाव कई मामलों में अलग कहा जा सकता है. हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी के नेतृत्व में बेहतर करने की उम्मीद कर रही थी लेकिन इन चुनावों के नतीजे भी 2014 के चुनावों की तरह ही साबित हुए. कई राजनीतिक पंडितों का मानना है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी 2019 के चुनाव में जिस तरह ‘जाल’ में फंसी थी, कमोबेश उसी तरह 2024 के चुनावों से पहले पार्टी ‘जाल’ में फंसती नजर रही है. इसके पीछे राजनीतिक पंडितों का अपना तर्क है.

पोलस्टर तुषार पांचाल का कहना है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी उसी ट्रैप में फंस रही है जैसा 2019 के चुनाव के दौरान हुआ था, जब पार्टी ने देश की जनता के बीच चर्चित मुद्दों से इतर कांग्रेस ने राफेल के मुद्दे को जोर-शोर से उछाला था और उम्मीद जताई थी कि यह मुद्दा चुनावों में बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने के लिए काफी होगा.

‘मैं भी चौकीदार’ कैंपेन कांग्रेस पर पड़ा था भारी

हालांकि, कांग्रेस का यह दांव उल्टा पड़ गया जब नरेंद्र मोदी ने ‘मैं भी चौकीदार’ कैंपेन शुरू कर दिया. इस चुनाव में बीजेपी ने बालाकोट एयरस्ट्राइक को भी बड़ा मुद्दा बनाया था. उज्ज्वला योजना के जरिए मुफ्त गैस सिलेंडर देना हो या पीएम किसान योजना के दौरान लाभार्थियों के खाते में पैसे भेजना… बीजेपी का कैंपेन इन मुद्दों के इर्द-गिर्द रहा. जबकि कांग्रेस पार्टी राफेल के मुद्दे तक ही सिमट कर रह गई थी.

इस वक्त भी राहुल गांधी और पूरी कांग्रेस पार्टी ज्वलंत मुद्दों के बजाय अडानी-हिंडनबर्ग के मुद्दे को जोर-शोर से उठा रही है और मोदी सरकार पर निशाना साध रही है. कांग्रेस पीएम मोदी पर गौतम अडानी की मदद करने का आरोप लगाकर उनको घेर रही है. तुषार पांचाल का मानना है कि यह मुद्दा मीडिया के कुछ वर्गों की दिलचस्पी बढ़ा सकता है लेकिन इससे आगामी राज्यों के चुनावों या 2024 के लोकसभा चुनावों में पार्टी को कुछ हासिल नहीं होगा. राजनीतिक पंडितों के अनुमान के बाद कहा जा सकता है कि कांग्रेस अगर बीजेपी को आगामी चुनावों में टक्कर देना चाहती है, तो उसे जमीनी स्तर पर लोगों के बीच चर्चा का केंद्र रहे मुद्दों पर ध्यान देना होगा. साथ ही बिखरे हुए विपक्ष के साथ तालमेल भी बिठाना होगा.

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काफी अलग था 2014 का चुनाव

यहां 2014 के चुनावों का जिक्र करना भी जरूरी है. तब चुनावों से पहले कांग्रेस एक तरफ जहां भ्रष्टाचार के कई आरोपों का सामना कर रही थी और महंगाई, तेल की बढ़ती कीमतों को रोक पाने में सरकार काफी हद तक नाकाम रही थी. वहीं नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी पूरी ताकत से चुनाव मैदान में उतर रही थी. इन चुनावों में नरेंद्र मोदी बीजेपी के स्टार कैंपेनर थे और तब भारतीय जनता पार्टी और एनडीए के घटक दलों ने भारी बहुमत के साथ सरकार बनाई थी.

-भारत एक्सप्रेस

कमल तिवारी

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