Kanshi Ram Birth Anniversary: शुक्रवार यानी 15 मार्च को उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में, जहां भी बसपा के समर्थक हैं, BSP संस्थापक कांशीराम की जयंती मना रहे हैं. बसपा सुप्रीमो मायावती सुबह ही उनको श्रद्धांजलि दे चुकी हैं. तो वहीं इस खास मौके पर पार्टी कार्यकर्ता और दलित समाज कांशीराम से जुड़ी बातों को ताजा कर रहा है. इसी बीच सोशल मीडिया पर बसपा (बहुजन समाज पार्टी) के चुनाव चिह्न के रोचक किस्से भी वायरल हो रहे हैं. पार्टी के चुनाव चिन्ह को लेकर एक दिलचस्प किस्सा सामने आया है. अक्सर आपने बसपा कार्यकर्ताओं से “हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा विष्णु महेश है” और “चढ़ दुश्मन की छाती पर मुहर लगेगी हाथी पर” जैसे नारे सुने होंगे लेकिन क्या आप जानते हैं कि कभी बसपा का सिंबल चिड़िया हुआ करता था, जबकि आज हाथी है.
राजनीतिक जानकार बताते हैं कि बसपा प्रत्याशी पहले चिड़िया चुनाव निशान पर भी चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन इसके बदलाव का किस्सा भी बड़ा रोचक है. कहा जाता है कि बाद में बसपा संस्थापक कांशीराम ने अपने चुनाव चिन्ह के तौर पर हाथी को चुन लिया था. इसको लेकर भी एक रोचक किस्सा सामने आता है. 14 अप्रैल 1984 को बहुजन समाज पार्टी का गठन हुआ था और इसी के बाद ही पार्टी ने उत्तर प्रदेश की सभी सीटों पर प्रत्याशी उतार दिए थे लेकिन तब तक पार्टी को मान्यता नहीं मिली थी. इसलिए उनकी निर्दलीय उम्मीदवार में गिनती हुई और इनमें से अधिकतर प्रत्याशियों को चिड़िया सिंबल मिला तो वहीं कुछ ने हाथी पर चुनाव लड़ा.
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जानकार कहते हैं कि, बसपा के पहले चुनाव में अधिकत सीटों पर चिड़िया निशान पर ही प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा लेकिन करीब 5 साल तक इसी निशान पर चुनाव लड़ते रहने पर कहीं जीत नहीं मिली. तो वहीं 1989 में बसपा को क्षेत्रीय दल के रूप में मान्यता मिल गई और चूंकि और डिमांड पर हाथी सिंबल भी मिल गया. इसके बाद 1989 में ही बसपा सुप्रीमो मायावती ने पहली बार हाथी चुनाव चिन्ह पर बिजनौर से चुनाव मैदान में उतरी थीं और जीत हासिल कर लोकसभा पहुंचीं थीं.
राजनीतिक जानकार कहते हैं कि बसपा द्वारा हाथी सिंबल को चुने जाने को लेकर कई कारण बताए जाते हैं. कांशीराम बहुजन वर्ग को एक विशालकाय हाथी के तौर पर देखते था, जो बेहत ताकतवर होता है. तो इसी के साथ ही हाथी का बौद्ध धर्म से भी कनेक्शन माना गया है. बुद्ध की जातक कथाओं में कई बार हाथी के बारे में उल्लेख मिलता है.
-भारत एक्सप्रेस
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