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…जब रूसी तानाशाह स्टालिन की बेटी को एक भारतीय से हो गया था प्यार, भारत और सोवियत संघ के रिश्तों में आ गया था तनाव

आपने तमाम प्रेम कहानियों के बारे में सुना होगा, उनके बारे में जानते भी होंगे. इनमें से कुछ प्रेम कहानियां इतनी अनोखी होती हैं कि उनकी गूंज कई दशकों के बाद भी सुनाई देती हैं. हम आपको ऐसी ही एक प्रेम कहानी से रूबरू कराने जा रहे हैं, जिसका दायरा सरहदों के पार तत्कालीन सोवियत संघ से भारत तक फैला हुआ है. इतना ही नहीं ये प्रेम कहानी एक समय भारत, सोवियत संघ और अमेरिका के बीच तनाव का कारण भी बनी थी.

ये कहानी है स्वेतलाना एलिलुयेवा (Svetlana Alliluyeva) था, जो रिश्ते में सोवियत नेता और तानाशाह जोसेफ स्टालिन (Joseph Stalin) की बेटी थीं. स्वेतलाना, स्टालिन और उनकी दूसरी पत्नी नादेज़्दा एलिलुयेवा (Nadezhda Alliluyeva) की सबसे छोटी संतान और एकमात्र बेटी थीं. उनका जन्म 28 फरवरी 1926 को हुआ था.

स्वेतलाना के बारे में दिलचस्प बात ये है कि वह भारत के राजकुमार कुंवर ब्रजेश सिंह (Brajesh Singh) के साथ उनकी मृत्यु तक रिश्ते में रही थीं. कुछ रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि दोनों शादी कर ली थी. ब्रजेश उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के कालाकांकर गांव के शाही परिवार से थे. ब्रजेश उन अनेक भारतीय कम्युनिस्टों में से एक थे, जिन्होंने 1930 के दशक में और उसके बाद मास्को को अपना घर बनाया था.

बीमारी के दौरान प्यार हुआ था

60 के दशक में दोनों का प्रेम परवान चढ़ा था, उस समय ब्रजेश कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई) से जुड़े हुए थे. साल 1963 में मॉस्को के एक अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान स्वेतलाना की मुलाकात ब्रजेश सिंह से होती है और दोनों एक दूसरे के प्यार में पड़ जाते हैं.

सौम्य स्वभाव वाले सुशिक्षित ब्रजेश ब्रॉन्किएक्टेसिस औरएम्फीसीमा (फेफड़ों से संबंधित बीमारी) से गंभीर रूप से पीड़ित थे. ब्रजेश जब स्वास्थ्य लाभ के लिए काला सागर के पास रूस के सोची नामक शहर में थे, तो स्वेतलाना भी उनके साथ थीं. इस दौरान दोनों का रोमांस और गहरा हो गया था.


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…जब स्वेतलाना भारत पहुंच गई थीं

स्वास्थ्य लाभ के बाद ब्रजेश वापस लौट गए, लेकिन स्वेतलाना के प्यार ने उन्हें मॉस्को वापस बुला लिया. वह यहां एक अनुवादक के तौर पर काम करने के लिए 1965 में दोबारा आ गए थे. हालांकि दोनों को यहां शादी करने की अनुमति नहीं दी गई. और इसके अगले वर्ष 1966 में इस प्रेम कहानी ने एक दुखद मोड़ ले लिया, ब्रजेश का अचानक निधन हो गया. 1967 में यह पहली बार था जब स्वेतलाना ने सोवियत संघ के बाहर की यात्रा की थी.

निधन के बाद ब्रजेश सिंह की अस्थियां उनके परिवार के पास ले जाने और गंगा नदी में प्रवाहित करने के लिए उन्हें कुछ कठिनाइयों के बाद आखिरकार भारत जाने की अनुमति मिल गई थी. 26 अप्रैल 1967 को एक इंटरव्यू में उन्होंने ब्रजेश सिंह को अपना पति बताया था, लेकिन यह भी कहा था कि उन्हें कभी भी आधिकारिक तौर पर शादी करने की अनुमति नहीं दी गई.

भारत यात्रा कठिन रही

हालांकि​ भारत की उनकी यात्रा काफी कठिन रही, क्योंकि सोवियत नेताओं ने उन्हें ऐसा करने से रोकने की बहुत कोशिश की थी. बाद में पर्याप्त साक्ष्य सामने आए थे, जिससे पता चला था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री एलेक्सी कोसिगिन ने व्यक्तिगत रूप से उनसे कहा था कि वह गंभीर जोखिम उठा रही हैं, क्योंकि रूढ़िवादी हिंदू कभी-कभी विधवा को उसके पति के साथ जला देते हैं, लेकिन विरोध के बावजूद वह भारत आने के लिए दृढ़ थीं.

उत्तर प्रदेश में अपने दिवंगत पति ब्रजेश सिंह के पैतृक गांव में अनुष्ठान पूरा करने के बाद वह उस समय दिल्ली पहुंचीं, जब भारत आम चुनाव की जद्दोजहद में था. यह राजनीतिक उथल-पुथल का दौर था. कांग्रेस पार्टी सत्ता में वापस आ गई थी, हालांकि काफी कम बहुमत के साथ.

इस दौरान नेतृत्व के लिए इंदिरा गांधी और मोरारजी देसाई के बीच तनावपूर्ण संघर्ष देखा गया था, जो अंतत: सरकार में उनके उप-प्रधानमंत्री बने थे. इन घटनाक्रमों के कारण दिल्ली में स्वेतलाना की मौजूदगी पर न तो मीडिया और न ही किसी नेता ने कोई दिलचस्पी दिखाई.

सोवियत संघ छोड़ने का निर्णय

और फिर एक सुबह यह सनसनीखेज खबर आ गई कि स्टालिन की बेटी स्वेतलाना भारत से सीधे अमेरिका चली गई हैं. इससे सोवियत संघ नाराज था और पहले के घनिष्ठ संबंधों के बावजूद मास्को और दिल्ली के बीच इस घटनाक्रम को लेकर कुछ समय तक तनाव बना रहा.


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Paul M. McGarr के एक लेख ‘फ्रॉम रशिया विथ लव: डिसिडेंट्स, डिफेक्टर्स एंड द पॉलीटिक्स ऑफ असाइलम इन कोल्ड वॉर इंडिया’ के अनुसार, भारत आने के बाद स्वेतलाना से साम्यवाद से मोहभंग होने का दावा करते हुए सोवियत राजदूत इवान बेनेडिक्टोव से भारत में रहने की अनुमति मांगी थी. हालांकि उनके इस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया गया और उन्हें घर लौटने का आदेश दिया गया.

अमेरिका की भूमिका

हालांकि स्वेतलाना ने सोवियत संघ नहीं लौटने का मन बना लिया था और उन्होंने आदेश को अस्वीकार करते हुए एक टैक्सी बुलाई और अमेरिकी ​दूतावास चली गईं, जो कुछ ही दूरी पर था. दूतावास उस दिन के लिए बंद हो चुका था. उन्होंने वहां तैनात ड्यूटी ऑफिसर को बताया कि वह कौन हैं और उन्हें क्या चाहिए.

मामले की गंभीरता को समझते हुए ड्यूटी ऑफिसर ने राजदूत चेस्टर बाउल्स को फोन किया और उनसे तुरंत ऑफिस पहुंचने का आग्रह किया, ताकि मामले का सुलझाया जा सके. आननफानन बाउल्स वहां पहुंचे और स्वेतलाना से यह लिखित में बताने के लिए कहा कि वह अपने देश के बजाय अमेरिका क्यों जाना चाहती हैं?

उन्होंने वैसा ही किया. एक साल बाद जब उन्होंने अपनी किताब में इस घटनाक्रम की जानकारी दी तो यह एक ठोस दस्तावेज बन गया.

आखिरकार अमेरिका में मिली शरण

इस बीच राजदूत बाउल्स ने विदेश मंत्री डीन रस्क को एक टेलीग्राम भेजा, जिसमें उन्होंने इस बारे में स्थिति स्पष्ट की और निर्देश मांगे. उन्होंने अपने इसमें सबसे आखिर में लिखा था, ‘अगर मुझे आधी रात तक (भारतीय समयानुसार) तक विदेश विभाग से कोई जवाब नहीं मिलता है, तो मैं अपनी जिम्मेदारी पर उन्हें वीजा दे दूंगा.’

हालांकि अमेरिका से समय पर कोई जवाब नहीं मिला तो बाउल्स ने स्वेतलाना को रोम जाने वाले एक विमान को पकड़ने के लिए एक सीआईए अधिकारी के साथ हवाई अड्डे पर भेजने की व्यवस्था की. जब वह सुरक्षित रूप से वहां पहुंच गईं, तभी यह सनसनीखेज खबर लीक हुई.

आगे उन्हें अमेरिका में शरण मिल गई और बाद में वह वहां की नागरिक भी बन गईं. फिर उन्होंने एक बेस्टसेलर किताब लिखी; Twenty Letters To A Friend. अमेरिका में उन्होंने शादी भी कर ली और उनकी एक बेटी ओल्गा हुई.

-भारत एक्सप्रेस

Prashant Verma

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