गुजरात में मोरबी हादसे को हुए 2 हफ्तों से ज्यादा का समय हो चुका है. लेकिन इस मामले में अभी तक कुछ खास कार्रवाई नहीं हुई है. जिसके चलते गुजरात हाइकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेकर इस मामले में नगर पालिका को कड़ी फटकार लगाई है. साथ ही सरकार से कड़े सवाल पूछे हैं. गुजरात हाईकोर्ट ने मंगलवार मंगलवार मोरबी पुल हादसे को लेकर जो लापरवाही बरती गई है. उसकी कोर्ट ने कड़ी आलोचना की है. कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि इस संबंध में कोई टेंडर जारी किए बिना राज्य की उदारता दी गई थी.
कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अरविंद कुमार मुख्य सचिव से सीधा सवाल पूछा कि सार्वजनिक पुल के मरम्मत कार्य के लिए टेंडर क्यों नहीं जारी किए गए? और बोलियां क्यों नहीं आमंत्रित की गईं ? कोर्ट ने मोरबी हादसे पर नगर पालिका को भी फटकार लगाई. कोर्ट ने कहा कि नोटिस के बावजूद वे अदालत में नहीं आए हैं, ऐसा लगता है कि “वे ज्यादा होशियार बन रहे हैं, बल्कि उन्हें सवालों के जवाब देने चाहिए.”
मोरबी हादसे में जो सबसे सवाल उठाए जा रहे हैं वो इस बात को लेकर कि नगर पालिका ने ओरेवा ग्रुप को इसका ठेका कैसे दे दिया. जो एक घड़ी बनाने वाली कंपनी है. उसको एक वॉल क्लॉक की ब्रांड मनाया जाता है. कोर्ट ने कहा कि “नगर पालिका, जो एक सरकारी निकाय है, उसने चूक की है, जिसने 135 लोगों को मार डाला. क्या गुजरात नगर पालिका अधिनियम, 1963 का पालन किया गया था.”
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि, “इतने महत्वपूर्ण कार्य के लिए महज डेढ़ पेज में एग्रीमेंट कैसे पूरा हुआ? क्या बिना किसी टेंडर के अजंता कंपनी को राज्य की उदारता दी गई” बता दें कि गुजरात कोर्ट ने इस मामले पर खुद संज्ञान लिया है. साथ ही कोर्ट ने 6 विभागों से जवाब मांगा था. मुख्य न्यायाधीश अरविंद कुमार और जस्टिस आशुतोष जे शास्त्री मोरबी हादसे की सुनवाई कर रहें हैं.
कोर्ट ने कहा कि अभी तक केवल कुछ ही कर्मचारियों को गिरफ्तार किया गया है. जबकि शीर्ष प्रबंधन, जिसने 7 करोड़ के समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, उसको कार्रवाई का सामना नहीं करना पड़ा है. अदालत ने पहले दिन से अनुबंध की फाइलें सीलबंद लिफाफे में जमा करने को भी कहा.
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