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फिर बढ़ा फीस का बोझ, कागज के 33% घटे दाम लेकिन नहीं सस्ती हुई किताबें, अभिभावकों का बिगड़ा बजट, स्कूल से लेकर स्टेशनरी वालों की बल्ले-बल्ले

Education News: हर साल की तरह इस बार भी नया शैक्षणिक सत्र शुरू होते ही अभिभावकों की जेब ढीली होनी शुरू हो गई है क्योंकि पिछले साल की तरह ही इस साल भी प्राइवेट स्कूल वालों ने फीस में एक-दो नहीं 12 से 15 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी कर दी है. जहां सरकार 5 प्रतिशत ही फीस बढ़ाने की बात करते हैं तो वहीं निजी स्कूल वाले तमाम चार्ज लगाकर फीस का पूरा बोझ अभिभावकों पर डाल देते हैं तो इसी के साथ ही किताबों का बोझ भी अलग से बढ़ा देते हैं. हर साल स्कूलों में किताबें बदली जाती हैं और इसका सीधा फायदा बुक सेलर्स को जाता है और कमीशनबाजी के खेल में स्कूल से लेकर रिटेलर तक शामिल होते हैं. जबकि इस बार कागज के 33 प्रतिशत दाम घट गए हैं लेकिन किताबों के रेट बढ़ते ही जा रहे हैं. तो वहीं यूनिफार्म के भी हर साल बदले जाने से अभिभावक परेशान हैं और बच्चों की पढ़ाई को लेकर लगातार घर का बजट बिगड़ रहा है.

अभिभावक संघ ने दाखिल की है PIL

भारत अभिभावक संघ के अध्यक्ष प्रताप चंद्रा बताते हैं कि सरकार ने 5 प्रतिशत ही फीस बढ़ाने को कहा था लेकिन निजी स्कूल हर साल अपनी मनमानी करते हैं और अपने हिसाब से 12 से 15 प्रतिशत तक फीस में बढ़ोत्तरी कर रहे हैं. साल दर साल फीस बढ़ती जा रही है. पैरेंट्स भी इसको लेकर खुलकर विरोध नहीं कर पाते क्योंकि उनको लगता है कि ऐसा करने पर उनके बच्चे के साथ स्कूल में भेदभाव किया जाएगा तो वहीं जिला बेसिक शिक्षा के तहत 25 प्रतिशत सीटों पर गरीब बच्चों के होने वाले दाखिले को भी नहीं लेते और सीटें बेच देते हैं. प्रताप कहते हैं कि जब सरकार वन नेशन वन इलेक्शन की बात करती है तो फिर स्कूली फीस और किताबों को लेकर इसकी बात क्यों नहीं की जाती. उन्होने कहा कि फीस के बाद किताबों और यूनीफार्म में कमीशनबाजी का खेल लगातार जारी है. मिनेनियम स्कूल में पिछले साल एक महीने की फीस 7800 थी जो कि इस साल बढ़ाकर 8300 कर दी गई है तो वहीं LPC (लखनऊ पब्लिक कॉलेजिएट) में छोटी कक्षाओं की एक महीने की फीस को 6500 से बढ़ाकर 6700 कर दिया गया है. प्रताप चंद्रा ने कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट में एक पीआईएल दाखिल कर एक सिलेबस, एक फीस और एक बुक की मांग की गई है.

वहीं विजय गुप्ता, प्रदेश अध्यक्ष अभिभावक एकता समिति, बताते हैं कि महर्षि पतंजलि विद्या मंदिर में पिछले साल कक्षा एक से आठ तक सालाना फीस 60920 रुपये फीस थी जो कि इस बार 67400 रुपये कर दी गई है. मजे की बात तो ये कि इस फीस को हर तीन महीने में जमा करना पड़ता है. यानी तीन महीने में 15230 की किस्त चुकानी होती है. तो वहीं सेंट जोसेफ कॉलेज में अपने बच्चों को पढ़ाने वाले पैरेंट्स परेशान हैं. यहां एलकेजी से कक्षा पांच तक की फीस हर साल बढ़ रही है और ये पांच साल में बढ़कर सालाना 12 हजार पहुंच चुकी है. यानी 2020-21 में जो सालाना फीस 37010 थी वो अब बढ़करा 49032 हो गई है. इसी तरह से अन्य कक्षाओं का भी हाल है. सेंट्रल एकेडमी झूंसी ने भी सालाना 5150 रुपये फीस बढ़ा दी है तो वहीं टैगोर पब्लिक स्कूल, लखनऊ का सबसे जाना-पहचाना स्कूल ला मार्ट से लेकर हर निजी स्कूलों ने फीस में अपने-अपने हिसाब से बढ़ोत्तरी कर दी है.

रीप्रिंट के दामों में की गई है बढ़ोत्तरी

स्टेशनरी व्यापर संघ लखनऊ के पदाधिकारी जितेंद्र सिंह चौहान तो खुले शब्दों में कहते हैं कि कागज और प्लास्टिक के दाम घटे हैं तो वहीं रीप्रिंट के दामों में बढ़ोत्तरी की गई है. यह इसलिए क्योंकि निजी स्कूलों और पब्लिशर के बीच कमीशनबाजी का खेल फल-फूल रहा है. वह कहते हैं कि दो साल पहले 100 रुपए प्रति किलो जो कागज बिकता था उसके दाम घटकर 67 रुपए हो गए हैं. इसके बावजूद भी स्कूलों में चलने वाली किताबों के रेट में कमी नहीं की गई है. 60 वाला रजिस्टर 80 रुपए में बेचा जा रहा है तो वहीं 30 वाली किताब इस साल 40 से 50 रुपए की हो गई है. पेन-पेंसिल बाक्स जो पिछले साल 100 से 300 रुपए था इसका रेट बढ़कर इस साल 150 से 400 रुपए हो गया है. स्कूल बैग के भी दाम बढ़कर 700 रुपए हो गए हैं.

-भारत एक्सप्रेस

Archana Sharma

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