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‘जय श्रीराम का नारा लगाने से धार्मिक भावनाएं आहत नहीं होतीं’, जानें Karnakata High Court ने मस्जिद में नारा लगाने को लेकर और क्या कहा

कर्नाटक हाईकोर्ट ने पिछले महीने दक्षिण कन्नड़ जिले के दो लोगों के खिलाफ एक मस्जिद के अंदर कथित तौर पर ‘जय श्रीराम’ का नारा लगाने के लिए दर्ज आपराधिक मामले को खारिज कर दिया था.

13 सितंबर को दिए गए आदेश में जस्टिस एम. नागप्रसन्ना ने कहा कि यह समझ से परे है कि ‘जय श्रीराम’ का नारा लगाने से किसी समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस कैसे पहुंचेगी.

इन धाराओं में दर्ज हुआ था केस

अदालत आरोपी कीर्तन कुमार और सचिन कुमार की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें मामले को खारिज करने की मांग की गई थी. शिकायत के अनुसार, दोनों व्यक्ति 24 सितंबर 2023 को पुत्तूर पुलिस सर्कल के अधिकार क्षेत्र में एक मस्जिद में घुस गए और रात करीब 11 बजे ‘जय श्री राम’ के नारे लगाए. उन्होंने कथित तौर पर इस आशय की धमकी भी दी कि ‘वे समुदाय को नहीं छोड़ेंगे’.

इस संबंध में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 447 (आपराधिक अतिक्रमण), 295ए (धार्मिक विश्वासों को ठेस पहुंचाना), 505 (सार्वजनिक शरारत के लिए बयान देना), 506 (आपराधिक धमकी) और 34 (सामान्य इरादा) के तहत केस दर्ज किया गया था. शिकायत में यह भी कहा गया है कि इलाके में हिंदू और मुसलमान सौहार्द्र के साथ रह रहे हैं और ऐसी घटनाओं से दरार पैदा होगी.

बचाव पक्ष का तर्क

दोनों आरोपियों के वकील ने कहा कि आईपीसी की विभिन्न धाराओं में से कोई भी तत्व घटना के विवरण से मेल नहीं खाता. वकील ने तर्क दिया कि मस्जिद में प्रवेश करना भी आपराधिक अतिक्रमण नहीं हो सकता, क्योंकि यह एक सार्वजनिक स्थान था. विरोधी सरकारी वकील ने कहा कि मामले की कम से कम जांच होनी चाहिए.

आईपीसी की धारा 295ए का हवाला देते हुए पीठ ने कहा, ‘धारा 295ए जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण तरीके से किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से की गई कार्रवाई से संबंधित है. यह समझ से परे है कि अगर कोई ‘जय श्रीराम’ का नारा लगाता है, तो इससे किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचेगी. जब शिकायतकर्ता खुद कहता है कि इलाके में हिंदू-मुस्लिम सौहार्द्र के साथ रह रहे हैं, तो इस घटना से किसी भी तरह की धार्मिक भावना को ठेस नहीं पहुंच सकती.’

अदालत ने क्या कहा

पीठ ने आगे कहा, ‘यहां सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का हवाला देना उचित होगा. उसका मानना ​​है कि कोई भी और हर कार्य आईपीसी की धारा 295ए के तहत अपराध नहीं माना जाएगा. जिन कार्यों से शांति स्थापित करने या सार्वजनिक व्यवस्था को नष्ट करने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, उन्हें अपराध नहीं माना जाएगा.’ अदालत ने यह कहते हुए मामला रद्द कर दिया कि शिकायत में आरोपित अपराधों के किसी भी तत्व की पूर्ति नहीं की गई थी.

-भारत एक्सप्रेस

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