चुनाव आयोग ने साल 2024 के लोकसभा चुनावों की घोषणा कर दी है. इस बार का चुनाव 7 चरणों में होगा, जिसकी शुरुआत 19 अप्रैल से हो रही है. 1 जून को 7वें और आखिरी चरण के मतदान होंगे. इस बीच 26 अप्रैल, 7 मई, 13 मई, 20 मई, 25 मई को क्रमश: दूसरे, तीसरे, चौथे, 5वें और छठे चरण के चुनाव होंगे. इसके बाद 4 जून को मतगणना के बाद नतीजों की घोषणा की जाएगी.
हम आपको इस रिपोर्ट के माध्यम से देश के राजनीतिक इतिहास की तरफ ले जा रहे हैं, जब पहले लोकसभा चुनाव हुए थे. पहला लोकसभा चुनाव 25 अक्टूबर 1951 से शुरू होकर 21 फरवरी 1952 को संपन्न हुए थे. यह चुनाव लगभग चार महीने यानी 120 दिनों तक चला था, जो कि भारत में सबसे लंबी मतदान अवधि है. समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, देश का पहला आम चुनाव 25 राज्यों के 401 निर्वाचन क्षेत्रों की 489 लोकसभा सीटों के लिए 68 चरणों में हुआ था.
इस साल के लोकसभा चुनाव तकरीबन डेढ़ महीने में पूरे किए जाएंगे. 19 अप्रैल से मतदान शुरू होने के बाद 47वें दिन मतगणना के साथ इसका समापन होगा. केवल मतदान वाले दिनों की बात करें तो इसमें 44 दिन (19 अप्रैल से 1 जून) का समय लगेगा. इस तरह से 1951-52 के संसदीय चुनावों के बाद 2024 के लोकसभा चुनावों को संपन्न कराने में लगने वाला समय दूसरी सबसे लंबी मतदान अवधि होगी.
जब मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) राजीव कुमार से 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए मतदान की लंबी अवधि के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि तारीखें क्षेत्रों के भूगोल और सार्वजनिक छुट्टियों, त्योहारों तथा परीक्षाओं जैसे अन्य कारकों के आधार पर तय की जाती हैं.
उन्होंने कहा था, ‘देश के भूगोल को देखें… नदियां, पहाड़, बर्फ, जंगल, गर्मी का मौसम हैं. सुरक्षा बलों की गतिविधियों के बारे में सोचें, वे देश की लंबाई और चौड़ाई के माध्यम से मतदान चरणों के बीच अंतराल में आगे बढ़ेंगे. उन पर दबाव की कल्पना करें. त्योहार और परीक्षाएं हैं. जब हम कैलेंडर लेकर बैठते हैं, तो एक तारीख तय करते हैं, फिर उसे बदलना पड़ता है.’
सबसे पहले अक्टूबर 1951 में हिमाचल प्रदेश में मतदान करा दिया गया था. ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि भारी बर्फबारी के कारण सर्दियों के दौरान ये इलाका अक्सर बाकी हिस्सों से कट जाता था. फरवरी और मार्च में हिमाचल प्रदेश का मौसम आमतौर पर खराब रहता था. हिमाचल प्रदेश के अलावा बाकी राज्यों में 1952 में मतदान हुए थे. वहीं जम्मू कश्मीर में 1967 तक कोई मतदान नहीं हुआ था.
पहले लोकसभा चुनाव के लिए सबसे पहला वोट हिमाचल प्रदेश के चीनी गांव में डाला गया था, जिसे अब कल्पा (जिला किन्नौर) के नाम से जाना जाता है. तब बैलेट पेपर (Ballot Paper) पर चुनाव कराए जाते थे, अब इनकी जगह इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) ने ले ली है.
पहले लोकसभा चुनाव के लिए सबसे पहला वोट श्याम सरन नेगी ने डाला था. वह हिमाचल प्रदेश के कल्पा (पूर्व नाम चीनी) में एक स्कूल शिक्षक थे. नेगी ने पहला वोट 25 अक्टूबर 1951 को डाला था. उन्होंने 1951 से अपनी मृत्यु (5 नवंबर 2022) तक हर आम चुनाव में मतदान किया था. माना जाता है कि वे भारत के सबसे बुजुर्ग मतदाता भी थे.
आजादी के बाद से भारत में दूसरी लोकसभा के लिए चुनाव 24 फरवरी से 14 मार्च 1957 के बीच यानी 19 दिनों में हुए थे. 1962 के लोकसभा चुनाव 19 से 25 फरवरी यानी 7 दिनों में हुए थे. इसके बाद 1962 और 1989 के बीच लोकसभा चुनावों की अवधि चार से 10 दिनों तक चली. देश में लोकसभा चुनाव के लिए सबसे कम मतदान की अवधि 1980 में केवल चार दिन (3 से 6 जनवरी) की थी और इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी दोबारा सत्ता में आई थीं. 2004 के लोकसभा चुनाव चार चरण के साथ 21 दिनों में हुए थे. 2009 लोकसभा चुनाव एक महीने में पांच चरणों में हुए थे. 2014 का आम चुनाव 9 चरणों में हुआ और इसमें 36 दिन लगे थे.
1951-52 में हुए पहले लोकसभा चुनाव के दौरान मतदान के लिए न्यूनतम उम्र 21 वर्ष हुआ करती थी, हालांकि वर्तमान में इसे घटाकर 18 वर्ष कर दी गई है. संविधान (61वां संशोधन) अधिनियम, 1988 के तहत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव में मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई थी. यह संविधान के अनुच्छेद 326 में संशोधन करके किया गया था, जो लोकसभा और विधानसभाओं के चुनावों से संबंधित है.
संविधान के अनुच्छेद 326 में प्रावधान है कि लोकसभा और प्रत्येक राज्य की विधानसभा के लिए चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर होंगे, यानी किसी व्यक्ति की आयु 21 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए. हालांकि यह पाया गया है कि कई देशों ने मतदान की आयु 18 वर्ष है. साथ कुछ राज्य सरकारों ने स्थानीय प्राधिकारियों के चुनाव के लिए 18 वर्ष की आयु को अपनाया था. इसे देखते हुए मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष करने का प्रस्ताव दिया गया और संविधान में 61वां संशोधन किया गया था.
पहले लोकसभा चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) ने एक शानदार जीत दर्ज की थी. पार्टी को 45% वोट मिले और उसने 489 में से 364 सीटों पर जीत का परचम लहराया था. इन चुनावों में दूसरे स्थान पर सोशलिस्ट पार्टी रही थी. उसे सिर्फ 11 प्रतिशत वोट से संतोष करना पड़ा था. वह 12 सीटों पर कब्जा जमा सकी थी. चुनाव के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू देश के पहले लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित प्रधानमंत्री बने थे.
इस चुनाव में कुल 53 पार्टियों ने 489 सीटों पर चुनाव लड़ा था. 1951-52 में जवाहर लाल नेहरू के अलावा सीपीआई से एके गोपालन, सोशलिस्ट पार्टी से जय प्रकाश नारायण, भारतीय जनसंघ से श्यामा प्रसाद मुखर्जी, किसान मजदूर प्रजा पार्टी से सुचेता कृपलानी और आचार्य कृपलानी, शेड्यूल्ड केस्ट्स फेडरेशन से संविधान निर्माता बाबा साहब भीमराव आंबेडकर आदि चुनाव मैदान में उतरे थे.
पहले लोकसभा चुनाव के दौरान देश के 85 प्रतिशत लोग निरक्षर थे. लगभग 40 करोड़ की जनसंख्या में केवल 15 प्रतिशत ही एक भाषा पढ़ना-लिखना जानते थे. इन स्थितियों में चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों और पार्टियों के नाम छापने से मतदाताओं को पसंदीदा वोट का विकल्प नहीं मिल पाता.
तब सुकुमार सेन के नेतृत्व में चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुनाव चिह्न छापने का फैसला किया. उस जमाने में जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाले कांग्रेस को ‘एक जुए में बंधे बैलों की जोड़ी’ का चिह्न मिला था. कभी नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व वाले ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक ने ‘हाथ’ के निशान पर पहला संसदीय चुनाव लड़ा था, जो अब कांग्रेस का चुनाव चिह्न है.
-भारत एक्सप्रेस
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