Arun Gawli: सुप्रीम कोर्ट ने गैंगस्टर से राजनेता बने अरुण गवली की समयपूर्व रिहाई पर रोक के फैसले को बरकरार रखा है. गवली हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं और उनकी समय से पूर्व रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा है. जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि हम कोई अंतरिम राहत देने के पक्ष में नहीं हैं, हमारे द्वारा दिया गया अंतरिम स्थगन सही है.
मामले की सुनवाई के दौरान गवली की ओर से पेश वकील ने कहा कि गवली दिल और फेफड़ों की बीमारियों से जूझ रहा है. इसपर कोर्ट ने कहा कि आपको पता होना चाहिए कि हर कोई अरुण गवली नही हो सकता. शोले फिल्म में एक महत्वपूर्ण डायलॉग है, जिसमें कहा जाता है कि ‘सो जा बेटा नहीं तो गब्बर आ जाएगा’ ऐसा ही मामला कुछ यहां भी है. वहीं महाराष्ट्र सरकार के वकील ने गवली की अंतरिम जमानत बढ़ाये जाने का विरोध करते हुए कहा कि गवली के खिलाफ 46 मुकदमा दर्ज है, जिनमें 10 मुकदमा हत्या से जुड़ा हुआ है.
महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश वकील ने कोर्ट को बताया कि अरुण गवली 17 सालों से जेल में बंद हैं और नई रिहाई नीति के तहत 40 साल से कम की सजा काटने से पहले रिहाई नही की जा सकती. जिसपर गवली की ओर पेश वकील नित्या रामकृष्णन ने सुनवाई के दौरान कहा कि राज्य सरकार ने साल 2015 में अपनी रिहाई नीति में बदलाव किया है, लेकिन जब अरुण गवली को साल 2009 में सजा सुनाई गई थी, तब तक नई नीति लागू नही हुई थी.
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ऐसे में पुरानी नीति के तहत उम्र और बीमारियों के आधार पर गवली को रिहाई मिलनी चाहिए. बता दें कि बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर की बेंच ने 5 अप्रैल को अपने फैसले में अरुण गवली को राहत देते हुए राज्य सरकार से गवली की समय से पूर्व रिहाई पर विचार करने को कहा था. दरअसल, हत्या के एक मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे गवली को हाई कोर्ट ने राज्य के अधिकारियों को 2006 की छूट नीति के तहत समयपूर्व रिहाई के लिए गवली की अर्जी पर विचार करने का निर्देश दिया था.
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