दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि पति एवं उसके परिवार वालों के खिलाफ निराधार आरोप लगाकर उसे कानूनी लड़ाई में फंसा कर रखना उसके खिलाफ अत्यधिक क्रूरता है. न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत एवं न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने उक्त टिप्पणी के साथ पारिवारिक अदालत के आदेश को रद्द कर दिया और हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(आईए) के तहत पत्नी की ओर से क्रूरता के आधार पर पति को तलाक दे दिया.
पीठ ने कहा कि इस तरह के गंभीर और निराधार आरोप लगाना और पति और उसके परिवार के सदस्यों को फंसाकर उसके खिलाफ कानूनी युद्ध छेड़ना, स्पष्ट रूप से प्रतिवादी की प्रतिशोधी प्रकृति को दर्शाता है. यह अपीलकर्ता/पति के प्रति अत्यधिक क्रूरता के बराबर है. दोनों पक्षों ने 1998 में शादी कर ली और इस विवाह से दो बेटे पैदा हुए थे. वे 2006 से अलग रह रहे थे. पति ने पारिवारिक अदालत के आदेश को चुनौती दी, जिसने उसकी तलाक की याचिका खारिज कर दी गई थी. अदालत ने कहा था कि वह पत्नी द्वारा क्रूरता के कृत्यों को साबित करने में विफल रहा है. उसे तलाक देने से इनकार कर दिया था.
पति ने कहा था कि पत्नी का रवैया उसके परिवार के सदस्यों के प्रति असभ्य, अपमानजनक और अपमानजनक था. वर्ष 2006 में पत्नी ने उन्हें और उनके परिवार के सदस्यों को फंसाने के इरादे से ही केरोसिन डालकर आत्महत्या करने का प्रयास किया था. पति को राहत देते हुए पीठ ने कहा कि पत्नी ने गंभीर आरोप लगाया था कि पति का एक महिला के साथ अवैध संबंध था. लेकिन वह उसे साबित नहीं कर पाई. रिकॉर्ड के अनुसार उसके जीजा पर उसके साथ अवैध संबंध रखने के गंभीर आरोप कई मौकों पर लगाए गए हैं, लेकिन वह अपने किसी भी आरोप को साबित करने में विफल रही है.
पीठ ने कहा कि उपरोक्त शिकायतें और मुकदमे स्पष्ट रूप से संकेत देते हैं कि प्रतिवादी ने अपीलकर्ता पर एक तीसरी महिला के साथ अवैध संलिप्तता के निंदनीय आरोप लगाए हैं. उसने अपीलकर्ता के भाई पर उसके यौन शोषण का भी आरोप लगाया था. इसके अलावा उन्होंने दहेज उत्पीड़न का भी आरोप लगाया था. इनमें से कोई भी आरोप प्रमाणित नहीं किया जा सका. इसके अलावा पीठ ने कहा कि प्रत्येक पीड़ित व्यक्ति को उचित कानूनी कार्रवाई शुरू करने का पूर्ण अधिकार है और राज्य मशीनरी से संपर्क करने का पूरा अधिकार है.
पत्नी को भी अपने आरोपों के समर्थन में ठोस सबूत देकर यह स्थापित करना था कि उसके साथ क्रूरता की गई थी. पीठ ने कहा कि आपराधिक शिकायत दर्ज करना क्रूरता नहीं हो सकता है, तथापि, क्रूरता के ऐसे गंभीर और अशोभनीय आरोपों को तलाक की कार्यवाही के दौरान प्रमाणित किया जाना चाहिए और वर्तमान मामले मे प्रतिवादी पत्नी ने न तो अपने आरोपों की पुष्टि की है और न ही अपने आचरण को उचित ठहराया है.
-भारत एक्सप्रेस
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