Brijbhushan Sharan Singh: भारतीय राजनीति में ऐसे पुरोधा रहे हैं जिनकी अपने क्षेत्र में एक अलग व अनोखी दखल रही है. एक ऐसी ही शख्शियत का नाम बृज भूषण शरण सिंह है जिनकी अपने क्षेत्र में अलग लोकप्रियता है और उनकी लोकप्रियता का आलम यह है कि 1991 से वह लगातार सांसद हैं. इस बीच 1996 के चुनाव में उनके स्थान पर उनकी पत्नी सांसद निर्वाचित हुईं थीं.
आजादी को अभी एक दशक हुए थे तभी उत्तर प्रदेश के गोण्डा जिले के कांग्रेस पार्टी के एक ताकतवर नेता चंद्रभान शरण सिंह के घर एक लड़के का जन्म हुआ. विश्वोहरपुर में 8 जनवरी 1957 में जन्मे इस बच्चे का नाम बृज भूषण शरण रखा गया जो एक समय बाद अपने नाम के अनुरूप ही काम करने लगा.
सत्तर के दशक में अयोध्या जनपद के के.एस. साकेत महाविद्यालय में पढ़ाई के दौरान बृज भूषण छात्र राजनीति में सक्रिय हो गये, छात्रसंघ का चुनाव भी लड़े जिसमें उन्होंने विजय का ऐसा स्वाद चखा जिसे वह अभी तक भूल नहीं पाये हैं. वह सबसे पहले छात्रसंघ चुनाव में महामंत्री निर्वाचित हुए.
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की सरकार थी और साल था 1987, उन दिनों सहकारिता के चुनाव का वर्तमान समय के अपेक्षा बहुत ज्यादा महत्व था और सहकारिता का चुनाव चल रहा था. चीनी मील में डायरेक्टर बनने के लिए उम्मीदवार के तौर पर बृजभूषण शरण सिंह ने भी आवेदन कर दिया. बकौल बृजभूषण शरण सिंह ‘चुनाव की गंभीरता देखते हुए उनको एसपी ने बुलाया और दबाव बनाते हुए नामांकन वापस लेने को कहा.
1988 में बृज भूषण शरण सिंह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गये और फिर पहली बार 1991 में रिकॉर्ड मतों से सांसद बने. 1992 में हुए बाबरी विध्वंस मामले में लालकृष्ण आडवाणी, कल्याण सिंह, मुरली मनोहर जोशी समेत जो 40 लोग आरोपी बनाए गए, उनमें बृजभूषण शरण सिंह भी एक थे लेकिन बाद में सितंबर 2020 में कोर्ट ने उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया गया.
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1996 में लोकसभा चुनाव के समय बृजभूषण शरण सिंह टाडा के तहत पूर्व केन्द्रीय मंत्री कल्पनाथ राय के साथ तिहाड़ जेल में बन्द थे, तब इनकी पत्नी केतकी सिंह ने गोंडा लोकसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा. बृजभूषण के जेल में होने के बावजूद केतकी सिंह ने कांग्रेस के आनंद सिंह को तकरीबन 80 हजार मतों के अंतर से हराया.
बरी होने के बाद 1999 में बृजभूषण शरण सिंह पुन: सांसद निर्वाचित हुए, समय के साथ बृज भूषण शरण सिंह का प्रभुत्व गोंडा के साथ-साथ बलरामपुर, अयोध्या और आसपास के ज़िलों में बढ़ता गया और वे अबतक एक भी चुनाव नहीं हारे हैं. स्थानीय लोगों के अनुसार बृज भूषण शरण सिंह सक्रिय राजनीति में आने से पहले कुश्ती प्रतियोगिताएं आयोजित कराया करते थे. मुख्यमंत्री रहते हुए मायावती ने गोण्डा का नाम बदलकर लोकनायक जयप्रकाश नगर करने की घोषणा की लेकिन बृज भूषण शरण सिंह ने इसके खिलाफ एक आंदोलन खड़ा कर दिया और इसी आंदोलन का परिणाम रहा कि गोण्डा का नाम नहीं बदला गया.
2004 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने बृज भूषण शरण सिंह को बलरामपुर से प्रत्याशी बनाया और उन्होंने वहां से भी जीत दर्ज की. 2009 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की कैसरगंज लोकसभा क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर सांसद निर्वाचित हुए लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भारतीय जनता पार्टी में वापस आ गये और भाजपा के प्रत्याशी के तौर पर 2014 एवं 2019 में लोकसभा के सांसद निर्वाचित हुए.
बृज भूषण शरण सिंह 10वीं, 13वीं, 14वीं, 15वीं, 16वीं और 17वीं लोकसभा में सदस्य निर्वाचित हुए हैं और 2011 से ही कुश्ती महासंघ (WFI) के अध्यक्ष भी हैं. 2019 में वे कुश्ती महासंघ के तीसरी बार अध्यक्ष चुने गए थे. रेसलिंग को लेकर कहा जाता है कि दबंग नेता बृजभूषण सिंह ने इस खेल को देश में टॉप पर पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. कुछ लोग तो यहां तक भी कहते हैं कि वह अपने पैसे भी खर्च करते हैं. बृज भूषण शरण सिंह के बेटे प्रतीक भूषण सिंह भी भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर गोंडा सदर से 2017 एवं 2022 में विधायक निर्वाचित हुए हैं.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बृज भूषण शरण सिंह 50 से अधिक शैक्षणिक संस्थानों के प्रबंधक हैं. वहीं हेलिकॉप्टर और घोड़ों की सवारी के लिए भी मशहूर हैं. वह राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में खुद के हेलिकॉप्टर से कार्यक्रमों में सम्मिलित होते हुए दिखते हैं.
-भारत एक्सप्रेस
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