देश

उस्ताद चला गया और खामोश हो गया ‘तबला’

Zakir Hussain Passes Away: तबला और जाकिर हुसैन एक दूसरे पूरक थे. लगता है जो तबला मुखर था, अब खामोश हो गया है और अपने उस्ताद की याद में आहें भर रहा है. बल्कि यूं कह लें दहाड़ें मार रहा है. तबले के साथ सारी दुनिया भी यही सोच रही है, कह रही है कि कौन अब तबले पर अंगुलियां फिराकर कहेगा ‘वाह ताज’ और कानों में घोलेगा मिस्री.

हम सब बचपन में जाकिर हुसैन को टीवी पर तबला बजाते… वाह ताज कहते हुए बड़े हुए हैं. संगीत की वह अखंड विरासत जो जाकिर हुसैन ने सहेजा उसको शब्दों में हम पिरो नहीं सकते, क्योंकि मशहूर तबला वादक अल्ला रक्खा खान के बेटे जाकिर हुसैन न सिर्फ महान तबला वादक थे, बल्कि बेहतरीन संगीतकार और शानदार एक्टर भी थे. बचपन से ही वे कलाकारी किया करते थे. वे तबले से कभी चलती ट्रेन की धुन निकालते थे तो कभी भागते हुए घोड़ों की धुन निकालकर दिखाते थे.

11 साल में ही सीखा लिया था तबला

जाकिर हुसैन की खास बात ये थी कि वे संगीत की गहराइयों को अपनी परफॉर्मेंस के जरिये दर्शकों से रूबरू कराकर उसमें भी मनोरंजन पैदा कर देते थे, लेकिन इसकी शुरुआत तो उन्होंने घर के बर्तनों से की थी. किचन के बर्तनों को उल्टाकर वो उस पर धुनें बनाते थे. इसमें कई बार गलती से भरा बर्तन होता तो उसका सामान अनजाने में गिर भी जाता था, लेकिन उनका हुनर ऊपर उठता गया और जाकिर साहब ने संगीत के क्या मानदंड रचे. महज 11 साल में पिता से तबला सीखकर पारंगत हो गए थे.

जाकिर हुसैन के एक्टिंग का सफर


जाकिर हुसैन ने फिल्मों में एक्टिंग भी की थी. उन्होंने शशि कपूर की फिल्म हीट एंड डस्ट में काम किया था. ये फिल्म 1983 में रिलीज हुई थी. यही नहीं जाकिर हुसैन ने फिल्म ‘साज’ में काम किया था. 1998 में रिलीज हुई इस फिल्म में जाकिर के साथ शबाना आजमी भी थीं. हालांकि ये फिल्म विवादों में फंस गई थी. बताया जाता है कि इस फिल्म की कहानी लता मंगेशकर और आशा भोंसले से इंस्पायर थी.

जाकिर हुसैन ने इसके बाद ‘चालीस चौरासी’ में भी काम किया था. उन्होंने मंटो, मिस बिटीज चिल्ड्रेन समेत 12 फिल्में की थीं. यही नहीं उनको दिलीप कुमार की मशहूर फिल्म मुगल ए आजम का भी ऑफर मिला था, लेकिन पिता की मर्जी थी कि जाकिर हुसैन संगीत की ऊंचाइयों को छुएं… जाहिर है जाकिर हुसैन का संगीत आज हमारे लिए अनमोल थाती की तरह हैं. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय बैले और ऑर्केस्ट्रा प्रोडक्शन के लिए कुछ म्यूजिकल कंपोजिशन भी बनाई थीं.

सम्मान खुद हुए सम्मानित

निश्चित ही जाकिर हुसैन को पाकर सम्मान खुद सम्मानित हुए. साल 1988 में उन्हें पद्मश्री से नवाजा गया था. इसके बाद साल 2002 में उन्हें पद्मभूषण और साल 2023 में पद्मविभूषण जैसे सर्वोच्च पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. यही नहीं जाकिर हुसैन को 1990 में संगीत के सर्वोच्च सम्मान संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी नवाजा गया था. 4 बार ग्रैमी पुरस्कार से भी सम्मानित हुए. काश जाकिर हुसैन हम लोगों के बीच रहते और हमेशा मोहब्बत, खुलूस, उल्फत को बांटती तबले की धुन को कानों में घोलते रहते.

-भारत एक्सप्रेस

मृत्युंजय कुमार श्रीवास्तव

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